
मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारा दाहिना हाथ पकड़ कर तुम से कहता हूँ- मत डरो, देखो, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। याकूब ! हे इस्राएल ! तुम कीड़े जैसे हो गये हो। प्रभु कहता है - मैं तुम्हारी सहायता करूँगा, इस्राएल का परमपावन प्रभु तुम्हारा उद्धारक है I मैं तुम को दँवरी का यंत्र बनाता हूँ - नया, दुधारा और पैना। तुम पहाड़ों को दाँव कर चूर-चूर करोगे और पहाड़ियों को भूसी बना दोगे। तुम उन्हें ओसाओगे - हवा उन्हें उड़ा ले जायेगी और आँधी उन्हें छितरा देगी। तुम प्रभु में आनन्द मनाओगे और इस्राएल के परमपावन ईश्वर पर गौरव करोगे। दरिद्र पानी ढूँढ़ते हैं और पाते नहीं, उनकी जीभ प्यास के मारे सूख गयी है। मैं, प्रभु उनकी दुहाई पर ध्यान दूँगा; मैं, इस्राएल का ईश्वर उन्हें नहीं त्यागूँगा। मैं उजाड़ पहाड़ियों पर से नदियाँ और घाटियों में जलधाराएँ बहा दूँगा। मैं मरुभूमि को झील बनाऊँगा और सूखी भूमि को जल स्रोतों से भर दूँगा। मैं मरुभूमि में देवदार, बबूल, मेंहदी और जैतून लगा दूँगा। मैं उजाड़खण्ड में खजूर, चीड़ और चनार के वृक्ष लगाऊँगा। इस प्रकार सब देख कर जानेंगे, सब उस पर विचार कर स्वीकार करेंगे कि प्रभु ने यह सब किया है, इस्राएल के परमपावन ईश्वर ने इसकी सृष्टि की है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य :प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील और अत्यन्त प्रेममय है।
1. हे मेरे ईश्वर ! मेरे राजा ! मैं तेरी स्तुति करूँगा। मैं सदा-सर्वदा तेरा नाम धन्य कहूँगा। प्रभु सबों का कल्याण करता है, वह अपनी सारी सृष्टि पर दया करता है।
2. हे प्रभु! तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करे, तेरे भक्त तुझे धन्य कहें। वे तेरे राज्य की महिमा गायें, और तेरे सामर्थ्य का बखान करें।
3. जिससे सभी मनुष्य तेरे महान कार्य और तेरे राज्य की अपार महिमा जान जायें। तेरे राज्य का कभी अन्त नहीं होगा। तेरा शासन पीढ़ी-दर- पीढ़ी बना रहेगा।
अल्लेलूया ! स्वर्ग ! धार्मिकता बरसाओ - ओस की बूँदों की तरह, बादलों के जल की तरह ! धरती खुल कर उसे ग्रहण करे। अल्लेलूया !
येसु ने लोगों से कहा, "मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ। फिर भी, स्वर्गराज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है। योहन बपतिस्ता के समय से आज तक लोग स्वर्ग राज्य के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं। योहन तक के नबी, और संहिता भी, सब के सब राज्य के विषय में केवल भविष्यवाणी कर सके। तुम चाहो तो मेरी - बात मान लो कि योहन वही एलियस है, जो आने वाला था। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।"
प्रभु का सुसमाचार।
✍ब्रदर टिंकु कुमार - ग्वालियर धर्मप्रांत
From ancient times until today, whenever we read the history of the Israelites, some truths become very clear to us. First, the law of the Lord God, through which He brings salvation to His people; and second, that the Lord God never abandons His chosen ones. Through today’s readings, Lord Jesus desires that we pay attention to His Word. Through the prophet Isaiah, God gives His people the assurance that He will always be with them, help them, and establish His glory. In the Gospel too, we see that Jesus gives the same assurance of God’s mercy to all who are helpless, and calls everyone to believe in Him and listen to His word. By doing so, even in times of trials and difficulties, we can place our hope in Him, for He alone is our Savior. In Matthew 28:20, Jesus promises us that He is with us always — in the past, in the present, and forever.
✍ -Bro. Tinku Kumar (Gwalior Diocese)
प्रभु येसु हमें बताते हैं मनुष्यों में कोई भी योहन बपतिस्ता से महान नहीं है। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि स्वर्ग के राज्य में जो सबसे छोटा है, वह योहन से भी महान है। इस आगमन में, मसीह के आगमन के लिए अपने दिलों को तैयार करने की महत्ता पर जोर दिया जाता है। योहन बपतिस्ता एक आवाज़ था जो निर्जन प्रदेश में गूंज रही थी, और लोगों को पश्चात्ताप के लिए पुकार रही थी तथा प्रभु के लिए मार्ग तैयार कर रही थी। इस आगमन में हमसे भी यही आग्रह किया जाता है कि हम अपने दिलों को उसी तरह तैयार करें—पाप से मुंह मोड़कर और मसीह के लिए अपने आप को खोलकर। आगमन काल की व्यस्तता में खो जाना आसान है, लेकिन आगमन का असली अर्थ हमारे जीवन में मसीह के लिए स्थान बनाने की इच्छा में पाया जाता है। आइए हम पश्चात्ताप और नवीकरण की भावना को अपने जीवन में बढाएं तथा खुद से पूछें कि हम मसीह के आगमन के लिए अपनी तैयारियों को कैसे और बेहतर बना सकते हैं।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतJesus tells us that among those born of women, no one is greater than John the Baptist. But He also says that the least in the kingdom of heaven is greater than John. In Advent, we are reminded of the importance of preparing our hearts for the coming of Christ. John the Baptist was a voice crying out in the wilderness, calling people to repentance and preparing the way for the Lord. This Advent, we are called to prepare our hearts in the same way—by turning away from sin and opening ourselves to Christ. It’s easy to get caught up in the busyness of the season, but the true meaning of Advent is found in our willingness to make room for Christ in our lives. Let us reflect on how we can prepare ourselves for Christ’s coming by cultivating a spirit of repentance and renewal.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)
येसु आज भी भीड़ को अपना उपदेश दे रहे है। वह योहन बपतिस्ता के बारे में बात कर रहे है। वह लोगों से कहते है कि योहन से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ है। येसु इस कथन का अनुसरण करते हुए कहते हैं कि स्वर्ग के राज्य में “सबसे छोटा व्यक्ति“ योहन से बड़ा है। हमारी दुनिया में “सबसे कम“ कौन है? पूरे सुसमाचार में, येसु खोए हुए और “कम से कम“ लोगों को देखते है और वह उन पर ध्यान देता है। येसु यह भी चाहते हैं कि हमारे पास आंखें और दिल हो ताकि हम “छोटे लोगों“, “सबसे छोटे“ लोगों को देख सकें जो हमारे जीवन में हैं। क्या हम उनकी तलाश करते हैं? क्या हम उनके प्रति चौकस हैं? क्या हम वास्तव में उन्हें देखते हैं और फिर उनकी मदद करने के लिए हम जो कर सकते हैं वह करते हैं? आज हम प्रार्थना करें कि हमारे पास गरीबों, छोटे बच्चों को देखने की आंखें हों।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Jesus continues his preaching to the crowds today. He is speaking of John the Baptist. He tells the people that no one has been born who is greater than John. Jesus follows this statement by saying that the “least one” in the Kingdom of heaven is greater than John. Who is the “least” in our world? Throughout the Gospels, Jesus sees the lost and the “least” and He is attentive to them. Jesus also wants us to have eyes and a heart that we will see the “little ones,” the “least” who are in our lives. Do we look for them? Are we attentive to them? Do we truly see them and then do what we can to help them? Today may we pray that we will have the eyes to see the poor, the little ones, the least. May we also have the grace to help or console them in whatever way we can.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)