आगमन का पहला सप्ताह, मंगलवार

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

नबी इसायस का ग्रन्थ 11,1-10

“प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा”।

येस्से के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा। प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर-भक्ति का आत्मा। वह प्रभु पर श्रद्धा रखेगा। वह न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा और न सुनी-सुनायी के अनुसार निर्णय देगा। वह न्यायपूर्वक दीन-दु:खियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देश के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा। वह अपने शब्दों के डण्डे से अत्याचारियों को मारेगा और अपने निर्णयों से कुकर्मियों का विनाश करेगा। वह न्याय को वस्त्र की तरह पहन लेगा और सच्चाई को कमरबन्द की तरह धारण करेगा। तब भेडिया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछड़ा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हाँक कर ले चलेगा। गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। सिंह बैल की तरह भूसा खायेगा। दूधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा। समस्त पवित्र पर्वत पर कोई भी न तो बुराई करेगा और न किसी की हानि; क्योंकि जिस तरह समुद्र जल से भरा है, उसी तरह देश प्रभु के ज्ञान से भरा होगा। उस दिन, येस्से की सन्तति राष्ट्रों के लिए एक चिह्न बन जायेगी। सभी लोग उसके पास आयेंगे और उसका निवास महिमामय होगा।

प्रभु की वाणी है।

📖भजन : स्तोत्र 71:1-2,7-8,12-13,17

अनुवाक्य : उनके राज्यकाल में न्याय फलेगा-फूलेगा और अपार शांति सदा-सर्वदा छायी रहेगी।

1. हे ईश्वर ! राजा को अपना न्याय-अधिकार, राजपुत्र को अपनी न्यायप्रियता प्रदान कर, जिससे वह तेरी प्रजा का न्यायपूर्वक शासन करें और पददलितों की रक्षा करें।

2. उनके राज्यकाल में न्याय फलेगा-फूलेगा और अपार शांति सदा-सर्वदा छायी रहेगी। उनका राज्य एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक, पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जायेगा।

3. वह दुहाई देने वाले दरिद्रों और पद्दलितों की रक्षा करेंगे, वह निस्सहाय और दरिद्र पर तरस खा कर पद्दलितों के प्राण बचायेंगे।

4. उनका नाम सदा-सर्वदा धन्य हो और सूर्य की तरह बना रहे। वह पृथ्वी के सब निवासियों का कल्याण करेंगे और समस्त राष्ट्र उन्हें धन्य कहेंगे।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! देखो, हमारा प्रभु सामर्थ्य के साथ आयेगा और अपने सेवकों की आँखों को ज्योति प्रदान करेगा। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:21-24

“येसु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्दित हो उठे। ”

येसु ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, “हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। हाँ, पिता यही तुझे अच्छा लगा। मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र को छोड़कर यह कोई भी नहीं जानता कि पिता कौन है। केवल वही जानता है जिसके लिए पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे। तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकांत में उन से कहा, “धन्य हैं वे आँखें, जो यह सब देखती हैं जिसे तुम देखते हो ! क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको देखा नहीं और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उनको सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको सुना नहीं। ''

प्रभु का सुसमाचार।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें पिता को जानने का आशीर्वाद देते हैं। यदि हमें पिता को जानने की इच्छा है, तो हमें पुत्र येसु में विश्वास करने की आवश्यकता है। क्योंकि पुत्र को छोड़कर कोई भी पिता को नहीं जानता है, और पुत्र के द्वारा ही हम पिता को देख और जान सकते हैं। वचन कहता है — “जिसने मुझको देखा है, उसने पिता को देखा है।” इससे यह स्पष्ट होता है कि पिता और पुत्र एक हैं, और पिता पुत्र में हैं। इसलिए प्रभु येसु कहते हैं, “धन्य हैं वे आँखें और कान जिनसे तुम देखते और सुनते हो,” क्योंकि बहुत से नबी और राजा इसे देखना और सुनना चाहते थे।

डीकन कपिल देव - ग्वालियर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


In today’s Gospel, Jesus blesses us with the grace to know the Father. If we truly desire to know the Father, we must believe in the Son, Jesus. For no one knows the Father except the Son, and it is through the Son that we can see and know the Father. As the Word says, “Whoever has seen me has seen the Father.” This clearly shows that the Father and the Son are one, and the Father is in the Son. Therefore, Jesus says, “Blessed are the eyes that see and the ears that hear,” for many prophets and kings longed to see and hear what you do.

-Deacon Kapil Dev (Gwalior Diocese)


📚 मनन-चिंतन

ईश्वर के साथ हमारे रिश्ते में संवाद एक अनिवार्य हिस्सा है। हम ईश्वर के साथ जितना अधिक संवाद में समय बिताएंगे उतना ही अधिक हम उनके करीब पहुंचेंगे। इस प्रकार, संवाद ईश्वर के साथ गहरी मित्रता और संबंध को सुगम बनाता है। आज के हमारे सुसमाचार में येसु अपनी प्रार्थना के माध्यम से हमारे निर्माता पिता ईश्वर से संवाद करते हैं। वह पिता की स्तुति करते है, येसु ने केवल स्तुति देने के लिए पिता से संवाद नहीं किया। येसु संवाद किया क्योंकि वह अपने पिता के लिए तरसते है और इस चाहत के माध्यम से वह उनके साथ गहरी एकता बनाते है। हमें भी अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में ईश्वर के लिए सदैव लालसा या प्यास रखनी चाहिए। हमें हमेशा उनके साथ संवाद करना चाहिए। यदि हम ईश्वर के साथ नियमित प्रार्थना के क्षण नहीं बिताएंगे तो हमारा क्या होगा? हम खाली गोले बन जाते हैं जो बाहर से मजबूत दिखते हैं लेकिन अंदर से आध्यात्मिक रूप से खोखले होते हैं। आइए हम अपने जीवन के हर दिन ईश्वर के साथ नियमित रूप से प्रार्थना करें। आइए हम उसकी स्तुति करें, आइए हम उसे उन सभी आशीर्वादों के लिए धन्यवाद दें जो वह हमें दे रहे है।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Do you have your regular communication time with God? Communication is an essential part with our relationship with God. The more communication time we have with God the more we would get closer to Him. Thus, communication facilitates deeper friendship and relationship with God. Jesus in our gospel for today communicates through His prayer to God our Father the creator. He gives praise to the Father, Jesus did not only communicate to the Father to give praise. He communicated because he longs for His Father and it’s through this longing that He builds deeper oneness with Him. We too must always have this longing or thirst for God in every moment of our lives. We must always communicate with Him for He is our lifeline in this world. What would happen to us if we would not have our regular prayer moments with God? We become empty shells that look sturdy outside but deep inside are spiritually shallow. Let us always have our regular prayer moment with God in everyday of our lives. Let us give praise to Him let us thank Him for all of the blessings that He has been giving us.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज हमारे सुसमाचार पाठ में, हम येसु को ईश्वर की स्तुति करते हुए सुनते हैं कि उसने कुछ बातों को बुद्धिमानों से छुपाया और उन्हें केवल निरे बच्चों पर प्रकट किया। ये निरे बच्चे कौन हैं जिनका जिक्र येसु कर रहे थे? वे उनके शिष्य है जो उस समय मिशन से खुशखबरी लेकर लौटे थे। उन्हें दो-दो करके आस-पास के गाँवों में जहाँ वे स्वयं जाने वाले थे, भेजे जाने पर, वे यह कहते हुए आनन्दित होकर लौटे कि शैतान भी उनके अधीन हैं। तब येसु ने उनकी ओर से ईश्वर की स्तुति की।

यदि येसु शिष्यों को बच्चों के रूप में संदर्भित कर रहे थे, तो बुद्धिमान या ज्ञानी कौन हैं? ज्ञानी वे हैं जो अपने आप में और दुनिया के ज्ञान से इतने भरे हुए हैं कि उन्हें लगता है कि उन्हें ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है। कल ही, हमने उस शतपति के बारे में पढ़ा जिसने येसु को अपने यहाँ आने के लिए अपने आपको अयोग्य समझा, यह उस प्रकार की विनम्रता का उदाहरण है जिसकी ईश्वर हमसे अपेक्षा करते है; एक ऐसी विनम्रता जो हमारी आँखों को उन चीजों को देखने के लिए खोलती है जो घमंड हमसे छुपाता है।

आगमन के इस काल के दौरान, एक सवाल हमें खुद से लगातार पूछना चाहिए, ‘‘मैं खुद को विनम्र करने और अपनी शून्यता को स्वीकार करने के लिए कितना तैयार हूँ?’’ विनम्रता एक ऐसा महान गुण है, जो वास्तव में उच्च स्थानों पर प्रवेश हेतु मदद प्रदान करता है।

आइए हम प्रार्थना करें कि प्रभु येसु हमें आगमन के इस काल में अधिक विनम्र होने में मदद करें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

In our Gospel passage today, we hear Jesus blessing God for hiding certain things from the wise and revealing them to mere infants. Who are these infants Jesus was referring to? They are His disciples who had just returned from the missions with good news. Having sent them two by two into the surrounding villages that he himself was to visit, they came back with joy saying that even the demons are subject to them. That was when Jesus blessed God on their behalf.

If Jesus was referring to the disciples as infants, who then are the wise? The wise are those so full of themselves and full of their knowledge of the world that they feel they have no need for God. Just yesterday, we read about the Centurion who did not consider himself worthy enough to have Jesus come under his roof, this is an example of the kind of humility God requires of us; a humility that opens our eyes to see things that pride hides from us.

In the course of this season of Advent, one question we must continuously ask ourselves is: “How willing am I to humble myself and come to terms with my nothingness?” Humility is such a great virtue, it gives access to really high places.

Let us pray that Lord Jesus may help us to be more humble in this Advent season. Amen!

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

प्रभु येसु द्वारा प्रचारित ईश्वर के राज्य में बच्चों का एक महान स्थान है। मासूमियत, सीखने की उत्सुकता, तुरंत विश्वास करने में तत्परता और क्षमा करने और भूलने की क्षमता रखने वाले बच्चे ईश्वर के राज्य में आसानी से प्रवेश करते हैं। उनके लिए ईश्वरीय रहस्योद्घाटन और दिव्य तरीकों को स्वीकार करना आसान है। हम इन सराहनीय गुणों के साथ इस दुनिया में आते हैं, फिर भी समय बीतने के साथ, जिस दुनिया में हम रहते हैं, वह हमारे तरीकों को प्रभावित करती है और अंतत: हम सांसारिक तरीकों को अपनाने लगते हैं। इस प्रकार ईश्वर के दिव्य तरीकों को समझना तथा अपनाना हमारे लिए मुशकिल हो जाता है। इस आध्यात्मिक बालकपन की पुन:प्राप्ति के लिए हमें मेहनत करना चाहिए। अधिकांश संतों ने ऐसा ही किया था। अमेरिकी लेखक और कवि जॉन लैंकेस्टर स्पेलडिंग का कहना है, "प्रतिभाशाली व्यक्ति बच्चों के समान है। वह इस दुनिया को बच्चों की तरह एक नई रचना के रूप में देखता है और वहाँ आश्चर्य और खुशी का एक नित्य स्रोत पाता है। ”

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In the Kingdom of God preached by Jesus children have a great place. Children with qualities of innocence, eagerness to learn, promptness in believing instantly and ability to forgive and forget easily enter the Kingdom of God. It is easy for them to accept the divine revelation and divine ways. We are created with these admirable qualities, yet with the passage of time, the world in which we live influences us and maneuvers our ways, finally making us go into worldly ways. It then leaves very little space and chance for us to understand divine ways. It is important for us to recover this childlikeness. This is what most of the Saints did. The American Author and poet John Lancaster Spalding says, “The genius is childlike. Like children he looks into the world as into a new creation and finds there a perennial source of wonder and delight.”

-Fr. Francis Scaria