आगमन का पहला सप्ताह, बृहस्पतिवार

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📕पहला पाठ

नबी इसायस का ग्रन्थ 26:1-6

“सद्धर्मी राष्ट्‌ उस में प्रवेश करेगा।”

उस दिन यूदा देश में यह गीत गाया जायेगा : हमारा नगर सुदृढ़ है। उसने हमारी रक्षा के लिए प्राचीर और चहारदीवारी बनायी है। फाटकों को खोल दो - सद्धर्मी और विश्वासी राष्ट्र प्रवेश करे। तू दृढ़तापूर्वक शांति बनाये रखता है, क्योंकि इस राष्ट्र को तुझ पर भरोसा है। प्रभु पर सदा ही भरोसा रखो, क्योंकि वही चिरस्थायी चट्टान है। वह ऊँचाई पर निवास करने वालों को नीचा दिखाता है। वह उनका दुर्गम गढ़ तोड़ कर गिराता और धूल में मिला देता है। अब तो दीन-हीन और दरिद्र उसे पैरों तले रौंदते हैं।

प्रभु की वाणी।

📖भजन स्तोत्र 117:1,8-9,19-21,25-27

अनुवाक्य : धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

1. प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसका प्रेम अनन्तकाल तक बना रहता है। मनुष्यों पर भरोसा रखने की अपेक्षा प्रभु की शरण लेना ही अच्छा है। शासकों पर भरोसा रखने की अपेक्षा प्रभु की शरण लेना ही अच्छा है।

2. मेरे लिए मंदिर के द्वार खोल दो। मैं उस में प्रवेश कर प्रभु को धन्यवाद दूँगा। यह प्रभु का द्वार है, जहाँ धर्मी प्रवेश पाते हैं। मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ ; तूने मेरी प्रार्थना सुनी और मेरा उद्धार किया हे।

3. हे प्रभु ! हमारा उद्धार कर। हे प्रभु ! हमें सुख-शांति प्रदान कर। धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। प्रभु-ईश्वर हमें ज्योति प्रदान करे।

📒जयघोष : इसायाह 55:6

अल्लेलूया ! जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चले जाओ। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देते रहो। अल्लेलूया

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:21,24-27

“जो पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।”

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो लोग 'हे प्रभु ! हे प्रभु !' कह कर मुझे पुकारते हैं, उन में से सब के सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा। जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आंधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।''

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

हमारा ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वह हमारे अंतरतम को जानता है। यदि हम दिखावे के लिए या दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए उसका नाम पुकारते हैं, तो वह इसे भली-भांति जानता है। हमें ऐसे विश्वासी बनने की आवश्यकता है जो प्रभु का नाम केवल मुख से नहीं, बल्कि तन, मन और हृदय से पुकारते हैं। हमें प्रभु पर सच्ची श्रद्धा रखनी चाहिए और उसके अनुकूल जीवन व्यतीत करना चाहिए। हम देखते हैं कि इब्राहिम, इसहाक, याकूब और अन्य धर्मियों ने प्रभु की आज्ञा के अनुसार जीवन जिया, सच्ची श्रद्धा से उसका नाम पुकारा, उसकी आराधना की, और प्रभु ने उन्हें हर संकट से बचाया, उनका सहयोग किया और उन्हें भरपूर आशीष दी। आइए, हम भी प्रभु को सच्चे हृदय और श्रद्धा से पुकारें।

डीकन कपिल देव - ग्वालियर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


Our God is almighty and all-knowing. He knows the depths of our hearts. If we call upon His name for show or to gain praise from others, He is fully aware. We need to become believers who call on the Lord not just with lips but with body, mind, and heart. We should have genuine faith in Him and live life in harmony with Him. We see how Abraham, Isaac, Jacob, and other righteous ones lived by God’s command, called Him with sincere devotion, worshiped Him, and God delivered, aided, and richly blessed them. Let us too call upon the Lord from a true heart and faith.

-Deacon Kapil Dev (Gwalior Diocese)


📚 मनन-चिंतन

यह पाठ हमें ईश्वर की इच्छा के पालन की महत्ता पर बल देता है, जो हमारे और प्रभु के बीच सच्चे संबंध की नींव है। केवल प्रभु को "प्रभु" कहने से कुछ नहीं होता; उनके वचनों के अनुसार जीवन जीना अनिवार्य है। येसु दो भवन निर्माताओं की उपमा देते हैं: एक जो चट्टान पर घर बनाता है (उनके वचनों को मानने वाला) और दूसरा जो रेत पर घर बनाता है (सुनने वाला लेकिन पालन न करने वाला)। धर्मशास्त्रीय दृष्टि से यह विश्वास और कर्म की अविभाज्यता को रेखांकित करता है। सच्चा शिष्यत्व ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीने में है, जिसे प्रभु येसु एक चट्टान पर बने स्थिर घर के रूप में देखते हैं। तूफान जीवन की परीक्षाओं और न्याय को दर्शाते हैं, जिन्हें केवल ईश्वर के वचन में जड़ें जमाने वाले ही सह सकते हैं। प्रभु येसु सतही धार्मिकता और सच्चे विश्वास के बीच अंतर करते हैं। "चट्टान पर घर" उस जीवन को दर्शाता है जो विधान की निष्ठा में आधारित है, जबकि "रेत पर घर" खोखली घोषणाओं की व्यर्थता को प्रकट करता है। यह पाठ आत्मनिरीक्षण का आह्वान करता है: क्या हम केवल सुनने वाले हैं, या ईश्वर के वचनों को करने वाले भी हैं?

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


This passage emphasizes the centrality of obedience to God’s will as the foundation of a true relationship with Him. Jesus highlights that merely calling Him "Lord" is insufficient; what matters is living according to His teachings. He uses the metaphor of two builders: one who builds on rock (obedience to His words) and one who builds on sand (hearing without acting). Theologically, this underscores the inseparability of faith and works. True discipleship requires aligning our lives with the will of God, which Jesus equates with the stability of a house built on rock. The storms represent the trials and judgments of life. Only those rooted in God’s word can withstand them. Jesus contrasts superficial religiosity with genuine faith. The “house on the rock” reflects a life grounded in covenantal faithfulness, while the “house on the sand” reveals the futility of empty declarations. This teaching calls for introspection: Are we mere hearers, or are we doers of God’s word?

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

हम सभी जानते हैं कि सुनना-सुनने से कहीं अधिक सरल है। जब मैं दूसरे व्यक्ति को सुनता हूं, तो मैं वस्तुतः उनके शब्दों और विषय-वस्तु को सुनता हूं। हालाँकि, मैं भावनाओं या अर्थ की उन परतों को नहीं सुन सकता जो व्यक्ति व्यक्त करने का प्रयास कर रहा होगा। जब हम सचमुच उस पर ध्यान देते हैं जो दूसरा व्यक्ति कह रहा है, तो हम न केवल उनके शब्दों को सुनते हैं, बल्कि हम उनकी आवाज़ के स्वर, चेहरे की अभिव्यक्ति, चिंता के स्तर या उनकी शांति की भावना पर भी ध्यान देते हैं। हमें यह भी पता चल सकता है कि उन्होंने क्या नहीं कहा है। हमारा अधिकांश दिन यह सुनने में व्यतीत होता है कि दूसरे क्या कह रहे हैं। हालाँकि, येसु यह भी चाहते हैं कि हम उनकी बात सुनें। वह चाहते है कि हम सचमुच उस पर ध्यान दें जो वह कह रहे है। अपने पवित्र नियम में, संत बेनेडिक्ट हमें निर्देश देते हैंः “अपने दिल के कान से सुनो!“ कानों से सुनना हमारा दूसरा स्वभाव है। हालाँकि जब हम “अपने दिल से सुनते हैं“, तो हम दूसरे व्यक्ति के प्रति पूरी तरह से उपस्थित और चौकस होते हैं। आज येसु आपको (और मुझे) “अपने दिल के कान से ध्यानपूर्वक सुनने“ के लिए आमंत्रित करते हैं।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


We all know that there is a clear difference between hearing and listening. Hearing is much simpler than listening. When I hear the other person, I literally hear their words and the content. However, I may not hear the layers of emotion or meaning that the individual may be trying to convey. When we truly attend to what another person is saying, we not only hear their words, we also are attentive to their tone of voice, facial expression, anxiety level or their sense of calm. We also may get a sense of what they have not said. Much of our day is spent hearing what others are saying. However, Jesus also wants us to listen to Him. He desires that we truly attend to what He is saying. In his Holy Rule, St. Benedict instructs us: “listen with the ear of your heart!” Listening with our ears is second nature to us. However when we “listen with our hearts,” we are fully present and attentive to the other person. Today Jesus will invite you (and me) to “listen attentively with the ear of your heart.” Will we take the time and give Him the attention He desires?

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-3

प्रभु येसु एक बुध्दिमान व्यक्ति और एक बेवकूफ व्यक्ति की बात करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति अपना घर चट्टान पर बनाता है और बेवकूफ व्यक्ति रेत पर अपना घर बनाता है। प्रभु एक उदार व्यक्ति और एक कंजूस की चर्चा नहीं करते; न ही एक सावधान आदमी और एक लापरवाह आदमी की बात। उनका विषयवस्तु ज्ञान है। चट्टान पर निर्माण करने वाले के पास ज्ञान होता है जबकि रेत पर निर्माण करने वाले के पास इसका अभाव होता है। समझदार व्यक्ति ईश्वर का वचन सुनता है और उस पर कार्य करता है। कुछ भी उसे विचलित, परेशान या नष्ट नहीं कर सकता। उसकी नींव पक्की है। ईश्वर का वचन सर्वज्ञ ईश्वर का ज्ञान है। जो वास्तव में, ईश्वरीय शब्द को प्राप्त करता है, वह ईश्वर का ज्ञान ही प्राप्त करता है। वह ईश्वर के ज्ञान को अपना कर्म बनाता है। स्वाभाविक रूप से वह असफल नहीं हो सकता। आइए हम ईश्वर से इस ज्ञान की कृपा मांगें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus distinguishes between a wise man who builds his house on rock and a stupid man who builds his house on sand. Jesus does not distinguish between a spendthrift and a miser; nor between a careful man and a careless man. What is in question is the wisdom of the person. The person who builds on the rock has wisdom while the person who builds on sand lacks it. The sensible man listens to the Word of God and acts on it. Nothing can shake, disturb or destroy him. He has an unshakeable foundation. The Word of God is the wisdom of the omniscient God. One who receives the Word, in fact, receives the wisdom of God. He makes the wisdom of God his own in action. Naturally he cannot fail. Let us ask the Lord for the grace of this wisdom.

-Fr. Francis Scaria