
बन्ध्या ! तुमने कभी पुत्र नहीं जना, अब आनन्द मनाओ। तुमने प्रसव पीड़ा का अनुभव नहीं किया, उल्लास के गीत गाओ क्योंकि प्रभु यह कहता है- विवाहिता की अपेक्षा परित्यक्ता के अधिक पुत्र होंगे। अपने शिविर का क्षेत्र बढ़ाओ, अपने तम्बू के कपड़े फैला दो, उसके रस्से और लम्बे करो, उसकी खूँटियाँ और दृढ़ करो। क्योंकि तुम दायें और बायें फैलोगी, तुम्हारा वंश राष्ट्रों को अपने अधीन करेगा और तुम्हारी सन्तति उजाड़ नगरों में बस जायेगी। डरो मत - तुम्हें निराशा नहीं होगी। घबराओ मत - तुम्हें लज्जित नहीं होना पड़ेगा। तुम अपनी तरुणाई का कलंक भूल जाओगी, तुम्हें अपने विधवापन की निन्दा याद नहीं रहेगी। येरुसालेम ! तेरा सृष्टिकर्ता ही तेरा पति है। उसका नाम है- विश्वमण्डल का प्रभु। इस्राएल का परमपावन ईश्वर तेरा उद्धार करेगा; वह समस्त पृथ्वी का ईश्वर कहलाता है। येरुसालेम ! परित्यक्ता स्त्री की तरह दुःख की मारी ! प्रभु तुझे वापस बुलाता है। क्या कोई अपनी तरुणाई की पत्नी को भुला सकता है? यह तेरे ईश्वर का कहना है। मैंने थोड़ी ही देर तक तुझे छोड़ दिया था, अब मैं, तरस खा कर, तुझे अपने यहाँ ले जाऊँगा। मैंने क्रोध के आवेश में क्षण भर तुझ से मुँह फेर लिया था, अब मैं अनन्त प्रेम से तुझ पर दया करता रहूँगा। यह तेरे उद्धारकर्ता ईश्वर का कहना है। नूह के समय मैंने शपथ खा कर कहा था कि प्रलय की बाढ़ फिर पृथ्वी पर नहीं आयेगी, उसी तरह मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि मैं फिर तुम पर क्रोध नहीं करूँगा और फिर तुझे धमकी नहीं दूँगा। चाहे पहाड़ टल जाये और पहाड़ियाँ डाँवाडोल हो जायें, किन्तु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टल जायेगा, और तेरे लिए मेरा शांति- विधान डाँवाडोल नहीं हो जायेगा। यह तुझ पर तरस खाने वाले प्रभु का कहना है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु! मैं तेरी स्तुति करूँगा। तूने मेरा उद्धार किया।
1. हे प्रभु! मैं तेरी स्तुति करूँगा। तूने मेरा उद्धार किया। तूने मेरे शत्रुओं को मुझ पर हँसने नहीं दिया। हे प्रभु! तूने मेरी आत्मा को अधोलोक से निकाला, तूने मुझे बचा लिया है।
2. प्रभु के भक्त उसके आदर में गीत गायें और उसके पवित्र नाम की महिमा करें। उसका क्रोध क्षण भर का है, किन्तु उसकी कृपा जीवन भर बनी रहती है। संध्या को भले ही रोना पड़े, किन्तु प्रात:काल आनन्द ही आनन्द होता है।
3. हे प्रभु! मेरी सुन ! मुझ पर दया कर। हे प्रभु! मेरी सहायता कर। तूने मेरा शोक आनन्द में बदल दिया है। हे प्रभु, मेरे ईश्वर! मैं अनन्तकाल तक तेरी स्तुति करूँगा।
अल्लेलूया ! प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो। सब शरीरधारी ईश्वर के मुक्ति - विधान के दर्शन करेंगे। अल्लेलूया !
योहन द्वारा भेजे हुए शिष्यों के चले जाने के बाद येसु लोगों से योहन के विषय में कहने लगे, " तुम निर्जन प्रदेश में क्या देखने गये थे? हवा से हिलते हुए सरकंडे को? नहीं! तो, तुम क्या देखने गये थे? बढ़िया कपड़े पहने मनुष्य को? नहीं ! कीमती वस्त्र पहनने वाले और भोग-विलास में जीवन बिताने वाले महलों में रहते हैं। आखिर तुम क्या देखने निकले थे? किसी नबी को? निश्चय हीं ! मैं तुम से कहता हूँ- नबी से भी महान् व्यक्ति को। यह वही है, जिसके विषय में लिखा है - देखो, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ, वह तुम्हारे आगे तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा। मैं तुम से कहता हूँ, मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई भी नहीं। फिर भी, ईश्वर के राज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।" सारी जनता और नाकेदारों ने भी योहन की बात सुन कर और उसका बपतिस्मा ग्रहण कर ईश्वर की इच्छा पूरी की, परन्तु फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उसका बपतिस्मा ग्रहण न कर अपने विषय में ईश्वर का आयोजन व्यर्थ कर दिया। "
प्रभु का सुसमाचार।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु योहन बपतिस्ता को एक नबी का दर्जा देते हैं और लोगों के सामने उसकी महानता का बखान करते हैं। स्वयं ईश्वर के द्वारा प्रशंसा पाना कितना धन्य है! अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक “ख्रीस्त अनुकरण” में थॉमस केमपिस कहते हैं कि जो व्यक्ति पवित्र और निष्कलंक है, उसे प्यार करने से ईश्वर खुद को नहीं रोक पाते। प्रभु येसु योहन बपतिस्ता की बड़ाई कई कारणों से करते हैं। वह एक ऐसे नबी थे जो बड़े और शक्तिशाली लोगों की आँखों में आँखें डालकर कह सकते थे कि तुम पापी हो, पश्चाताप करो।
उन्होंने अपने जीवन में कभी सुख-सुविधा का लालच नहीं किया। उन्होंने अपनी मर्जी से त्याग और बलिदान के जीवन को गले लगाया। उनके पास न तो बड़ा महल या सेना थी, और न समाज में कोई उच्च स्थान। दुनिया की नज़रों में उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो उन्हें महान बनाता, लेकिन फिर भी प्रभु येसु उन्हें मनुष्यों में सबसे महान घोषित करते हैं। क्योंकि जो दुनिया की नज़रों में नगण्य है वही ईश्वर की नज़रों में महान है इसलिए कोई भी योहन बपतिस्ता का स्थान नहीं ले सकता। क्या मैं इतना पवित्र और निष्कलंक हूँ कि ईश्वर मेरी प्रशंसा करे?
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today Jesus calls John the Baptist as a prophet and declares his greatness before the people. What a privilege it is to be admired by God himself! Thomas Kempis in his classic book “The Imitation of Christ” says, God cannot withhold himself from loving the person who is pure and holy. Jesus is all praise for John the Baptist, for various reasons. He is a prophet who could dare to stand before the powerful and the masses and look into their eyes and tell them that they were sinful and needed to repent.
He lived a life without any desire for comforts and luxuries. It was his free choice to live a life of sacrifice. It purified him like the fire purifies gold in the furnace. Even though he was not rich and did not have any prominent place in the society, did not own any palaces or army. In the eyes of the world, there was nothing in him that could show him great, but Jesus declares him to be greatest among all human beings. It is because in the eyes of God, one who is least is the greatest and nobody could overtake John’s greatness. Am I holy and simple enough to be loved and admired by God?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)