वर्ष का इकतीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष B

📕पहला पाठ

मनुष्य का कल्याण इस में है कि वह ईश्वर के बताये हुए मार्ग पर चले। ईश्वर के नियम हमें ईश्वर की ओर ले जाते हैं। वही हमारा एकमात्र लक्ष्य है। वही हमारी सुख-शांति का आधार है।

विधि-विवरण ग्रंथ 6:2-6

"हे इस्त्राएल! सुनो। तुम अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय से प्यार करो।”

मूसा ने लोगों से यह कहा, "यदि तुम अपने पुत्रों और पौत्रों के साथ, जीवन भर अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे, और उसके जो नियम और आदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, तो तुम्हारी आयु लम्बी होगी। हे इस्राएल! यदि तुम सुनोगे और सावधानी से उनका पालन करोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा, तुम फलोगे फूलोगे और जैसा कि प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने कहा था, वह तुम्हें वह देश प्रदान करेगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। हे इस्राएल! सुनो। हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है। तुम अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो। जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें"।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 17:2-4,47,51

अनुवाक्य : हे प्रभु! मैं तुझे प्यार करता हूँ। तू मेरा बल है।

1. हे प्रभु! मैं तुझे प्यार करता हूँ, तू मेरा बल है। तूने मुझे अत्याचार से बचा लिया है। प्रभु ही मेरी चट्टान और मेरा गढ़ है, मेरे ईश्वर ने मेरा उद्धार किया है। धन्य है प्रभु! मैंने उसे पुकारा और उसने मुझे शत्रुओं से बचा लिया।

2. प्रभु की जय! धन्य है मेरी चट्टान! मेरे मुक्तिदाता ईश्वर की स्तुति हो। जिसे तूने राज्याभिषेक दिया है, उसे तू सँभालता और जिलाता है।

📘दूसरा पाठ

इकतीसवाँ सप्ताह इतवार यहूदी महायाजक मनुष्य मात्र थे। वे अपने पापों के लिए और बाद में प्रजा के पापों के लिए प्रतिदिन बलिदान चढ़ाया करते थे। येसु मसीह हमारे निष्पाप महायाजक हैं। उन्होंने एक ही बार में समस्त मानव जाति के पापों के लिए पूर्ण प्रायश्चित्त किया है।

इब्रानियों के नाम पत्र 7:23-28

"मसीह सदा बने रहते हैं, इसलिए उनकी पुरोहिताई चिरस्थायी है।"

वे बड़ी संख्या में पुरोहित बनाये जाते थे, क्योंकि मृत्यु के कारण अधिक समय बना रहना उनके लिए संभव नहीं था। येसु सदा बने रहते हैं, इसलिए उनकी पुरोहिताई चिरस्थायी है। यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा ईश्वरं की शरण लेते, वह उन्हें परिपूर्ण मुक्ति दिलाने में समर्थ हैं; क्योंकि वह उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित रहते हैं। यह उचित ही था कि हमें इस प्रकार का महायाजक मिले- पवित्र, निर्दोष, निष्कलंक, पापियों से सर्वथा भिन्न और स्वर्ग से भी ऊँचा। अन्य महायाजक पहले अपने पापों के लिए और बाद में प्रजा के पापों के लिए प्रतिदिन बलिदान चढ़ाया करते हैं। येसु को इसकी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उन्होंने यह कार्य एक ही बार में उस समय पूरा कर दिया जब उन्होंने अपने को बलि चढ़ाया। संहिता तो दुर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है, किन्तु संहिता के समाप्त हो जाने के बाद ईश्वर की शपथ के अनुसार वह पुत्र महायोजक नियुक्त किया जाता है जो सदा के लिए परिपूर्ण बना दिया गया है।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया!

📒जयघोष

📙सुसमाचार

मूसा की संहिता के छह सौ तेरह नियमों में से कौन-कौन नियम अधिक महत्त्व रखते हैं, उसके विषय में यहूदी शास्त्री अकसर तर्क-वितर्क करते थे। येसु का धर्म प्रेम का धर्म है, इसलिए वह ईश्वर तथा पड़ोसी का प्रेम सब से आवश्यक बताते हैं।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 12:28-34

"पहली आज्ञा यह है। दूसरी इसके सदृश है।"

एक शास्त्री येसु के पास आया। उसने यह विवाद सुना था और यह देख कर कि येसु ने सदूकियों को ठीक उत्तर दिया है, उन से पूछा, "सब से पहली आज्ञा कौन-सी है? " येसु ने उत्तर दिया, "पहली आज्ञा यह है हे इस्त्राएल, सुनो! हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है। अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपने सारे मन और सारी शक्ति से प्यार करो। दूसरी आज्ञा यह है अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इन से बड़ी कोई आज्ञा नहीं है।" शास्त्री ने उन से कहा, “ठीक है, गुरुवर! आपने सच कहा है। एक ही ईश्वर है, उसके सिवा और कोई नहीं है। उसे अपने सारे हृदय, अपनी सारी बुद्धि और अपनी सारी शक्ति से प्यार करना, और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना, यह हर प्रकार के होम और बलिदान से बढ़ कर है।" येसु ने उसका विवेकपूर्ण उत्तर सुन कर उस से कहा, "तुम ईश्वर के राज्य से दूर नहीं हो।" इसके बाद किसी को येसु से और प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ।

प्रभु का सुसमाचार।