आगमन का दूसरा सप्ताह – सोमवार

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

नबी इसायस का ग्रन्थ 35:1-10

"ईश्वर स्वयं हमें बचाने आयेगा।”

मरुस्थल और निर्जल प्रदेश आनन्द मनायें। उजाड़ भूमि हर्षित हो कर फले-फूले, वह कुमुदिनी की तरह खिल उठे, वह उल्लास और आनन्द के गीत गाये। उसे लेबानोन का गौरव दिया गया है, कार्मेल तथा शारोन की शोभा। लोग प्रभु की महिमा तथा हमारे ईश्वर के प्रताप के दर्शन करेंगे। थके-माँदे हाथों को शक्ति दो, निर्बल पैरों को सुदृढ़ बना दो। घबराये हुए लोगों से कहो ढारस रखो, डरो मत। देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है। तब अंधों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हिरण की छलाँग भरेगा और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी। मरुस्थल में जल की धाराएँ फूट निकलेंगी, रेतीले मैदानों में नदियाँ बह जायेंगी, सूखी भूमि झील बन जायेगी और प्यासी धरती में झरने निकलेंगे। जहाँ पहले सियारों की माँद थी, वहाँ सरकंडे और बेंत उपजेंगे। वहाँ एक राजमार्ग बिछा दिया जायगा जो 'पवित्र मार्ग' कहलायेगा, कोई भी पापी उस पर नहीं चलेगा। यह सियोन के लौटने का मार्ग है; नास्तिक भूल कर भी उस पर पैर नहीं रखेंगे। वहाँ न तो कोई सिंह विचरेगा और न कोई हिंसक पशु मिलेगा, बल्कि जिनका उद्धार हो गया है, प्रभु ने जिन्हें मुक्त कर दिया है, वे ही उस पर चलेंगे। वे गाते-बजाते हुए सियोन लौटेंगे, वे चिरस्थायी सुख-शांति ले कर आयेंगे, वे आनन्द और उल्लास के साथ लौटेंगे। दुःख और विलाप का अन्त हो जायेगा।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 84:9-14

अनुवाक्य : देखो, हमारा ईश्वर हमें बचाने आ रहा है।

1. प्रभु - ईश्वर जो कुछ कहता है, मैं उसे ध्यान से सुनूँगा। वह अपनी प्रजा को, अपने भक्तों को तथा पश्चात्तापियों को शांति का संदेश सुनाता है। जो उस पर श्रद्धा रखते हैं, उनके लिए मुक्ति निकट है। उसकी महिमा हमारे देश में निवास करेगी।

2. दया और सच्चाई, न्याय और शांति – ये एक दूसरे से मिल जायेंगे। सच्चाई पृथ्वी पर पनपने लगेगी और न्याय स्वर्ग से हम पर दयादृष्टि करेगा।

3. प्रभु हमें सुख-शांति प्रदान करेगा और पृथ्वी फल उत्पन्न करेगी। न्याय उसके आगे-आगे चलेगा और शांति उसके पीछे-पीछे आती रहेगी।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! देखो, प्रभु, संसार का राजा आयेगा। वह हमारी दासता के बन्धन खोल देगा। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:17-26

“आज हमने अद्भुत कार्य देखे हैं।"

येसु किसी दिन शिक्षा दे रहे थे। फरीसी और शास्त्री पास ही बैठे हुए थे - वे गलीलिया तथा यहूदिया के हर एक गाँव से और येरुसालेम से भी आये थे। प्रभु की शक्ति से प्रेरित हो कर येसु लोगों को चंगा करते थे। उसी समय कुछ लोग खाट पर पड़े हुए एक अर्द्धांगरोगी को ले आये। वे उसे अंदर ले जा कर येसु के सामने रख देना चाहते थे। भीड़ के कारण अर्द्धांगरोगी को भीतर ले जाने का कोई उपाय न देख कर वे छत पर चढ़ गये और उन्होंने खपड़े हटा कर खाट के साथ अर्द्धांगरोगी को लोगों के बीच में येसु के सामने उतार दिया। उनका विश्वास देख कर येसु ने कहा, "भाई ! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"। इस पर शास्त्री और फरीसी सोचने लगे, "ईशनिन्दा करने वाला यह कौन है? ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?" उनके ये विचार जान कर येसु ने उन से कहा, 'मन ही मन क्या सोच रहे हो? अधिक सहज क्या है - यह कहना, 'तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं'; अथवा यह कहना, 'उठो और चलो- फिरो'? परन्तु इस लिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है, ( वह अर्द्धांगरोगी से बोले ) मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ।” उसी क्षण वह सबों के सामने उठ खड़ा हुआ और अपनी खाट उठा कर ईश्वर की स्तुति करते हुए अपनें घर चला गया। सब के सब विस्मित हो कर ईश्वर की स्तुति करने लगे। उन पर भय छा गया और वे कहने लगे, "आज हमने अद्भुत कार्य देखे हैं।"

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार पाठ हमें स्वयं से यह पूछने के लिए प्रेरित करता हैः मैं आज्ञाओं को कैसे तोड़ सकता हूँ? या क्या मैं प्रतिदिन आज्ञाओं के अनुसार जीने का प्रयास करता हूँ? मेरा मानना है कि हममें से कई लोगों के लिए हम जो विकल्प चुनते हैं वह संभवतः कुछ आज्ञाओं का पालन करने और अन्य आज्ञाओं को तोड़ने का मिश्रण है। वास्तविकता यह है कि कुछ आज्ञाओं का पालन करना दूसरों की तुलना में आसान होता है। येसु हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि हमें अपने जीवन में चीजों को सही प्रारुप दें। यह कोई आसान रास्ता नहीं है. “मुझे क्षमा करें“ कहना आसान नहीं है। या “मुझसे गलती हुई।“ क्षमा और क्षमा माँगने के लिए विनम्रता की आवश्यकता होती है। हालाँकि, अगर हम विनम्रतापूर्वक माफी मांगते हैं और हमें माफ कर दिया जाता है, तो हमें एक महान उपहार मिला है। और उम्मीद है, हम अपने जीवन में लोगों के साथ क्षमा का उपहार साझा करेंगे।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Today’s Gospel reading may prompt us to ask ourselves: How do I break the commandments? Or do I strive daily to live according to the commandments? I assume that for many of us that the choices we make likely are a mixture of keeping some commandments and breaking other commandments. The reality is that some commandments are easier to keep than others. Jesus is inviting us that we need to make things right in our lives. This is not an easy path to take. It is not easy to say “I’m sorry.” Or “I made a mistake.” It takes humility to ask for pardon and forgiveness. However, if we humbly apologize and we are forgiven, we have received a great gift. And hopefully, we share the gift of forgiveness with the people in our lives.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)