प्रभु वह न्यायधीश है जो पक्षपात नहीं करता। वह दरिद्र के साथ अन्याय नहीं करता। और पद्दलित की पुकार सुनता है। वह विनय करने वाले अनाथ अथवा अपना दुखड़ा रोने वाली विधवा का तिरस्कार नहीं करता। जो सारे हृदय से प्रभु की सेवा करता है, उसकी सुनवाई होती है और उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईश्वर तक पहुँचती है। वह तब तक आग्रह करता रहता जब तक सर्वोच्च ईश्वर उस पर दयादृष्टि न करे और धर्मियों को न्याय न दिलाये। प्रभु देर नहीं करेगा, वह शीघ्र ही उनके पक्ष में निर्णय देगा।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी और प्रभु ने उसकी सुनी।
1. मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कंठ निरन्तर उसकी स्तुति करेगा। मेरी आत्मा प्रभु पर गौरव करेगी। विनम्र, सुन कर, आनन्दित हो उठेंगे।
2. प्रभु कुकर्मियों से मुँह फेर लेता और पृथ्वी पर से उनकी स्मृति मिटा देता है। धर्मी प्रभु की दुहाई देते हैं। वह उनकी सुनता और हर प्रकार की विपत्ति में उनकी रक्षा करता है।
3. प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया है, वह उन्हें सँभालता है। प्रभु अपने सेवकों की आत्मा को छुड़ाता है। जो प्रभु की शरण में आता है, वह कभी नष्ट नहीं होगा।
मैं प्रभु को अर्पित किया जा चुका हूँ; मेरे चले जाने का समय आ गया है। मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ, और पूर्ण रूप से ईमानदार रहा हूँ। अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है। जिसे न्यायी विचार-पति प्रभु मुझे उस दिन प्रदान करेंगे मुझ को ही नहीं, बल्कि उन संबों को जिन्होंने प्रेम के साथ उनके प्रकट होने के दिन की प्रतीक्षा की है। जब मुझे पहली बार कचहरी में अपनी सफाई देनी पड़ी, तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया – सबों ने मुझे छोड़ दिया। आशा है उन्हें इसका लेखा देना नहीं पड़ेगा परन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की और मुझे बल प्रदान किया। जिससे मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ और सभी राष्ट्र उसे सुन सकें। मैं सिंह के मुँह से बच निकला। प्रभु मुझे दुष्टों के हर फन्दे से छुड़ायेगा। वह मुझे सुरक्षित रखेगा और अपने स्वर्गराज्य तक पहुँचा देगा। उसी को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं। अल्लेलूया!
कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। येसु ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया, "दो मनुष्य प्रार्थना करने के लिए मंदिर गये, एक फ़रीसी और दूसरा नाकेदार। फ़रीसी तन कर खड़ा हो गया और मन-ही-मन इस प्रकार प्रार्थना करने लगा, 'हे ईश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस नाकेदार की तरह ही। मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ। और अपनी सारी आय का दशमांश चुका देता हूँ।' नाकेदार कुछ दूरी पर खड़ा रहा। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हो रहा था। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, 'हे ईश्वर! मुझ पापी पर दया कर'। मैं तुम से कहता हूँ वह नहीं, बल्कि यही पापमुक्त हो कर अपने घर गया। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा; परन्तु जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।"
प्रभु का सुसमाचार।