आगमन का तीसरा इतवार - वर्ष A

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📕पहला पाठ

नबी इसायस काव्य की भाषा में यहूदियों के उस समय के आनन्द का वर्णन करता है, जब वे लोग निर्वासन के बाद अपने देश लौटेंगे। जो लोग मसीह के द्वारा ईश्वर के पास पहुँचेंगे उन लोगों का आनन्द और भी बड़ा होगा और हमेशा के लिए बना रहेगा।

नबी इसायस का ग्रंथ 35:1-6,10

"ईश्वर स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है।"

मरुस्थल और निर्जल प्रदेश आनन्द मनायें, उजाड़ भूमि हर्षित हो कर फले-फूले, वह कुमुदिनी की तरह खिल उठे, वह उल्लास और आनन्द के गीत गाये। उसे लेबानोन का गौरव दिया गया है, कार्मेल तथा शारोन की शोभा। लोग प्रभु की महिमा तथा हमारे ईश्वर के प्रताप के दर्शन करेंगे। थके-माँदे हाथों को शक्ति दो, निर्बल पैरों को सुदृढ़ बना दो। घबराये हुए लोगों से कह दो ढारस रखो, डरो मत। देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध करने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है। तब अंधों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हरिण की तरह छलाँग भरेगा और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी, क्योंकि प्रभु द्वारा छुड़ाये हुए लोग लौटेंगे। वे गाते - बजाते हुए सियोन लौटेंगे, वे चिरस्थायी सुख-शांति ले कर आयेंगे, वे आनन्द और उल्लास के साथ लौटेंगे। दुःख और विलाप का अंत हो जायेगा।

प्रभु की वाणी।

📖भजन – स्तोत्र 145:7-10

अनुवाक्य : हे प्रभु! आ कर हमें बचाने की कृपा कर। (अथवा अल्लेलूया।)

1. प्रभु सदा ही सत्यप्रतिज्ञ है। वह पददलितों को न्याय दिलाता, भूखों को तृप्त करता और बन्दियों को मुक्त कर देता है।

2. प्रभु अंधों की आँखों को अच्छा करता और झुके हुए को सीधा करता है, वह परदेशी की रक्षा करता और अनाथ तथा विधवा को सँभालता है।

3. प्रभु धर्मियों को प्यार करता और विधर्मियों के मार्ग में बाधा डालता है। प्रभु, सियोन का ईश्वर, युगानुयुग राज्य करता रहेगा।

📘दूसरा पाठ

किसान, बीज बोने के बाद, धीरज और भरोसे के साथ फसल की राह देखता है। उसी तरह हमें अटूट विश्वास के साथ मसीह के आने की राह देखनी चाहिए। इस दुनिया में कितनी ही तकलीफ, कितनी ही कठिनाइयाँ, कितना ही अत्याचार क्यों न हो, इस से हमारी आशा नष्ट नहीं हो सकती।

सन्त याकूब का पत्र 5:7-10

“हिम्मत न हारिए ! प्रभु का आगमन निकट है।"

भाइयो ! प्रभु के आने तक धैर्य धरिए। किसान को देखिए, जो खेत की कीमती फसल की बाट जोहता है - उसे प्रथम और अंतिम वर्षा के आने तक धैर्य धरना पड़ता है। आप लोग भी धैर्य धरिए। हिम्मत न हारिए, क्योंकि प्रभु का आगमन निकट है। हे भाइयो ! एक दूसरे की शिकायत नहीं कीजिए, जिससे आप पर दोष न लगाया जाये। देखिए, न्यायकर्त्ता द्वार पर खड़े हैं। भाइयो! जो नबी प्रभु के नाम पर बोले हैं, उन्हें सहिष्णुता तथा धैर्य का अपना आदर्श समझ लीजिए।

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष : लूकस 4:18

अल्लेलूया, अल्लेलूया। प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है। उसने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने भेजा है। अल्लेलूया।

📙सुसमाचार

मसीह के बारे में योहन बपतिस्ता ने कहा था कि “वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ करें"। येसु योहन को बताते हैं कि मैं मसीह तब भी मैं पहले मनुष्यों का उपकार करता हूँ और गरीबों को सुसमाचार सुनाता हूँ।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 11:2-11

"क्या आप ही वह हैं, जो आने वाले हैं अथवा हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?"

योहन ने, बंदीगृह में मसीह के कार्यों की चरचा सुन कर अपने शिष्यों को उनके पास यह पूछने भेजा, "क्या आप ही वह हैं, जो आने वाले हैं अथवा हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "जाओ। जो कुछ तुम सुनते और देखते हो, उसे योहन को बताओ - अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है; और धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठ जाता है !" वे विदा हो ही रहे थे कि येसु जनसमूह से योहन के विषय कहने लगे, "तुम लोग निर्जन प्रदेश क्या देखने गये थे? हवा से हिलते हुए सरकंडे को? नहीं ! तब तुम क्या देखने गये थे? बढ़िया कपड़े पहने मनुष्य को? नहीं ! बढ़िया कपड़े पहनने वाले राजमहलों में रहते हैं। आखिर क्यों निकले थे? नबी को देखने के लिए? निश्चय ही ! मैं तुम से कहता हूँ, नबी से भी महान् व्यक्ति को। यह वही है, जिसके विषय में लिखा है- देखो, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ। वह तुम्हारे आगे तुम्हारा `मार्ग तैयार करेगा। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ- मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई भी पैदा नहीं हुआ फिर भी स्वर्गराज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।"

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु ख्रीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों, आज के पाठो द्वारा हम सबको एक सटीक संदेश मिलता है। वह संदेश है आशा का जो धैर्य से उत्पन्न होती है। और धीर बने रहने पर जरूर पूरी भी होती है,आज के पहले पाठ में, हम नबी इसायाह के आशावादी वचनों को पढ़ते हैं जो उनके नहीं बल्कि ईश्वर के शब्द है जिससे ईश्वर अपनी प्रजा को यह आश्वासन दिला रहे हैं की उनका मुक्तिदाता निकट है। आप के दूसरे पाठ सन्त याकूब इस आशा को धीरज की नींव देते हुए सभी लोगों को संदेश देते हैं कि सब लोग मसीह के वापिस आने तक धैर्य धारण कर आशा के साथ उसकी बाट जोते रहें क्योंकि मसीह का वापिस आना और हमें पाप से सदैव के लिए मुक्त करना ईश्वर द्वारा निर्धारित शाश्वत विधान है । सुसमाचार में हम उस आशा को प्रभु येसु के रूप में पूरा होते देखते है जिसके फलस्वरूप लोगों के समक्ष महान चमत्कार प्रकट हुए हैं। इसलिए प्रिय भाइयों और बहनों अपनी अच्छी से अच्छी और बुरी से बुरी स्थितियों में भी हमें ईखर के मुक्तिदायी आगमन की बाट धैर्य और आशा के साथ जोहती रहती है, क्योंकि आशा व्यर्थ नहीं होती.

ब्रदर टिंकु कुमार - ग्वालियर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


Through today’s readings we receive a very clear message. It is the message of hope, a hope that springs from patience, and which is surely fulfilled when we remain steadfast. In the first reading, we hear the optimistic words of the prophet Isaiah. These are not merely his own words, but the very words of God, through which the Lord assures His people that their Redeemer is near. In the second reading, St. James strengthens this hope by grounding it in patience. He exhorts all believers to remain patient and wait in hope until Christ comes again, for the return of Christ and our eternal liberation from sin is part of God’s eternal plan. In the Gospel, we see this hope fulfilled in the person of Jesus Himself, as great miracles are revealed before the people through Him. Therefore, dear brothers and sisters, whether in the best of times or the worst of times, we must continue to wait with patience and hope for the redeeming coming of the Lord. For true hope never goes in vain.

-Bro. Tinku Kumar (Gwalior Diocese)



📚 मनन-चिंतन

इन दिनों जब हम अपने चारों ओर आँखें उठाकर देखते हैं, तो हमें चारों तरफ सुन्दर हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। एक तरफ जहाँ हरियाली की चादर ओढ़े हरे-भरे गेहूँ के खेत हैं, वहीं फूलों से लदे, पीली चादर ओढ़े सरसों के खेत हैं। यह सुन्दर नज़ारा कुछ क्षणों में ही तैयार नहीं होता बल्कि, धीरजपूर्ण समय लगता है। इसके पीछे एक किसान की बहुत मेहनत और पसीना लगा हुआ है। हम खेतों की सुन्दरता को तो देख लेते हैं लेकिन किसान के खून-पसीने को नहीं देख पाते। वह किसान न केवल दिन-रात परिश्रम करता है बल्कि धीरज के साथ उस परिश्रम के फल का भी इंतज़ार करता है। सन्त याकूब ऐसे ही किसान के धीरज का उदाहरण आज हमें देते हैं, जो बड़े धीरज के साथ फसल के पकने का इंतजार करता है। उसी तरह से यह संसार भी बड़े धीरज के साथ मुक्तिदाता की राह देखता है।

मुक्तिदाता के आगमन की प्रतिज्ञा कोई नई नहीं है, बल्कि बहुत पहले से ही पिता ईश्वर ने मुक्तिदाता का वादा किया था। इस प्रतिज्ञा ने मानव इतिहास में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। मुक्तिदाता के आगमन को समझने और स्वीकार करने के लिए प्रभु ने लोगों को बहुत चिन्ह और संकेत दिए। आज के सुसमाचार में हम योहन बपतिस्ता को देखते हैं जो बंदीगृह में था, और जानना चाहता था कि क्या ईसा ही वह मुक्तिदाता हैं जो आने वाले थे, या वे किसी और का इंतजार करें। वह ईश्वर का सन्देश सुनाने और सत्य तथा न्याय के लिए खड़े होने के कारण ही बंदीगृह में डाल दिया गया था। उसने शक्तिशालियों का विरोध किया और गलत करने पर आवाज उठाई। वह कोई चोर-लुटेरा या अपराधी नहीं था कि उसे बंदीगृह में सज़ा मिलनी चाहिए थी, लेकिन सच्चाई की लड़ाई लड़ने के कारण उसे बंदीगृह में डाला गया था।

सन्त योहन बापतिस्ता ऐसे अनेक लोगों का प्रतिनिधत्व करते हैं जो अन्यायपूर्ण रूप से शक्तिशालियों द्वारा जेल में डाल दिए जाते हैं, और जिनके हक के लड़ने के लिए कोई नहीं है। जब भी कोई अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है तो दबंग अत्याचारियों द्वारा उनकी आवाज़ कुचल दी जाती है। दबंग लोग गरीब और कमजोर लोगों पर अत्याचार करते रहते हैं। ऐसे दबे और कमजोर लोग धीरज के साथ मुक्तिदाता की राह देखते हैं कि कोई आयेगा, उनकी आवाज बनेगा, उनकी ताकत बनेगा। प्रभु येसु ही वह मुक्तिदाता है और आज हमें प्रभु येसु के माध्यम बनना है।

अंधे देखते हैं, लँगड़े उछल-कूद करने लगते हैं, गूँगे बोलने लगते हैं और बहरे सुनने लगते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है, कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिलता है जब प्रभु येसु गाँव-गाँव और नगर-नगर जाते हैं। प्रभु येसु अपने गृहनगर में एक सभागृह इसी की घोषणा की थी (देखिए लूकस 4-18-19)। प्रभु येसु के इस दुनिया में आने का यही मकसद था, और इसी मकसद के लिए एक मुक्तिदाता की दरकार थी। बीमारियाँ और तकलीफें हमारे जीवन को अपूर्ण बनाती हैं, हमारे जीवन में कुछ न कुछ कमी को दर्शाती हैं। ईश्वर ने सभी के लिए पूर्ण जीवन और अनन्त जीवन का वादा किया है, और यह पूर्ण और अनन्त जीवन हमें प्रभु येसु ही दे सकते हैं। अगर हम प्रभु येसु का दिया हुआ जीवन जीते हैं तो हमें भी वही कार्य करने हैं जिसके लिए प्रभु येसु आए थे- दबे-कुचले लोगों की आवाज बनना, कमजोर लोगों का सहारा बनना, और न्याय और सत्य की लड़ाई लड़ना। ईश्वर इसके लिए हमें शक्ति प्रदान करे।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

These days when we look around, we see lot of greenery spread all over. On the one hand the wheat fields are covered with lush green covering, other side the fields with mustard crops are turning yellow, plants laden with flowers. It doesn’t happen in a moment. There is so much hard work and labour that has been done by the farmer, we just see and enjoy what is before our eyes, but do not see the real reason behind it. The farmer not only works hard but also waits patiently to see the yield and fruit of his labour. St. James gives the example of the farmer who waits patiently for the fruit from the crop. Similarly world waits patiently for a saviour.

The promise of Messiah is not recent one, but God promised the Messiah long ago. This promise was followed by many turns and twists in the history of the people. There were signs and symbols which were given to people, to know about the arrival of the saviour. In the gospel today we see John the Baptist, who is in captivity, wants to know whether Jesus was the one who was to come or they had to wait more. He was in prison because of his call to convey God’s message, stand for truth and justice. He dared to oppose the powerful, who did wrong. He was not a criminal to be punished. He was suffering in prison because he raised his voice against the wrong.

St. John represents innumerable others in present time who are unjustly condemned and punished at the hands of the powerful. If someone raises their voice against the injustice done to the poor, their voice is crushed. The mighty and powerful people continue to rule and exploit the weak and poor. Such people patiently wait for a liberator, one who could become their voice and their strength. Jesus is that liberator, who is ready to give their life for their liberation.

The blind are given sight, the lame are healed, the deaf hear and the good news is proclaimed to the poor. This was the manifesto that Jesus read out in the synagogue at in his hometown (cf Lk 4:18-19). This was the work for which he was sent. Our infirmities and physical inabilities make us incomplete. God has called us for a life of fullness, therefore Jesus being the saviour of the world is at work to restore human fullness. These were the signs that Jesus is the one who was to come. We are also called to strengthen the weak and be the voice of the voiceless, so that we can give birth to the saviour.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

पवित्र बाइबल में हम मानवजाति की मुक्ति के लिए ईश्वर की योजना को धीरे-धीरे पूरा होता हुआ देख सकते हैं। ईश्वर की योजना की इस श्रंखला की अंतिम कड़ी जो प्रभु येसु से जुड़ती है, योहन बपतिस्ता थी। वे पुराने विधान और नए विधान के बीच की कड़ी हैं। रेगिस्तान में उनका जीवन पुराने नियम से प्रस्थान का संकेत है और यर्दन नदी में येसु का बपतिस्मा नए युग के आगमन का प्रतीक भी है। यह पश्चाताप द्वारा पाप से एक प्रस्थान है जो संत योहन बपतिस्ता के संदेश का विषय था और येसु के उपदेश का विषय, ईश्वर के राज्य का आगमन था। यह स्पष्ट है कि प्रभु येसु ने ईश्वर के राज्य का शब्दों से ज़्यादा कर्मों से प्रचार किया। आज के सुसमाचार में योहन बपतिस्ता अपना कर्तव्य पूरा करके येसु को ईश्वर की योजना को आगे बढ़ाने के लिए कार्यभार सौंपने की अंतिम तैयारियां करते हैं।

कलकत्ता की संत तेरेसा कहती हैं, “हम सफल होने के लिए नही; बल्कि विश्वसनीय बनने के लिए बुलाये गये हैं”। यदि हम योहन बपतिस्ता के जीवन को देखें, तो हम पा सकते हैं कि वे इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करते हैं। मुक्ति की योजना में ईश्वर द्वारा उन्हें सौंपी गयी भूमिका के प्रति वे पूर्णत: वफादार थे। यह सच है कि वे दुनिया की नजरों में सफल नहीं थे। उनका विरोध किया गया, उन्हें कैद किया गया और बाद में उन्हें मार दिया गया। फिर भी उन्होंने विश्वासपूर्वक मसीह के अग्रदूत होने की भूमिका, जो उन्हें दी गयी थी, पूरी की। हमारे जीवन में भी, हमें विश्वसनीय होने की ज़रूरत है। यह जरूरी नहीं है कि हम सफल हों। कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया हमारे साथ कैसा व्यवहार करती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम ईश्वर द्वारा हमारे लिए बताए गए मार्ग पर ईमानदारी से चलें और उस मार्ग पर विश्वासनीय बने रहें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


REFLECTION

In the Bible we can see the Plan of God for the redemption of humanity being gradually unravelled. The final link to Jesus, the fulfilment of God’s plan was John the Baptist. He is the link between the Old Testament and the New Testament. His life in the desert signifies a departure from the Old Testament and the Baptism of Jesus in the River Jordan signifies the arrival of the new era. It is a departure from sin by repentance which was preached by St. John and arrival in the Kingdom of God, the theme of the preaching of Jesus. It is clear that Jesus preached the Kingdom of God more eloquently by deeds than by words. In today’s Gospel we see the final preparations for the smooth transition from John the Baptist to Jesus.

St. Theresa of Calcutta says, “We are not called to be successful; we are called to be faithful”. If we look at the life of St. John the Baptist, we can see that St. John firmly believed in this. He was very faithful to the role entrusted to him by God in the plan of salvation. Apparently he was not successful in the eyes of the world. He was opposed, imprisoned and later beheaded. Yet he faithfully completed the role of being the precursor to the Messiah which was given to him. In our lives too, we are expected to be faithful, not necessarily successful. No matter how the world treats us, what is important to us is that we earnestly discern the path marked out for us by God and to be faithful on that path./p>

-Fr. Francis Scaria