
प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है कि मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, दु:खियों को ढारस बँधाऊँ, बंदियों को छुटकारे का और कैदियों को मुक्ति का संदेश सुनाऊँ; प्रभु के अनुग्रह का वर्ष और ईश्वर के प्रतिशोध का दिन घोषित करूँ। मैं प्रभु में प्रफुल्लित हो उठता हूँ, मेरा मन अपने ईश्वर में आनन्द मनाता है। जिस तरह वर पगड़ी बाँध कर और वधू गहने पहन कर सुशोभित होते हैं। उसी तरह प्रभु ने मुझे मुक्ति के वस्त्र पहनाये और मुझ पर धार्मिकता की चादर डाल दी है। जिस तरह पृथ्वी अपनी उपज उगाती है और बाग बीजों को अंकुरित करता है, उसी तरह प्रभु - ईश्वर सभी राष्ट्रों में धार्मिकता तथा भक्ति उत्पन्न करता है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मेरा मन अपने ईश्वर में आनन्द मनाता है। (इसायस 61:10)
1. मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है, मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है, क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दयादृष्टि की है। अब से सब पीढ़ियाँ मुझे धन्य कहेंगी।
2. क्योंकि सर्वशक्तिमान ने मेरे लिए महान कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम ! उसकी कृपा अपने श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।
3. उसने दरिद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को खाली हाथ लौटाया है। उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, अपने दास इस्राएल की सुध ली है।
आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरन्तर प्रार्थना करते रहें, सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि येसु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। आत्मा की प्रेरणा का दमन नहीं करें और भविष्यवाणी के वरदान की उपेक्षा नहीं करें, किन्तु सब कुछ परख लें और जो अच्छा हो, उसे स्वीकार करें। हर प्रकार की बुराई से बचते रहें। शांति का ईश्वर आप लोगों को पूर्ण रूप से पवित्र करे। आप लोगों का मन, आत्मा तथा शरीर हमारे प्रभु येसु मसीह के दिन निर्दोष पाया जाये। ईश्वर यह सब करायेगा, क्योंकि उसने आप लोगों को बुलाया है और वह सत्यप्रतिज्ञ है।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है। उसने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने भेजा है। अल्लेलूया !
ईश्वर का भेजा हुआ योहन नामक एक मनुष्य प्रकट हुआ। वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें। वह स्वयं ज्योति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था। जब यहूदियों ने येरुसालेम से याजकों और लेवियों को योहन के पास यह पूछने भेजा कि आप कौन हैं, तो उसने यह साक्ष्य दिया – उसने स्पष्ट शब्दों में यह स्वीकार किया कि मैं मसीह नहीं हूँ। उन्होंने उस से पूछा, "तब आप कौन हैं? क्या आप एलियस हैं?'' उसने कहा, "मैं एलियस नहीं हूँ"। 'क्या आप नबी हैं?" उसने उत्तर दिया, "नहीं"। तब उन्होंने उस से " तो आप कौन हैं? जिन्होंने हमें भेजा है, हम उन्हें कौन-सा उत्तर दें? आप अपने विषय में क्या कहते हैं?" उसने उत्तर दिया, “मैं हूँ – जैसा कि इसायस नबी ने कहा है - निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज : प्रभु का मार्ग सीधा करो"। जो फ़रीसियों की ओर से भेजे गये थे, उन्होंने उस से पूछा, "यदि आप न तो मसीह हैं, न एलियस और न वह नबी, तो फिर बपतिस्मा क्यों देते हैं?" योहन ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं तो पानी से बपतिस्मा देता हूँ। तुम्हारे बीच एक हैं, जिन्हें तुम नहीं पहचानते। वह मेरे बाद आने वाले हैं; मैं उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ"। यह सब यर्दन के पार बेथानिया में घटित हुआ, जहाँ योहन बपतिस्मा दे रहा था।
प्रभु का सुसमाचार।
आज के सुसमाचार में मुख्य पात्र येसु नहीं है। यह योहन है। सुसमाचार में हम “प्रकाश“ के बारे में योहन की गवाही सुनते हैं। अपने उपदेश में, योहन यह स्पष्ट करता है कि वह प्रकाश नहीं है। योहन की भूमिका लोगों को येसु के आने के लिए तैयार करना है ताकि जब वह आए, तो वे उसे पहचानें और उस पर विश्वास करें। लोग योहन को सवालों से उलझाते रहे। वे पूछते हैं कि क्या वह एलिय्याह है या वह भविष्यवक्ता है जो आने वाला था? अंत में, योहन ने कहाः “मैं रेगिस्तान में चिल्लाने वाले की आवाज हूं।“ वह बस इतना कहता है कि वह “प्रचारक“ है, जिसे प्रभु के आगमन की भविष्यवाणी करनी है। यहूदियों ने योहन पर सवालों की बौछार जारी रखी। अंत में, योहन स्पष्ट रूप से और सरलता से लोगों को बताता है कि उसकी भूमिका येसु के लिए रास्ता तैयार करने की है। येसु के लिए हमारे पास क्या प्रश्न हैं? क्या हम येसु के बारे में और अधिक जानने के लिए भूखे हैं? क्या हम उसके आने के लिए उत्सुक हैं? क्या हम उन तरीकों को पहचानते हैं जिनसे वह हर दिन हमारे पास आता है? क्या हम इस दिन येसु के लिए अपनी आँखें और दिल खोल सकते हैं!
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)The main character in today’s Gospel is not Jesus. It is John the Baptist. In the Gospel we hear John’s testimony to the “light.” In his preaching, John makes it clear that he is not the light. John’s role is to prepare the people for Jesus’ coming so that when he comes, they will recognize Him and believe in Him. The people continued to puzzle John with questions. They ask if he is Elijah or is he the Prophet that was to come? Finally, John quotes a passage from the prophet Isaiah: “I am the voice crying out in the desert.” He simply says that he is the “herald,” the one who is to foretell the coming of the Lord. The Jews continued to bombard John with questions. Finally, John clearly and simply tells the people that his role is to prepare the way for Jesus. What are the questions we have for Jesus? Are we hungry to know more about Jesus? Are we anxious for His coming? Do we recognize the ways He comes to us each day? May we open our eyes and hearts to Jesus this day! He may appear in surprising ways!
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज फिर से एक बार सुसमाचार संत योहन बपतिस्ता की भूमिका का वर्णन करता है। उन्हें प्रकाश के साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने इस बात से साफ़ इनकार किया कि वे मसीह या एलिय्याह या नबी थे जिनके लिए इस्राएली लोग इंतज़ार कर रहे थे। तब उन्होंने अपनी पहचान "रेगिस्तान में पुकारने वाली आवाज: प्रभु के लिए मार्ग तैयार करो" उनकी राह सीधी करो।” के रूप में वर्णित की।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब कोई अपनी पहचान को सही ढंग से जानने लगता है, तब उसका आत्म-सम्मान बढ़ता है और उसकी चिंता कम होती है। कभी-कभी हम देखते हैं कि लोग दूसरों को प्रभावित करने तथा लोकप्रिय बनने के लिए खुद को गलत तरीके से पेश करते हैं। संत योहन बपतिस्ता एक विनम्र व्यक्ति थे। मसीह के विषय में योहन 3:30 में वे कहते हैं, "यह उचित है कि वे बढ़ते जायें और मैं घटता जाऊँ।"। वे लोगप्रियता नहीं चाहते थे। वे बस इस जीवन में उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा करना चाहते थे और वे उसे पूरा करके वे इस दुनिया से चले गये। इसलिए जब उनके श्रोताओं को लगा कि वे मसीह या एलिय्याह या नबी हैं, तब उन्होंने सीधे और सशक्त रूप से इनकार करते हुए कहा, "मैं नहीं हूँ"। इसके बजाय उन्होंने हमेशा खुद को प्रकाश के साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया।
संत योहन बपतिस्ता की एक विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी पहचान प्रभु मसीह के संबंध में प्रकट की। एक सच्चा ख्रीस्तीय विश्वासी हमेशा मसीह के संबंध में खुद को पहचानता है।
संत योहन बपतिस्ता खुद को "एक आवाज" कहता है। ऐसा नहीं कि उनकी एक आवाज़ थी, बल्कि यह कि वे ईश्वर की आवाज़ थे। उनका पूरा अस्तित्व लोगों को पश्चाताप करने और हृदय परिवर्तन करने के लिए रेगिस्तान में निमंत्रण देने वाले ईश्वर की आवाज़ है। प्रत्येक ख्रीस्तीय विश्वासी ईश्वर की आवाज़ है क्योंकि प्रत्येक विश्वासी ख्रीस्त को घोषित करने के लिए बुलाया गया है।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Today once again the role of St. John the Baptist is described in the Gospel passage. He is presented as one who witnessed to the light. He denied that he was the Messiah or Elijah or the Prophet whom the Israelites awaited. Then he described his identity as “A voice of the one that cries in the desert: Prepare a way for the Lord. Make his paths straight.”
According to psychologists knowing one’s identity accurately increases self-esteem and reduces depression and anxiety. Sometimes we find people misrepresenting themselves to impress others and to become popular. St. John the Baptist was a humble man. Regarding Christ, in Jn 3:30 he says, “He must increase, but I must decrease”. He did not want limelight. He just wanted to complete the task entrusted to him in this life and then disappear from the scene. Therefore when his listeners thought he was the Messiah or Elijah or the prophet, he simply and emphatically said, “I am not”. Instead he always presented himself as one witnessing to the light, the light of Christ.
One of the specialties of St. John the Baptist is that he identified himself in relation to Christ. A true Christian always identifies himself/ herself in relation to Christ.
St. John the Baptist calls himself “a voice”. Not that he had a voice, but that he was the voice of God. His whole being is God’s voice in the desert calling people to repentance and conversion of heart. Every Christian is called upon to be the voice of God because every Christian is called to proclaim Christ.
✍ -Fr. Francis Scaria
क्या आप गोलपोस्ट के बिना फुटबॉल खेल का अनुमान कर सकते हैं? कभी नहीं, क्योंकि गोलपोस्ट के बिना फुटबॉल खेलना अर्थहीन है। ठीक इसी प्रकार लक्ष्य हीन जीवन अर्थ शून्य है। दार्शनिक सुकरात (Socrates) ने कहा है कि चिंतन के बिना जीवन अधूरा है।
हमारे सृष्टिकर्ता प्रभु ने हमें सब कुछ दिया है। उन्होंने हमें अपना प्रतिरूप बनाया (उत्पत्ति 1:27), हमें अलग पहचान दी (स्तोत्र 139:14) और हमारे लिए एक अलग योजना भी बनायी है। (यिरमियाह 29:11) इतना ही नहीं, ईश्वर ने हमें सब कुछ पर अधिकार भी दिया हैं। (उत्पत्ति 1:28)
जीवन अनमोल है और अल्पकालिक है। इस बहुमूल्य जीवन को जीने के लिए सब को एक ही अवसर मिलता है। इसलिए हमें हमारी जिंदगी को जी भर के जीना चाहिए।
इस के लिए हमें यह खोजना चाहिए कि इस क्षणभंगुर जीवन को हम कैसे और किन कार्यो के द्रारा सार्थक बनाये। क्योंकि हमें अलग पहचान देने वाले ईश्वर ने हमें एक अलग काम भी जरूर सौंपा है। इस दुनिया को और सुन्दर बनाने में हमारी भी एक अलग भूमिका है। इसलिए हरेक को इस उद्देश्य का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए हमें सृष्टिकर्ता प्रभु के पास जाकर प्रार्थना में समय बिताना होगा। तब हमे मालूम होगा कि हमारे लिए उनकी इच्छा क्या है?
आज के सुसमाचार में हम पढते हैं कि योहन बपतिस्ता से जब पूछा जाता है कि वह कौन है तो उनके पास जवाब देने के लिए एक स्पष्ट उत्तर है। योहन को पता है कि इस दुनिया में उनको करना क्या है। इसलिए वे कहते हैं “मैं हूँ –जैसे कि नबी इसायाह ने कहा है- निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज : प्रभु का मार्ग सीधा करो।” (योहन 1:23) प्रभु येसु भी हमें इस दुनिया में आने का उद्देश्य साफ-साफ बताते हैं। नबी इसायाह के ग्रन्थ से, जो आज का पहला पाठ है, पढते हुए येसु बताते हैं, “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊॅ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।” (लूकस 4:18-19) संत पौलुस कहते हैं कि प्रभु ने उनको गैर-यहूदियों में प्रचार करने का कार्य सौंपा है। (रोमि 11:13) और वे बडी उत्सुकता से उनके लक्ष्य की ओर दौड रहे हैं। (फिलिप्पि 3:14) इस बात का तात्पर्य यह है कि इन सबको यह जानकारी थी कि वे कौन हैं और इस जीवन में उनको क्या करना चाहिए। अब सवाल यह है कि यह जानकारी उनको कैसे प्राप्त हुई? इसे खोजने के लिए उन्होंने क्या किया?
संत योहन बपतिस्ता को यह जानकारी इसलिए प्राप्त हुई कि उन्होंने निर्जन प्रदेश में ईश्वर की संगति में अपना जीवन बिताया। प्रभु येसु ने भी उनके जीवन काल में पिता ईश्वर के साथ गहरा संबन्ध बनाया रखा। इसी प्रकार जितनों ने दुनिया से दूर रह कर प्रार्थना में अपना जीवन बिताया हो उन सबको यह पता चला कि उनके जीवन में ईश्वर की योजना क्या है। ईश्वर का वचन कहता है- “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।” (रोमियों 12:2) जब हम इस संसार से दूर और प्रभु के पास रहते हैं तो वे हमें समस्त प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्रदान करते हैं जिस से हम उसकी इच्छा पूर्ण रूप से समझ पाते हैं। (कलोसियों 1:9) संत पेत्रुस विश्वासियों से कहते हैं कि आप लोग जो पहले सान्सारिक लोगों की जीवनचर्या के अनुसार जीवन बिता रहे थे। अब आप लोग येसु को जान गये हैं। इसलिए आप लोगों को शेष जीवन मानवीय वासनाओं के अनुसार नहीं, बल्कि ईश्वर की इच्छानुसार बिताना चाहिए। (1पेत्रुस 4:2-3)
जीवन में ईश्वर की इच्छा जानने के बाद हमें केवल वही कार्य करना चाहिए जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है। इसके अलावा हमें जीवन में केवल वही रिश्ते और चीजें रखनी चाहिये जो प्रभु के कार्य करने के लिए मददगार हो। संत पौलुस कहते है- “मैं जिन बातों को लाभ समझता था, उन्हें मसीह के कारण हानि समझने लगा हॅू। इतना ही नहीं, मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हॅू और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हॅू। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड दिया है और उसे कूडा समझता हॅू, जिससे मैं मसीह को प्राप्त करूँ और उनके साथ पूर्ण रूप से एक हो जाऊॅ।” (फिलिप्पियों 3:7-9)
संसार की मोहमाया को त्याग कर एवं शरीर की वासनाओं को जो आत्मा के विरूध संघर्ष करती है, दमन करते हुए (1पेत्रुस2:11), ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन बिताने के लिए निरन्तर प्रार्थना करने की आवश्यकता है। प्रार्थना करने से हम ईश्वर की आत्मा से भर जाते हैं और जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, वह हमें सब कुछ समझा देगा (योहन 14:26) और पूर्ण सत्य तक ले जायेगा। (योहन 16:13)
धन्य है वह जो इस प्रकार अपना जीवन बिता पा रहे हैं। क्योंकि वे अपना मन आत्मा तथा शरीर प्रभु ईसा मसीह के दिन के लिए निर्दोष रख पायेगे। ईश्वर का वचन कहता है- “संसार में जो शरीर की वासना, ऑखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है, वह सब पिता से नहीं, बल्कि संसार से आता है। संसार और उसकी वासना समाप्त हो रही है; किन्तु जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वह युग-युगों तक बना रहता है।” (1योहन 2:16-17)
- फादर शैल्मोन अंथोनी