वर्ष का छब्बीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

मूसा यहूदियों के सामने यह स्पष्ट कर देते हैं कि ईश्वर जिसे चाहता है, उसे भविष्यवाणी करने का वरदान देता है। किसी को ईश्वर के चुने हुए कृपापात्रों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। हम, सबों के लिए यह शुभकामना करें कि उन्हें ईश्वर के वरदान मिल जायें ।

गणना-ग्रंथ 11:25-29

"क्या तुम मेरे कारण ईर्ष्या करते हो? अच्छा यही होता कि सारी प्रजा भविष्यवाणी करती ।"

प्रभु बादल में आ कर मूसा से बात करने लगा। उसने मूसा की शक्ति का कुछ अंश सत्तर वयोवृद्धों को प्रदान किया । इसके फलस्वरूप उन्हें एक दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ और वे भविष्यवाणी करने लगे। बाद में उन्हें फिर ऐसा अनुभव नहीं हुआ। दो पुरुष शिविर में रह गये थे। एक का नाम था एलदाद और दूसरे का मेदाद । यद्यपि वे दर्शन-कक्ष में नहीं आये थे, तब भी उन्हें दिव्य प्रेरणा का अनुभव हुआ, क्योंकि वे चुने हुए वयोवृद्धों में से थे; और वे शिविर में ही भविष्यवाणी करने लगे । एक नवयुवक दौड़ कर मूसा से यह कहने आया एलदाद और मेदाद शिविर में भविष्यवाणी कर रहे हैं। नून के पुत्र योशुवा ने, जो बचपन से मूसा की सेवा करता था, यह कह कर अनुरोध किया, "हे मूसा ! हे गुरुवर ! उन्हें रोक दीजिए"। इस पर मूसा ने उसे उत्तर दिया "क्या तुम मेरे कारण ईर्ष्या करते हो? अच्छा यही होता कि प्रभु सबों को प्रेरणा प्रदान करता और प्रभु की सारी प्रजा भविष्यवाणी करती"।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 18:8,10,12-14

अनुवाक्य : प्रभु का नियम हृदय को आनन्दित कर देता है।

1. प्रभु का नियम सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है; वह अज्ञानियों को समझदार बना देती है

2. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं; वे सब के सब न्यायसंगत हैं

3. तेरा सेवक उन्हें हृदयंगम कर लेता है; उनके पालन से बहुत लाभ होता है। फिर भी कौन अपनी सभी त्रुटियाँ जानता है? अज्ञात पापों से मुझे मुक्त कर दे

4. अपने सेवक को घमंड से बचाये रखने की कृपा कर, उसका मुझपर अधिकार नहीं हो पाये। तब मैं निरपराध हो जाऊँगा और उस भारी पाप से निर्दोष ।

📘दूसरा पाठ

धनी लोगों को अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग करना चाहिए, नहीं तो उन्हें ईश्वर का दण्ड भोगना पड़ेगा । सन्त याकूब यहाँ पर विशेष रूप से उन लोगों को चेतावनी देते हैं, जो दरिद्रों का शोषण करते हैं।

सन्त याकूब का पत्र 5:1-6

"आपकी सम्पत्ति सड़ गयी है।"

ऐ धनियो ! मेरी बात सुनिये । आप लोगों को रोना और विलाप करना चाहिए, क्योंकि विपत्तियाँ आप पर आ पड़ने वाली हैं। आपकी सम्पत्ति सड़ गयी है; आपके कपड़ों में कीड़े लग गये हैं; आपकी सोना-चाँदी पर मोरचा जम गया है। वह मोरचा आप को दोष देगा; वह आग की तरह आपका शरीर खा जायेगा। यह युग का अंत है और आप लोगों ने धन का ढेर लगा लिया है। मजदूरों ने आपके खेतों की फसल लुनी है और आपने उन्हें मजदूरी नहीं दी। वह मजदूरी पुकार रही है और लुनने वालों की दुहाई विश्वमंडल के प्रभु के कानों तक पहुँच गयी है। आप लोगों ने पृथ्वी पर सुख और भोग-विलास का जीवन बिताया है और वध के दिन के लिए अपने को हृष्ट-पुष्ट बना लिया है। आपने धर्मी को दोषी ठहरा कर मार डाला और उसने तुम्हारा कोई विरोध नहीं किया ।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु! हमें सद्बुद्धि प्रदान कर, जिससे हम तेरे पुत्र की शिक्षा ग्रहण कर सकें । अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

दूसरों के लिए, विशेष रूप से निर्दोष बच्चों के लिए, पाप का कारण बन जाना महापाप है। येसु कहते हैं कि पाप मनुष्य के लिए सब से बड़ी विपत्ति है। मनुष्य को हर कीमत पर पाप से बचना चाहिए ।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:38-43,45,47-48

"जो तुम्हारे विरुद्ध नहीं है वह तुम्हारे साथ ही है। यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बने तो उसे काट डालो ।"

योहन ने येसु से कहा, "गुरुवर, हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता"। परन्तु येसु ने उत्तर दिया, "उसे मत रोको; क्योंकि ऐसा कोई नहीं है, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करे। जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है। "जो कोई तुम्हें एक प्याला पानी भर इसलिए पिला दे, कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा । "यदि कोई इन विश्वास करने वाले नन्हों में से किसी एक के लिए भी पाप का कारण बन जाता है, तो उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और उसे समुद्र में फेंक दिया जाता । और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बन जाये, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लूले हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ। और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बन जाये, तो उसे काट डालो । अच्छा यही है कि तुम लँगड़े हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ । और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बन जाये, तो उसे निकाल दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ, जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती है।"

प्रभु का सुसमाचार।