वर्ष का अट्ठाईसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

ईश्वर ने राजा सुलेमान से पूछा था कि तुम क्या चाहते हो और उन्होंने प्रज्ञा तथा विवेक के लिए प्रार्थना की थी। वास्तव में धन-सम्पत्ति नश्वर है, किन्तु प्रज्ञा की प्रेरणा से हम अपना जीवन सफल बना सकते हैं।

प्रज्ञा-ग्रंथ 7:7-11

"उसकी तुलना में मैंने धन-दौलत को कुछ भी नहीं समझा।"

मैंने प्रार्थना की है और मुझे विवेक मिला; मैंने विनती की है और प्रज्ञा का आत्मा मुझपर उतरा । मैंने उसे राजदंड और सिंहासन से ज्यादा पसन्द किया, और उसकी तुलना में धन-दौलत को कुछ नहीं समझा। मैंने उसकी तुलना अमूल्य रत्न से भी नहीं करना चाहा, क्योंकि उसके सामने पृथ्वी का समस्त सोना मुट्ठी भर बालू के सदृश है और उसके सामने चाँदी कीच ही समझी जायेगी । मैंने उसे स्वास्थ्य और सौंदर्य से अधिक प्यार किया और ज्योति की अपेक्षा उसे ज्यादा पसन्द किया, क्योंकि उसकी दीप्ति कभी नहीं बुझती । मुझे उसके साथ-साथ सब उत्तम वस्तुएँ मिल गयीं और उसके हाथों से अपार धन-सम्पत्ति ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 89:12-17

अनुवाक्य : हमें अपना प्रेम दिखा, जिससे हम आनन्द मना सकें।

1. हमें जीवन की क्षणभंगुरता सिखा, जिससे हम में सद्बुद्धि आये। हे प्रभु ! क्षमा कर। हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें? तू अपने सेवकों पर दया कर

2. तू भोर को हमें अपना प्रेम दिखा, जिससे हम दिन भर आनन्द के गीत गा सकें। दण्ड के दिनों और विपत्ति के वर्षों के बदले हम को भविष्य में सुख-शांति प्रदान कर

3. तेरे सेवक तेरे महान् कार्य देखें और उनकी सन्तान तेरी महिमा के दर्शन करें। प्रभु की मधुर कृपा हम पर बनी रहे और हमारे सब कार्यों पर तेरी आशिष।

📘दूसरा पाठ

ईश्वर का वचन हमें नया जीवन प्रदान करता है। हम उसे स्वीकार करें और उसके निर्देशों पर चलते रहें । तब हम ईश्वर से, जो सब कुछ जानता है, नहीं डरेंगे और भरोसे के साथ उसे अपने जीवन का लेखा दे सकेंगे।

इब्रानियों के नाम पत्र 4:12-13

"ईश्वर का वचन हमारे मन के भावों और विचारों को प्रकट करता है।"

ईश्वर का वचन जीवन्त, सशक्त और किसी भी दुधारी तलवार से तेज है। वह हमारी आंत्मा के अंतरतम तक पहुँचा जाता है और हमारे मन के भावों तथा विचारों को प्रकट करता है। ईश्वर से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। उसकी आँखों के सामने सब कुछ निरावरण और खुला है। उसी को हमें लेखा देना पड़ेगा ।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है, वह सब तुम्हें बता दिया है"। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

येसु कहते हैं कि धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश 'करना कठिन है। धन अपने में बुरा नहीं है, किन्तु बहुत-से लोग उसे प्राप्त करने के लिए अन्याय करते हैं और उसे प्राप्त करने के बाद परलोक की चिन्ता नहीं करते । धनी युवक अपनी सम्पत्ति के कारण ही येसु का निमंत्रण अस्वीकार करता है ।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:17-30

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]
"अपना सब कुछ बेच दो और मेरा अनुसरण करो ।"

येसु प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक मनुष्य दौड़ता हुआ आया और उसके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, "भले गुरु ! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?" येसु ने उस से कहा, "मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ और कोई भला नहीं। तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो" । उसने उत्तर दिया, "गुरुवर ! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ" । येसु ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, “तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी । तब आ कर मेरा अनुसरण करो।" यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था। येसु ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, "धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा"। शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। येसु ने उन से फिर कहा, "बच्चो ! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है ! सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है"। शिष्य और भी विस्मित हो गये और आपस में कहने लगे, "तो फिर कौन बच सकता है?" उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए येसु ने कहा, "मनुष्यों के लिए तो यह असंभव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।"

[ तब पेत्रुस ने कहा, "देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं"। येसु ने कहा, "मैं तुम से कहे देता हूँ - ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो और जो अब, इस लोक में सौ-गुना न पाये घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार, और परलोक में अनन्त जीवन"।]

प्रभु का सुसमाचार।