सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता है, धिक्कार उन लोगों को, जो सियोन में भोग-विलास का जीवन बिताते हैं। धिक्कार उन्हें, जो समारिया के पर्वत पर अपने को सुरक्षित समझते हैं । वे हाथीदाँत के पलंगों पर सोते और आराम-कुरसियों पर पैर फैलाये पड़े रहते हैं। वे कुण्ड के मेमने और गोशाला के बछड़े चट कर जाते हैं। वे सारंगी की ध्वनि पर ऊँचे स्वर से गाते और दाऊद की तरह नये वाद्यों का आविष्कार करते हैं। वे प्याले पर प्याला मदिरा पीते और उत्तम सुगंधित तेल से अपने शरीर का विलेपन करते हैं; किन्तु उन्हें यूसुफ के विनाश की चिन्ता नहीं है। इसलिए उन्हें सब से पहले निर्वासित किया जायेगा और उनके भोग-विलास का अन्त हो जायेगा ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मेरी आत्मा प्रभु की स्तुति करे । (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु सदा ही सत्यप्रतिज्ञ है। वह पद्दलितों को न्याय दिलाता है, वह भूखों को तृप्त करता और बन्दियों को मुक्त कर देता है
2. प्रभु अंधों की आँखों को अच्छा करता और फुके हुए को सीधा करता है। वह परदेशी की रक्षा करता और अनाथ तथा विधवा को सँभालता है
3. प्रभु धर्मियों को प्यार करता और विधर्मी के मार्ग में बाधा डालता है। प्रभु, सियोन का ईश्वर, युगानुयग राज्य करता रहेगा ।
ईश्वर के सेवक होने के नाते तुम धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य तथा विनम्रता की साधना करो । विश्वास के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहो और उस अनन्त जीवन पर अधिकार प्राप्त करो, जिसके लिए तुम बुलाये गये हो और जिसके विषय में तुमने बहुत-से लोगों के सामने अपने विश्वास का उत्तम साक्ष्य दिया है। ईश्वर के सामने, जो सब को जीवन प्रदान करता है और येसु मसीह के सामने, जिन्होंने पोंतियुस पिलातुस के सम्मुख अपना उत्तम साक्ष्य दिया है, मैं तुम को यह आदेश देता हूँ कि हमारे प्रभु येसु मसीह की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक तथा निर्दोष बनाये रखो। यह अभिव्यक्ति यथासमय परमधन्य तथा एकमात्र अधीश्वर के द्वारा हो जायेगी। वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है, जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है - उसे सम्मान तथा अनन्त काल तक बना रहने वाला सामर्थ्य । आमेन ।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। जितनों ने उसे अपनाया, उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया है। अल्लेलूया !
येसु ने फ़रीसियों से कहा, "एक अमीर था, जो बैंगनी वस्त्र और मलमल पहन कर प्रतिदिन दावत उड़ाया करता था । उसके फाटक पर लाज़रुस नामक कंगाल पड़ा रहता था जिसका शरीर फोड़ों से भरा था। वह अमीर की मेज की जूठन से अपनी भूख मिटाने के लिए तरसता था, और कुत्ते आ कर उसके फोड़े चाटा करते थे। वह कंगाल एक दिन मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे ले जा कर इब्राहीम की गोद में रख दिया । अमीर भी मरा और दफ़नाया गया । उसने अधोलोक में यंत्रणाएँ सहते हुए अपनीआँखें ऊपर उठा कर दूर ही से इब्राहीम को देखा और उसकी गोद में लाज़रुस को भी। उसने पुकार कर कहा, 'पिता इब्राहीम ! मुझ पर दया कीजिए और लाज़रुस को भेजिए जिससे वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिंगोकर मेरी जीभ ठंढी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ'। इब्राहीम ने उस से कहा, 'बेटा, याद करो कि तुम्हें जीवन में सुख ही सुख मिला था और लाज़रुस को दुःख ही दुःख । अब उसे यहाँ सान्त्वना मिल रही है और तुम्हें यंत्रणा । इसके अतिरिक्त हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गर्त्त अवस्थित है; इसलिए यदि कोई तुम्हारे पास जाना भी चाहे, तो वह नहीं जा सकता और कोई भी वहाँ से इस पार नहीं आ सकता ।' उसने उत्तर दिया, 'हे पिता ! आप से एक निवेदन है। आप लाज़रुस को मेरे पिता के घर भेजिए; क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं। लाज़रुस उन्हें चेतावनी दे । कहीं ऐसा न हो कि वे भी यंत्रणा के इस स्थान में आ जायें।' इब्राहीम ने उस से कहा, 'मूसा और नबियों की पुस्तकें उनके पास हैं, वे उनकी सुनें'। अमीर ने कहा, 'हे पिता इब्राहीम, वे कहाँ सुनते हैं; परन्तु यदि मुरदों में से कोई उनके पास जाये, तो वे पश्चात्ताप करेंगे'। पर इब्राहीम ने उस से कहा, 'जब वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते, तब यदि मुरदों में से कोई जी भी उठे, तो वे उसकी भी बात नहीं मानेंगे' ।"
प्रभु का सुसमाचार।
आज के सुसमाचार में हम धनी व्यक्ति और लाज़रुस की कहानी सुनते हैं। धनी व्यक्ति के पास वैभव, सुविधा और सम्मान सब कुछ था, पर उसने अपने द्वार पर पड़े लाज़रुस की पीड़ा को अनदेखा किया। मृत्यु के बाद परिस्थिति पलट गई – लाज़रुस अब्राहम की गोद में सांत्वना पा रहा था और धनी व्यक्ति यातना में पड़ा रहा। यह दृष्टान्त हमें सिखाता है कि सांसारिक जीवन क्षणिक है, परन्तु हमारे कर्म अनन्त परिणाम लाते हैं। गरीबों और ज़रूरतमंदों की उपेक्षा हमें ईश्वर से दूर कर सकती है। पहले पाठ (आमोस 6:1, 4-7) में भी नबी आमोस धनी लोगों की लापरवाही और आत्मसंतुष्टि की कड़ी निंदा करते हैं। वे विलासिता और आराम में डूबे हैं, लेकिन देश के पतन और गरीबों की दुर्दशा की परवाह नहीं करते। ईश्वर का न्याय ऐसे लोगों से पूछेगा जिनका हृदय कठोर हो गया है। दूसरे पाठ (1 तीमुथियुस 6:11-16) में संत पौलुस हमें विपरीत जीवन-मार्ग की ओर बुलाते हैं। वे कहते हैं – “धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य और कोमलता का अनुसरण करो।” सांसारिक धन और आराम नहीं, बल्कि विश्वास और ईश्वरभक्ति ही सच्चा धन है। हम मसीह को अपने एकमात्र प्रभु मानकर “अच्छी लड़ाई” लड़ने को बुलाए गए हैं। इन तीनों पाठों का संदेश स्पष्ट है :- ईश्वर हमें हमारे संसाधनों और अवसरों का ज़िम्मेदार उपयोग करने के लिए बुलाते हैं। दूसरों की उपेक्षा, विशेषकर गरीबों और पीड़ितों की, हमें ईश्वर के राज्य से वंचित कर सकती है। सच्ची समृद्धि धन में नहीं, बल्कि विश्वास और प्रेम से भरे जीवन में है। यह रविवार हमें चुनौती देता है : क्या मैं अपने आसपास के “लाज़रुस” को पहचानता हूँ, या केवल अपनी सुविधा और आराम में जीता हूँ? क्या मैं अपने धन, समय और योग्यताओं को दूसरों की सेवा में लगाता हूँ, या केवल अपने लिए रखता हूँ? क्या मेरा जीवन संत पौलुस की शिक्षा के अनुसार “धर्म, विश्वास और भक्ति” का साक्ष्य है? आइए, हम प्रार्थना करें कि हम अपने जीवन में धनी व्यक्ति जैसे न बनें, बल्कि लाज़रुस को पहचानकर करुणा, न्याय और प्रेम में जीएँ। तभी हम सच्चे अर्थों में ईश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी बनेंगे।
✍ - फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट
TIn today’s Gospel we hear the story of the rich man and Lazarus. The rich man had wealth, comfort, and honor, yet he ignored the suffering of Lazarus who lay at his gate. After death, the situation was reversed – Lazarus found comfort in the bosom of Abraham, while the rich man suffered in torment. This parable teaches us that earthly life is temporary, but our actions bring eternal consequences. Neglecting the poor and needy can separate us from God. In the first reading (Amos 6:1, 4–7), the prophet Amos strongly condemns the complacency and self-indulgence of the wealthy. They live in luxury and ease, yet remain blind to the downfall of their nation and the suffering of the poor. God’s justice will hold accountable those whose hearts have become hardened. In the second reading (1 Timothy 6:11–16), St. Paul calls us to a different path of life. He exhorts us: “Pursue righteousness, godliness, faith, love, endurance, and gentleness.” True wealth is not in worldly riches or comfort, but in faith and godliness. We are called to fight the “good fight” of faith, acknowledging Christ as our only Lord. The combined message of these three readings is clear : God calls us to use our resources and opportunities responsibly. Neglecting others, especially the poor and the suffering, can deprive us of the Kingdom of God. True richness is not in wealth, but in a life filled with faith and love. This Sunday God challenges us: Do I recognize the “Lazarus” around me, or do I live only for my comfort and ease? Do I use my wealth, time, and talents for the service of others, or only for myself? Does my life reflect St. Paul’s call to righteousness, faith, and godliness? Let us pray that we may not become like the rich man, but instead recognize the “Lazarus” in our midst, and live with compassion, justice, and love. Only then will we truly inherit the Kingdom of God.
✍ -Fr. George Mary Claret
अपने दुखभोग और मृत्यु की भविष्यवाणी करते हुए येसु ने कहा, "तुम लोग मेरे इस कथन को भली भाँति स्मरण रखो "। येसु की पीड़ा और मृत्यु हमारे छुटकारे के रहस्य के केंद्र में है। इस तरह मानजाति को मुक्ति प्राप्त हुयी। येसु की मृत्यु न तो कोई दुर्घटना थी और न ही केवल उनके उपदेशों का परिणाम। कुछ लोग इसकी व्याख्या को इस प्रकार सरल बनाने की चेष्टा करते हैं। पास्का रहस्य मानवजाति के उध्दार के के लिए ईश्वरीय योजना का केन्द्र था। इसलिए इस रहस्य को बार-बार स्मरण करने की आवश्यकता होती है। संत पौलुस प्रभु भोज की स्थापना के बारे में बात करते हुए कहते हैं, "मैंने प्रभु से सुना और आप लोगों को भी यही बताया" (1 कुरिन्थियों 11:23) और यह कहते हुए समाप्त करते हैं, "जब-जब आप लोग यह रोटी खाते और वह प्याला पीते हैं, तो प्रभु के आने तक उनकी मृत्यु की घोषणा करते हैं”। (1 कुरिन्थियों 11:26)। येसु की मृत्यु को न केवल विश्वासियों द्वारा एक अनुष्ठानिक तरीके से मनाया जाता है, बल्कि विश्वासियों द्वारा इसे जिया भी जाता है। आईए हम, प्रभु येसु के दुखभोग और मृत्यु के महत्व को समझने और इसे अपने जीवन में जीने के लिए, कृपा माँगे।
✍ - फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया
हमारा समय, ध्यान और दिल किन बातो के बारे में सबसे ज्यादा सोचता है? लाजरूस और अमीर आदमी के दृष्टांत में येसु ने जीवन के दर्दनाक, नाटकीय पहलुओं और इसके विरोधाभासों को इंगित किया है - धन और गरीबी, स्वर्ग और नरक, करुणा और उदासीनता, समावेश और बहिष्कार।
इन दोनों के जीवन में अचानक और नाटकीय उलटफेर भी होता है। लाजरूस न केवल गरीब था बल्कि अक्षम भी था। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें अमीर आदमी के घर के द्वार पर "लेटा" दिया जाता था। जो कुत्ते उसके घावों को चाटते थे, वे शायद अपने लिए मिली छोटी-सी रोटी भी उससे छीन कर खा लेते थे। वह बहुत ही दयनीय जीवन व्यतीत कर रहा था। अमीर आदमी का भिखारी के प्रति रवैया तब तक उदासीन रहा जब तक कि उसने अपनी किस्मत को उलट नहीं पाया! दुर्भाग्य और पीड़ा के जीवन के बावजूद, लाजरूस ने परमेश्वर में आशा नहीं खोई। उसकी नज़र स्वर्ग में उसके लिए जमा किए गए ख़ज़ाने पर टिकी थी। हालाँकि, धनी व्यक्ति अपने सांसारिक खजाने से आगे नहीं देख सकता था। उसके पास न केवल वह सब कुछ था जिसकी उसे आवश्यकता थी, बल्कि वह अपने एशो आराम में भी लिप्त था। वह अपनी विलासिता की पार्टियों में इतना अधिक व्यस्त था कि उसने अपने आसपास के लोगों की जरूरतों पर कभी ध्यान नहीं दिया। उसने ईश्वर और स्वर्ग के खजाने पर से अपनी दृष्टि खो दी क्योंकि वह भौतिक चीजों में खुशी तलाशने में व्यस्त था। उसने ईश्वर के बजाय धन की सेवा की। आखिर में अमीर भिखारी बन गया ! क्या हम ईश्वर को अपने एकमात्र खजाने के रूप में रखने के आनंद और स्वतंत्रता को जानते हैं? भला प्रभु उनके लिए और उनकी खुशी के तरीकों के लिए हमारी भूख को बढ़ाए। वह हमें स्वर्ग की वस्तुओं में धनी बना दे और हमें एक उदार हृदय प्रदान करे कि हम उस खजाने को दूसरों के साथ स्वतंत्र रूप से साझा कर सकें जो उसने हमें दिया है।
✍ - फादर रोनाल्ड वाँन
What most occupies our time, attention, and our heart? In the parable of Lazarus and the rich man Jesus points out painful yet dramatic aspects of life and its contrasts -- riches and poverty, heaven and hell, compassion and indifference, inclusion and exclusion.
There also comes an abrupt and dramatic reversal of fortune. Lazarus was not only poor but incapacitated. It is said that he was "laid" at the gates of the rich man's house. The dogs which licked his sores probably also stole the little bread he got for himself. He was living in a very miserable state of life. The rich man’s attitude towards the beggar was indifferent until he found his fortunes reversed! Despite a life of misfortune and suffering, Lazarus did not lose hope in God. His eyes were set on a treasure stored up for him in heaven. The rich man, however, could not see beyond his material treasure. He not only had everything he needed, but he also indulged in his wealth. He was too much preoccupied with his pleasure parties that he never noticed the needs of those around him. He lost sight of God and the treasure of heaven because he was preoccupied with seeking happiness in material things. He served wealth rather than God. In the end, the rich man became a beggar! Do we know the joy and freedom of possessing God as our only treasure? May the good Lord increase our hunger for him and for his ways of happiness. May he make us rich in the things of heaven and give us a generous heart that we may freely share with others the treasure he has given to us
✍ -Fr. Ronald Vaughan
इस दुनिया में हमारा जीवन 70 या 80 साल का होता है (देखें स्तोत्र 90:10)। अगर कोई 100 वर्ष पार करता है तो हम उसे आश्चर्यजनक मानते हैं। पवित्र ग्रन्थ कहता है, “यदि मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष है, तो वह बहुत मानी जाती है; किन्तु अनन्त काल की तुलना में ये थोड़े वर्ष समुद्र में बूँद की तरह, रेतकण की तरह हैं” (प्रवक्ता 18:8)। इस दुनिया में हमारे जीवन-काल की तुलना परलोक में हमारे जीवन-काल से करते हुए पवित्र वचन हमें बताता है कि परलोक में हमारा जीवन-काल समुद्र के समान है जबकि इस दुनिया में हमारा जीवन-काल पानी की एक बूँद के समान है। गौरतलब है, हमें परलोक के जीवन पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। इस दुनिया में हमारा जीवन-काल परलोक के जीवन की तैयारी का समय है। इसलिए हमें सतर्कता तथा ईमानदारी से परलोक के जीवन की तैयारी करनी चाहिए। अमीर और लाज़रूस के दृष्टान्त में अमीर व्यक्ति इस लोक में रहते समय बैंगनी व मलमल के वस्त्र, स्वादिष्ट भोजन, विशाल तथा सुन्दर घर और अपने मनोरंजन पर ध्यान देते हुए एक आलीशान ज़िन्दगी बिताता है। वह परलोक को भूल कर इस दुनिया की सुख-सुविधाओं पर ही ध्यान देता है। उसे मार्गदर्शन देने के लिए पवित्र ग्रन्थ भी उपल्ब्ध था, परन्तु उसने उस पर भी ध्यान नहीं दिया। मरने के बाद ही उसे अपनी बेवकूफ़ी का एहसास हुआ, तब तक तो वह अस्सहाय बन जाता है। वह न तो अपनी और न ही अपनों की मदद कर पाता है। इस लोक में रहते समय परलोक के जीवन के लिए तैयारी करना ही समझदारी है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Our life-span is 70 to 80 years (cf. Ps 90:10). If, by chance, we cross 100 years, it is considered as something amazing. The Word of God tells us, “The number of a man’s days is great if he reaches a hundred years. Like a drop of water from the sea and a grain of sand so are a few years in the day of eternity” (Sir 18:9-10). Our eternal life-span is compared to an ocean while our earthly life-span is like a drop of water. In the parable of the rich man and Lazarus (Lk 16:19-31), we find the rich man caring for sumptuous meals, luxurious clothing and material pleasures and he is thus engrossed in this world losing sight of the eternal life. He has the Scriptures to guide him to his destination, but he does not bother to pay attention to the guidance given by the Word of God. Only after his death his folly is revealed and he realizes that he has caused irreparable damage to himself. Now, he is not able to rectify the situation, nor is he capable of coming to the aid of those whom he loves. The wisdom of the Word of God reminds us to be wise while living in the world and prepare for the life to come.
✍ -Fr. Francis Scaria
पवित्र बाइबिल में उपस्थित चारों पवित्र सुसमाचार ही अनौखे हैं| प्रत्येक सुसमाचार की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं| सन्त लूकस के अनुसार सुसमाचार में हमें कुछ ऐसे दृष्टान्त मिलते हैं जो दूसरे सुसमाचारों में नहीं मिलते| उन्हीं में से एक है धनी व्यक्ति और दरिद्र लाजरुस का दृष्टान्त| यह दृष्टान्त विभिन्न संदेशों से भरा हुआ है| इस दृष्टान्त का प्रत्येक पात्र, प्रत्येक घटना, प्रत्येक दृश्य बहुत कुछ सन्देश देता है| पिछले रविवार को हमने प्रभु येसु के इन शब्दों पर मनन-चिंतन किया था कि झूठे धन से अपने लिये मित्र बना लो ताकि वे परलोक में तुम्हारा स्वागत करें| हममें से किसी ने भी परलोक के दर्शन नहीं किये हैं, क्योंकि जो परलोक जाता है वह वापस लौटकर नहीं आता, लेकिन प्रभु येसु हमें उस लोक की झलक दिखाते हैं| आज के सुसमाचार से हमें पता चलता है कि ईश्वर सबका हिसाब चुकाते हैं| आईये आज के इस दृष्टान्त को एवं उसके सन्देश को हम गहराई से समझें|
यह दृष्टान्त एक अमीर व्यक्ति के उल्लेख से शुरू होता है जो बैंगनी वस्त्र और मलमल पहनकर प्रतिदिन दावत बुलाया करता था| बैंगनी वस्त्र शाही अंदाज़ को बयाँ करता है| जब सैनिक लोग प्रभु येसु को राजा बनाकर उनका उपहास करते थे तो उन्हें बैंगनी वस्त्र पहना देते थे| (मारकुस 15:17)| यह बैंगनी वस्त्र कोई साधारण लोगों का वस्त्र नहीं था| सामान्य लोग सस्ते, सूती वस्त्र पहनते थे, लेकिन जो महँगे वस्त्र खरीद सकते थे, वे ही बैंगनी और मलमल के कपड़े पहनते थे| यानि कि वह व्यक्ति बहुत धनी था, क्योंकि वह प्रतिदिन दावत बुलाया करता था| आश्चर्यजनक बात यह है कि उस धनी व्यक्ति का कोई नाम तक नहीं बताया गया है जबकि पवित्र बाइबिल के अनुसार किसी के नाम का बहुत महत्व है| इस व्यक्ति का नाम शायद इसलिए नहीं बताया गया कि स्वर्ग में नामी-गिरामी लोग भी गुमनाम हो जाते हैं, और पृथ्वी पर गुमनाम लोग भी स्वर्ग में नामी-गिरामी लोग हो जाते हैं|
इस कहानी का दूसरा पात्र लाज़रुस नामक कंगाल व्यक्ति है जो उस धनी व्यक्ति के फाटक पर पड़ा रहता था| एक कंगाल का नाम बताया गया है लेकिन एक धनी का नाम तक कोई मायने नहीं रखता| वह कंगाल भूख से तडपता था, फोड़ों के कारण कष्ट में था, और कुत्ते उसके घावों को चाटते थे, यानि कि वे घाव सूखकर भरने, या ठीक होने की बजाय हमेशा ताज़ा बने रहते थे, और उसका दर्द कभी कम नहीं होता था| वहीँ दूसरी ओर धनी व्यक्ति के साथ एकदम उल्टा था, वह रोज दावत उड़ाया करता था, उसके शरीर को अपार सुख था, कोई चिंता, दुःख या परेशानी नहीं थी| ना लाज़रुस को उससे कोई शिकायत थी और न उसे लाज़रुस से कोई लेना-देना बल्कि वह तो उस कंगाल को अपने फाटक पर पड़े रहने देता था| लेकिन जब दोनों परलोक जाते हैं, तो लाज़रुस को आराम मिलता है और धनी को कष्ट| आखिर लाज़रुस को किस कारण पिता इब्राहीम की गोद में बैठने का सौभाग्य मिला और धनी व्यक्ति को किस बात की सज़ा मिली?
पवित्र कलीसिया हमें सिखाती है कि पाप के अनेक प्रकारों में से दो प्रकार ये भी हैं – हमारे आचरण से होने वाले पाप और हमारे अनाचरण से होने वाले पाप (Sins of commission and sins of omission)| यानि कि एक वे पाप जो हमारे कुछ गलत करने के कारण होते हैं और दूसरे वे पाप जो हमारे कुछ भला नहीं करने के कारण होते हैं| हमें न केवल अपने आप को गलत करने से रोकना है बल्कि हमें भला भी करते रहना है| कभी-कभी हम सोचते हैं कि हम तो कुछ गलत नहीं कर रहे इसलिए ईश्वर हमें दण्ड नहीं देंगे। लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमें जो भला करना चाहिए अगर वह नहीं करते हैं तो भी हम पाप करते हैं| उस अमीर व्यक्ति को इसी बात की सज़ा मिली कि उसने अपनी ज़िन्दगी में अपने धन-दौलत और ऐशो-आराम का भरपूर मज़ा लिया लेकिन एक दरिद्र, दुखी और लाचार के बारे में कोई परवाह नहीं की| अगर ईश्वर ने हमें धन-दौलत और आरामदायक जीवन दिया है तो न केवल हमें उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए बल्कि दीन-दुखियों के लिए भी उस धन-दौलत का उपयोग करना चाहिए|
लाज़रुस ने कष्ट उठाया इसलिए उसे परलोक में सांत्वना मिली| प्रभु येसु ने स्वयं वादा किया है - “धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, उन्हें सांत्वना मिलेगी| (मत्ती 5:5)| इस दृष्टान्त के दोनों पात्रों में से मैं कौन हूँ- वह धनी व्यक्ति जिसे ईश्वर ने सुखमय जीवन दिया है और जो दूसरों की परवाह नहीं करता या वह कंगाल जो अपने कष्ट और परेशानी में भी ईश्वर पर भरोसा रखता है और परलोक में सांत्वना पाने का पात्र बन जाता है?
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)