
इस्राएल का परमपावन प्रभु-ईश्वर यह कहता है - येरुसालेम में रहने वाली सियोन की प्रजा ! अब से तुम लोगों को रोना नहीं पड़ेगा। प्रभु तुम पर अवश्य दया करेगा, वह तुम्हारी दुहाई सुनते ही तुम्हारी सहायता करेगा। प्रभु ने तुम्हें विपत्ति की रोटी खिलायी और दुःख का जल पिलाया है; किन्तु अब तुम्हें शिक्षा प्रदान करने वाला प्रभु अदृश्य नहीं रहेगा - तुम अपनी आँखों से उसके दर्शन करोगे। यदि तुम सम्मार्ग से दायें या बायें भटक जाओगे, तो तुम पीछे से यह वाणी अपने कानों से सुनोगे - “सच्चा मार्ग यह है; इसी पर चलते रहो”। वह तुम्हारे बोये हुए बीज को वर्षा प्रदान करेगा और तुम अपने खेतों की भरपूर उपज से पुष्टिदायक रोटी खाओगे। उस दिन तुम्हारे चौपाये विशाल चरागाहों में चरेंगे। खेत में काम करने वाले बैल और गधे, सूप और डलिया से फटकी हुई, नमक मिली हुई भूसी खायेंगे। महावध के दिन, जब गढ़ तोड़ दिये जायेंगे, तो हर एक उत्तुंग पर्वत और हर एक ऊँची पहाड़ी से उमड़ती हुईं जल-धाराएँ फूट निकलेंगी। जिस दिन प्रभु अपनी प्रजा के टूटे हुए अंगों पर पट्टी बाँधेगा और उसकी चोटों के घावों को चंगा करेगा, उस दिन चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य की तरह होगा और सूर्य का प्रकाश - सात दिनों के सम्मिलित प्रकाश के सदृश - सतगुना प्रचण्ड हो उठेगा।
प्रभु की वाणी।
1. अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो प्रभु पर भरोसा रखते हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु की स्तुति करो, क्योंकि वह भला है। दयालु ईश्वर के भजन गाओ, क्योंकि यह हमारे लिए उचित है। प्रभु येरुसालेम फिर बनवाता और इस्नाएली निर्वासितों को एकत्र कर लेता है।
2. वह दुःखियों को दिलासा देता और उनके घावों पर पट्टी बाँधता है। वह तारों की संख्या निर्धारित करता और प्रत्येक का नाम जानता है।
3. हमारा प्रभु महान् शक्तिमान् और सर्वज्ञ है। वह दीनों को ऊपर उठाता और विधर्मियों को नीचे गिराता है।
अल्लेलूया ! प्रभु हमारा न्यायकर्त्ता, हमारा विधायक और हमारा राजा है। वही हमारा उद्धार करेगा। अल्लेलूया !
येसु सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते, हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करते हुए, सब नगरों और गाँवों में घूमते रहते थे। लोगों को देख कर येसु को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके-माँदे पड़े हुए थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “'फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी 'फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे'!। येसु ने अपने बारह शिष्यों को अपने पास बुला कर उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया और अशुद्ध आत्माओं को निकालने तथा हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करने की शक्ति प्रदान की। येसु ने इन बारहों को ये अनुदेश दे कर भेजा, “अन्य राष्ट्रों के यहाँ मत जाओ और समारियों के नगरों में प्रवेश मत करो, बल्कि इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के यहाँ जाओ। राह चलते यह उपदेश दिया करो - स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। रोगियों को चंगा करो, मुरदों को जिलाओ, कोढ़ियों को शुद्ध करो, नरक-दूतों को निकालो। तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दे दो। “
प्रभु का सुसमाचार।
जिन परिवारों का कोई मुखिया नहीं होता, वे परिवार अक्सर बिखर जाते हैं, क्योंकि बिना मुखिया के चलना कठिन होता है। सुसमाचार में हम देखते हैं कि येसु गाँव-गाँव और शहर-शहर घूमते हुए लोगों को शिक्षा देते और चंगा करते हैं। उन्हें देखकर येसु को लगा कि ये लोग बिना गड़रिये की भेड़ें हैं। उन्होंने न केवल उनकी शारीरिक, बल्कि उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों की भी चिंता की। इसलिए उन्होंने कहा, “फसल तो बहुत है, परंतु मजदूर थोड़े हैं।” प्रभु येसु ने अपने शिष्यों को अशुद्ध आत्माओं को निकालने और हर तरह की बीमारी और दुर्बलता को दूर करने का अधिकार दिया, ताकि वे एक गड़रिये की तरह लोगों की देखभाल कर सकें। जैसा कि भजन 23:1 कहता है, “प्रभु मेरा चरवाहा है, मुझे किसी बात की कमी नहीं।”
✍डीकन कपिल देव - ग्वालियर धर्मप्रांतFamilies without a leader often fall apart, for living without guidance is difficult. In the Gospel, we see Jesus traveling from village to village and city to city, teaching and healing people. Seeing them, He felt that they were sheep without a shepherd. He cared not only for their physical needs but also for their spiritual needs. That is why He said, “The harvest is abundant, but the laborers are few.” Jesus gave His disciples authority to drive out unclean spirits and to heal every disease, sending them as shepherds to care for His flock. As Psalm 23:1 states, “The Lord is my shepherd; I shall not want.”
✍ -Deacon Kapil Dev (Gwalior Diocese)
आज हम देखते हैं कि प्रभु येसु अपने शिष्यों को ईश्वर के राज्य के प्रचार के लिए भेजते हैं। वह उन्हें चंगा करने और दुष्ट आत्माओं को निकालने की शक्ति देते हैं, और उनसे कहते हैं कि वे यह सब बिना किसी प्रत्याशा के करें, अर्थात बिना किसी लाभ की इच्छा रखकर करें। संत अम्ब्रोज, कलीसिया के एक महान धर्माध्यक्ष और धर्मपंडित, ने अपने जीवन को मसीह के संदेश को फैलाने हेतु समर्पित किया और दूसरों को उत्साह और शुद्धता से जीने के लिए प्रेरित किया। मसीह के अनुयायी के रूप में हम भी सुसमाचार को साझा करने और टूटे, बखरे और रोगी संसार को चंगा करने के लिए बुलाए गए हैं। आगमन का समय हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम अपने जीवन में मसीह की बुलाहट के उत्तर में कैसे प्रतिक्रिया दें। क्या हम अपने उपहारों को मसीह की तरह निस्वार्थ रूप से देने के लिए तैयार हैं, या हम पहचान और तारीफ़ की तलाश करते हैं? जैसे कि हम अपने उद्धारकर्ता के जन्म की तैयारी कर रहे हैं, आइए हम आत्म-नवीनीकरण करें और यह निर्णय लें कि हम किस तरह से दूसरों की सेवा और निस्वार्थता में मसीह का अनुसरण करेंगे।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतToday, we encounter Jesus sending out His disciples to proclaim the Kingdom of God. He gives them authority to heal and cast out demons, and He asks them to do this freely, without expecting anything in return. St. Ambrose, a great bishop and doctor of the Church, lived his life devoted to spreading the message of Christ, encouraging others to live with zeal and purity of heart. As followers of Christ, we are also called to share the Good News and bring healing to the brokenness of the world. Advent is a time for us to reflect on how we can answer Christ’s call to mission in our own lives. Are we willing to offer our gifts freely, as Christ did, or are we looking for recognition and rewards? As we prepare for the birth of our Savior, let us renew our commitment to follow Him in generosity, humility, and service to others.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)
“फसल तो प्रचुर है परन्तु मजदूर कम हैं (मत्ती 9:37)।“ ईश्वर के लिए हमारा श्रम कलीसिया में ईसा मसीह के शरीर के असाधारण शिष्यों के रूप में, धर्मप्रचारक और अन्य कलीसिया के सदस्यों के रूप में हमारी सेवा तक सीमित नहीं होना चाहिए। हमें उन लोगों के पास जाकर अपने कलीसिया में अपनी भागीदारी को और अधिक बढ़ाना चाहिए जो भूखे हैं, जो शारीरिक/भावनात्मक रूप से बीमार हैं। हमें येसु को अपने समाज के गरीबों के सामने लाने की जरूरत है क्योंकि उन्हें भी येसु की जरूरत है, उन्हें मार्गदर्शन के लिए येसु की जरूरत है। एक विश्वास जो बढ़ता है वह एक ऐसा विश्वास है जो साझा किया जाता है। जैसे ही हम इस आगमन काल में आगे बढ़ते हैं, आइए हम येसु को गरीबों और वंचितों की मदद करके उपचार के साधन के रूप में उपयोग करने की अनुमति दें।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)“The harvest is abundant but the laborers are few (Matthew 9:37).” Our labor for God must not be limited to our service in the church as Extra-Ordinary Ministers of the Body of Christ, as Catechist, as Lectors and as members of other church ministries. We must put more flesh in our involvement in our church by going out to those who are hungry, who are physically/emotionally sick. We need to bring Jesus out to the poor of our society for they too need Jesus they need Jesus to guide them. A faith that grows is a faith that is shared. As we journey ahead in this Advent season let us allow Jesus to use us as His instrument of healing by helping the poor and the deprived.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में येसु ने इसायाह 61 की भविष्यवाणियों का हवाला देते हुए नाज़रेथ के सभागृह में अपनी कार्य-योजना की घोषणा की। फिर वे उस घोषणापत्र को साकार करने के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे। वे ईश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनाते हुए “सभी नगरों और गाँवों” में घूम रहे थे और “हर तरह की बीमारी और दुर्बलता” दूर कर रहे थे। उन्होंने किसी को अपने सेवाकार्य की सीमा के बाहर नहीं छोड़ा। उन्होंने लोगों की हर समस्या का समाधान किया। वे ईश्वर की प्रजा की 'संपूर्णता' में रुचि रखते थे। वे न केवल सभी को स्वर्गराज्य का संदेश सुनाना चाहते थे, बल्कि वे यह भी चाहते थे कि लोग स्वर्गराज्य के आगमन को अपने दैनिक जीवन में अनुभव करें। वे अपनी टीम में अधिक से अधिक सहकर्मियों को शामिल करना चाहते थे क्योंकि यह कार्य बहुत बड़ा था। उनके सहकर्मियों के चयन के लिए उनके पास केवल एक मानदंड था - उन्हें स्वर्गीय पिता द्वारा बुलाए जाने और भेजे जाने की आवश्यकता थी। इसलिए वे अपने शिष्यों को फसल के स्वामी से प्रार्थना करने को कहते हैं ताकि वे अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजें। यह आज भी एक वास्तविकता है। एक बढ़िया फ़सल के कटने का इंतज़ार है। इस मिशन पर बुलाए जाने और भेजे जाने के लिए कई लोगों की आवश्यकता है, जिन्हें अपनी बुलाहट स्वीकार करने और उसकी पूर्ति के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
At the beginning of his public ministry Jesus proclaimed his manifesto in the synagogue of Nazareth citing the prophecies in Isaiah 61. Then he was on his way to actualise that manifesto. He was going through “all the towns and villages” proclaiming the good news of the Kingdom of God and curing “all kinds of disease and all kinds of illness”. He did not leave anyone out. He addressed every problem of the people. He was interested in the ‘wholeness’ of the people of God. He not only wanted everyone to hear the message of the Kingdom, but he also wanted them experience the Kingdom in their own day to day lives. He wanted to induct into his team as many co-workers as possible because the task was huge. He had only one criterion for the selection of his co-workers – they needed to be called and sent out by the Heavenly Father. So he asks his disciples to pray to the Lord of the harvest to send out labourers into his harvest. This is a reality even today. A great crop is waiting to be harvested. We need many to be called and sent on this mission. Those called need to accept the call and work hard for its fulfilment.
✍ -Fr. Francis Scaria