वर्ष का सत्ताईसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

मानव जाति के फैलाव के लिए और हर नवजात शिशु के स्वाभाविक विकास के लिए ईश्वर ने विवाह का विधान किया है। ईश्वर की इच्छा है कि पति तथा पत्नी एक हो कर जीवन भर एक दूसरे की सहायता करें ।

उत्पत्ति-ग्रंथ 2:18-24

"और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।"

प्रभु ने कहा, "अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाऊँगा"। तब प्रभु ने मिट्टी से पृथ्वी पर के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और यह देखने के लिए कि मनुष्य उन्हें क्या नाम देगा वह उन्हें मनुष्य के पास ले चला। क्योंकि मनुष्य ने प्रत्येक को जो नाम दिया होगा, वही उसका नाम रहेगा । मनुष्य ने सभी घरेलु पशुओं, आकाश के पक्षियों और सभी जंगली जीव-जन्तुओं का नाम रखा, किन्तु उसे अपने लिए उपयुक्त सहयोगी नहीं मिला । तब प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को गहरी नींद में सुला दिया और जब वह सो गया, तो प्रभु ने उसकी एक पसली निकाल ली और उसकी जगह को मांस से भर दिया। इसके बाद प्रभु ने मनुष्य से निकाली हुई पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसे मनुष्य के पास ले गया । इस पर मनुष्य बोल उठा, "यह तो मेरी हड्डियों की हड्डी है और मेरे मांस का मांस । इसका नाम 'नारी' होगा, क्योंकि यह तो नर से निकाली गयी है।" इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता को छोड़ेगा और पत्नी के साथ रहेगा; और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 127

अनुवाक्य : प्रभु हमें जीवन भर आशिष प्रदान करता रहे ।

1. धन्य हो तुम, जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हो और उसके मार्ग पर चलते हो। तुम अपने हाथ की कमाई से सुखपूर्वक जीवन बिताओगे

2. तुम्हारी पत्नी तुम्हारे घर के आँगन में दाखलता की भाँति फलेगी-फूलेगी। तुम्हारी सन्तान जैतून की टहनियों की भाँति तुम्हारे चौके की शोभा बढ़ायेगी

3. जो ईश्वर पर भरोसा रखता है, उसे वही आशिष प्राप्त होगी। ईश्वर सियोन पर्वत पर से तुम्हें जीवन भर आशीर्वाद प्रदान करता रहे

4. जिससे तुम येरुसालेम का कुशल-मंगल और अपने पोते-परपोते देख पाओ । इस्राएल को शांति ।

📘दूसरा पाठ

येसु मसीह ईश्वर होते हुए भी मनुष्य बन गये और वह मनुष्यों को अपने भाई कहते हैं। वह अपने भाइयों के लिए अपने प्राण अर्पित करने के बाद अब महिमान्वित किये गये हैं और उनके भाई उनकी महिमा के भागी बन जायेंगे ।

इब्रानियों के नाम पत्र 2:9-11

"जो पवित्र करता है और जो पवित्र किये जाते हैं, उन सबों का पिता एक ही है।"

येसु को कुछ समय के लिए स्वर्गदूतों से छोटा बना दिया गया था, जिससे वह ईश्वर की कृपा से प्रत्येक मनुष्य के लिए मर जायें। अब हम देखते हैं कि मृत्यु की यंत्रणा सहने के कारण उन्हें महिमा और सम्मान का मुकुट पहना दिया गया है। ईश्वर, जिसके कारण और जिसके द्वारा सब कुछ होता है, बहुत-से पुत्रों को महिमा तक ले जाना चाहता था। इसलिए यह उचित था कि वह उन सबों की मुक्तिं के प्रवर्तक को, अर्थात् येसु को दुःखभोग द्वारा पूर्णता तक पहुँचा दे। जो पवित्र करता है और जो पवित्र किये जाते हैं, उन सबों का पिता एक ही है; इसलिए येसु उन्हें अपने भाई कहने में नहीं लजाते हैं।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा आत्मा और जीवन है । तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मूसा ने अपने समय की परिस्थिति देखते हुए त्यागपत्र दे कर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी थी; किन्तु येसु का कहना है कि प्रारंभ में ईश्वर ने मनुष्यों को नर-नारी बनाया और कि ईश्वरीय विधान के अनुसार पति-पत्नी का सम्बन्ध अटूट है।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:2-16

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
"जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।"

फ़रीसी येसु के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए उन्होंने यह प्रश्न किया, "क्या अपनी पत्नी को त्याग देना पुरुष के लिए उचित है?” येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया है?" उन्होंने कहा, "मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी है"। येसु ने उन से कहा, "उन्होंने तुम्हारे हृदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। किन्तु सृष्टि के प्रारम्भ ही से ईश्वर ने उन्हें नर-नारी बनाया; इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा; और दोनों एक शरीर हो जायेंगे । इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं। इसलिए जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे"। शिष्यों ने, घर पहुँच कर, इस संबंध में येसु से फिर प्रश्न किया और उन्होंने यह उत्तर दिया, "जो अपनी पत्नी को त्याग देता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है, और यदि पत्नी अपने पति को त्याग देती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यभिचार करती है"।

[ लोग येसु के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वह उन पर हाथ रख दें परन्तु शिष्य लोगों को डाँटते थे । येसु यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, "बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोको मत, क्योंकि ईश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का है। मैं तुम से कहे देता हूँ जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा"। तब येसु ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया ।]

प्रभु का सुसमाचार।