हे प्रभु ! मैं कब तक पुकारता रहूँगा और तू अनसुनी करता रहेगा? मैं कब तक तेरी दुहाई देता रहूँगा और तू बचाने नहीं आयेगा? तू क्यों मुझे पापाचार दिखाता है? क्यों मुझे अत्याचार देखना पड़ता है? लूटपाट और हिंसा मेरे सामने हैं। चारों ओर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। प्रभु ने उत्तर में मुझ से यह कहा, "जो दृश्य तुम देखने वाले हो, उसे स्पष्ट रूप से पाटियों पर लिखो, ताकि सब उसे सुगमता से पढ़ सकें; क्योंकि वह भविष्य का दृश्य है, जो निश्चित समय पर पूरा होने वाला है। यदि उस में देर हो जाये, तो उसकी प्रतीक्षा करते रहो, क्योंकि वह अवश्य ही पूरा हो जायेगा । भजन जो दुष्ट है, वह नष्ट हो जायेगा, जो धर्मी है, वह अपनी ईमानदारी के कारण सुरक्षित रहेगा ।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : ओह ! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, "अपना हृदय कठोर न बनाओ।"
1. आओ ! हम प्रभु के सामने आनन्द मनायें, अपने शक्तिशाली त्राणकर्त्ता का गुणगान करें, हम स्तुति करते हुए उसके पास जायें, भजन गाते हुए उसे धन्य कहें ।
2. आओ ! हम दण्डवत् कर प्रभु की आराधना करें, अपने सृष्टिकर्ता के सामने घुटने टेकें। वही तो हमारा ईश्वर है और हम हैं, उसके चरागाह की प्रजा, उसकी अपनी भेड़ें ।
3. ओह ! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, “अपना हृदय कठोर न बनाओ, जैसा कि पहले मरीबा और मस्सा की मरुभूमि में हुआ था । उस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी परीक्षा ली। मेरे कार्यों को देखते हुए भी, उन्होंने मुझ में विश्वास नहीं किया।
मैं तुम से अनुरोध करता हूँ कि तुम ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपण से तुम में विद्यमान है। ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया है। तुम न तो हमारे प्रभु का साक्ष्य देने में लजाओ और न मुझ से, जो उनके लिए बन्दी हूँ, बल्कि ईश्वर के सामर्थ्य पर भरोसा रख कर तुम मेरे साथ सुसमाचार के लिए कष्ट सहते जाओ। जो प्रामाणिक शिक्षा तुम को मुझ से मिली है, उसे अपना मापदण्ड मान लो और येसु मसीह के विश्वास तथा प्रेम में दृढ़ बने रहो । जो निधि तुम्हें सौंपी गयी है, उसे हम में निवास करने वाले पवित्र आत्मा की सहायता से सुरक्षित रखो ।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हमारे प्रभु येसु मसीह का पिता हमें प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करे जिससे हम देख सकें कि उसके द्वारा बुलाये जाने के कारण हमारी आशा कितनी महान् है। अल्लेलूया !
प्रेरितों ने प्रभु से कहा, "हमें और भी विश्वास दीजिए"। प्रभु ने उत्तर दिया, "यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, उखड़ कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी बात मान लेता ।" यदि तुम्हारा नौकर हल जोत कर या ढोर चरा कर खेत से लौटे तो तुम में कौन ऐसा है जो उस से कहेगा, 'आओ; तुरन्त भोजन करने बैठ जाओ'? क्या वह उस से यह नहीं कहेगा, 'मेरा भोजन तैयार करो । जब तक मैं खा-पी न लूँ, कमर कस कर परोसते रहो । बाद में तुम भी खा-पी-लेना?' क्या स्वामी को उस नौकर को इसीलिए धन्यवाद देना चाहिए कि उसने उसकी आज्ञा का पालन किया है? तुम्हारी भी वही दशा है। सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद तुम को कहना चाहिए, 'हम अयोग्य सेवक भर हैं; हमने अपना कर्त्तव्य मात्र पूरा किया है।"
प्रभु का सुसमाचार।