सर्वगुणसम्पन्न पत्नी किसे मिल पाती है! उसका मूल्य मोतियों से भी बढ़ कर है। उसका पति उस पर पूरा-पूरा भरोसा रखता और उस से बहुत लाभ उठाता है। वह कभी अपने पति के साथ बुराई नहीं, बल्कि जीवन भर उसकी भलाई करती रहती है। वह ऊन और सन खरीद लाती और कुशल हाथों से कपड़े तैयार करती है। उसके हाथों में चरखा रहा करता है; उनकी उँगलियाँ तकली चलाती हैं। वह दीन-दुखियों के लिए उदार है। और गरीबों को सँभालती है। रूप-रंग माया है और सुन्दरता निस्सार है। बुद्धिमती स्त्री ही प्रशंसनीय है। उसके परिश्रम का फल उसे दिया जाये और उसके कार्य सर्वत्र उसकी प्रशंसा करें।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं।
1. धन्य हो तुम, जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हो और उसके मार्ग पर चलते हो। तुम अपने हाथ की कमाई से सुखपूर्वक जीवन बिताओगे।
2. तुम्हारी पत्नी तुम्हारे घर के आँगन में दाखलता की भाँति फलेगी फूलेगी। तुम्हारी सन्तान जैतून की टहनियों की भाँति तुम्हारे चौके की शोभा बढ़ायेगी।
3. जो ईश्वर पर भरोसा रखता है, उसे वही आशिष प्राप्त होगी। ईश्वर सियोन पर्वत पर से तुम्हें मंगलमय येरुसालेम में जीवन भर आशीर्वाद प्रदान करे।
भाइयो! आप लोग भली-भाँति जानते हैं कि प्रभु का दिन रात के चोर की तरह आयेगा। इसलिए इसके निश्चित समय के विषय में आप को कुछ लिखने की कोई जरूरत नहीं। जब लोग यह कहेंगे अब तो शांति और सुरक्षा है, तभी विनाश, गर्भवती पर प्रसव पीड़ा की तरह, उन पर अचानक आ पड़ेगा और वे उस से नहीं बच सकेंगे। भाईयो! आप तो अंधकार में नहीं हैं, जो वह दिन आप पर चोर की भाँति अचानक आ पड़े। आप सब ज्योति की सन्तान हैं, दिन की सन्तान हैं। हम रात या अंधकार के नहीं। इसलिए हम दूसरों की तरह न सो जायें; बल्कि जागते रहें और नशाबाजी नहीं करें।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया! जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम भरोसे के साथ मानव पुत्र के पास खड़े हो जाने के योग्य बन जाओ। अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त सुनाया, "स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी। उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया।
[ जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, वह तुरन्त उनके साथ लेन-देन करने लगा और उसने और पाँच हज़ार अशर्फियाँ कमा लीं। उसी तरह जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं उसने और दो हजार कमा लीं। लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं, वह गया और भूमि खोद कर उसने अपने स्वामी का धन छिपा दिया। ]
"बहुत्त समय बाद उन सेवकों का स्वामी लौटा और उन से लेखा लेने लगा। जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने पाँच हजार ला कर कहा, 'स्वामी! आपने मुझे पाँच हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं; देखिए, मैंने और पाँच हजार कमायीं।'
[ उसके स्वामी ने उस से कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' इसके बाद वह आया, जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं; उसने कहा, 'स्वामी! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायी।' उसके स्वामी ने उस से कहा : शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' अंत में वह आया जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इसे लौटाता हूँ।' स्वामी ने उसे उत्तर दिया, 'दुष्ट और आलसी सेवक! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और मैंने जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ। तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता। इसलिए इस से ये हज़ार अशर्फ़ियाँ लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो; क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी लिया जायेगा, जो उसके पास है। और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अंधकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।"]
प्रभु का सुसमाचार।