नामन नामक कोढ़ी ने जा कर यर्दन नदी में सात बार डुबकी लगायी, जैसा कि एलीसय ने उस से कहा था, और उसका शरीर फिर छोटे बालक के शरीर जैसा स्वच्छ हो गया। वह अपने सब परिजनों के साथ एलीसय के यहाँ लौटा। वह भीतर जा कर उसके सामने खड़ा हो गया और बोला, "अब मैं जान गया हूँ कि इस्राएल को छोड़ कर और कहीं पृथ्वी पर कोई देवता नहीं है। अब मेरा निवेदन है कि आप अपने सेवक से कोई उपहार स्वीकार करें"। एलीसय ने उत्तर दिया, "उस प्रभु की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ; मैं कुछ भी स्वीकार नहीं करूँगा"। नामन के अनुरोध करने पर भी उसने स्वीकार नहीं किया । तब नामन ने कहा, "जैसा आप चाहते हैं। आज्ञा दीजिए कि मुझे दो खच्चरों का बोझ मिट्टी मिल जाये, क्योंकि मैं अब से प्रभु को छोड़ कर किसी और देवता को होम अथवा बलि नहीं चढ़ाउँगा"।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया है।
1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ; क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है
2. प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया और सभी राष्ट्रों को अपना न्याय दिखाया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रख कर इस्राएल के घराने की सुध ली है
3. पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। समस्त पृथ्वी आनन्द मनाये । और ईश्वर की स्तुति करे।
दाऊद के वंशज येसु मसीह को बराबर याद रखो, जो मेरे सुसमाचार के अनुसार मृतकों में से जी उठे हैं। इस सुसमाचार की सेवा में मैं कष्ट पाता हूँ और अपराधी की तरह बन्दी हूँ। परन्तु ईश्वर का वचन बन्दी नहीं होता। मैं चुने हुए लोगों के लिए सब कुछ सह लेता हूँ, जिससे वे भी येसु मसीह के द्वारा मुक्ति तथा सदा बनी रहने वाली महिमा प्राप्त करें। यह कथन सुनिश्चित है - यदि हम उनके साथ मर गये, तो हम उनके साथ जीवन भी प्राप्त करेंगे; यदि हम दृढ़ रहें, तो उनके साथ राज्य करेंगे; यदि हम उन्हें अस्वीकार करेंगे, तो वह भी हमें अस्वीकार करेंगे; यदि हम मुकर जायेंगे, तो भी वह सत्यप्रतिज्ञ बने रहते हैं, क्योंकि वह अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा आत्मा और जीवन है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया !
येसु येरुसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा-क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे। किसी गाँव में प्रवेश करते समय उन्हें दस कोढ़ी मिले। वे दूर खड़े हो कर ऊँचे स्वर से पुकारने लगे, "हे येसु ! हे गुरु ! हम पर दया कीजिए"। येसु ने उन्हें देख कर कहा, "जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ" और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये । तब उन में से एक यह देख कर कि मैं नीरोग हो गया हूँ, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा। वह येसु को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था। येसु ने कहा, "क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?" तब उन्होंने उस से कहा, "उठो, जाओ । तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है"।
प्रभु का सुसमाचार।