विश्वमण्डल का प्रभु इस पर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज की तैयारी करेगा उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी । वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा, वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा । प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा । क्योंकि प्रभु ने यह कहा है। उस दिन लोग कहेंगे- देखो ! यही हमारा ईश्वर है। उसी से हमें अपने उद्धार की आशा थी। यही प्रभु है, उसी पर भरोसा था । हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि उसने हमारा उद्धार किया है। इसी पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मैं अनन्तकाल तक ईश्वर के मंदिर में निवास करूँगा ।
1. प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं। वह मुझे हरे मैदानों में चराता है। वह मुझे विश्राम के लिए जल के निकट ले जा कर मुझ में नवजीवन का संचार करता है
2. वह अपने नाम का सच्चा है, वह मुझे धर्म मार्ग पर ले चलता है। चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना ही क्यों न पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नहीं, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है। तेरी लाठी, तेरे डण्डे पर मुझे भरोसा है
3. तू मेरे शत्रुओं के देखते-देखते मेरे लिए खाने की मेज़ सजाता है। तू मेरे सिर पर तेल का विलेपन करता है। तू मेरा प्याला लबालब भर देता है
4. इस प्रकार तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। प्रभु का मंदिर ही मेरा घर है; मैं उस में अनन्तकाल तक निवास करूँगा ।
मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परिपूर्णता हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव – मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव का पूरा अनुभव है। जो मुझे बल प्रदान करते हैं, उनकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूँ। फिर भी आप लोगों ने संकट में मेरा साथ दे कर अच्छा किया है। मेरा ईश्वर आप लोगों को येसु मसीह द्वारा महिमान्वित कर उदारतापूर्वक आपकी सब आवश्यकताओं को पूरा करेगा। हमारे ईश्वर तथा पिता को अनन्तकाल तक महिमा । आमेन ।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया !
येसु ने महायजकों और जनता के नेताओं से कहा, "स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया। उसने आमंत्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा; लेकिन वे आना नहीं चाहते थे। राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कह कर भेजा, 'अतिथियों से कह दो देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है। मेरे बैल और मोटे-मोटे जानवर मारे जा चुके हैं; सब कुछ तैयार है; विवाह-भोज में पधारिए ।' अतिथियों ने इसकी परवाह नहीं की। कोई अपने खेत की ओर चला गया, तो कोई अपना व्यापार देखने । दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़ कर उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला। राजा को बहुत क्रोध हुआ। उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश किया और उनका नगर जला दिया । "तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'विवाह-भोज की तैयारी तो हो चुकी है, किन्तु अतिथि इसके योग्य नहीं ठहरे । इसलिए चौराहों पर जाओ और जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ।' सेवक सड़कों पर चले गये और भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आये और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर गया।
["जब राजा अतिथियों को देखने आया, तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पड़ी, जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने था । उसने उस से कहा, 'भई ! विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?' वह मनुष्य तो चुप रहा । तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अंधकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।' क्योंकि बुलाये गये तो बहुत हैं पर चुने हुए थोड़े हैं"]
प्रभु का सुसमाचार।