आगमन का तीसरा सप्ताह - शुक्रवार

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

नबी इसायस का ग्रन्थ 56:1-3,6-8

"मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।"

प्रभु यह कहता है, न्याय बनाये रखो और धर्म का पालन करो, क्योंकि मुक्ति निकट है और मेरी न्यायप्रियता शीघ्र ही प्रकट हो जायगी। धन्य है वह मनुष्य, जो धर्माचरण करता है और उस में दृढ़ रहता है; जो विश्राम दिवस को अपवित्र नहीं करता और हर प्रकार का पाप छोड़ देता है। परदेशी का जो पुत्र प्रभु का अनुयायी बन गया है, वह यह न कहे कि प्रभु मुझे अपनी प्रजा से अवश्य अलग कर देगा। जो विदेशी प्रभु के अनुयायी बन गये हैं, जिससे वे उसकी सेवा करें, उसका नाम लेते रहें और उसके भक्त बन जायें और वे सब, जो विश्राम-दिवस मनाते हैं और उसे अपवित्र नहीं करते - मैं उन लोगों को अपने पवित्र पर्वत तक ले जाऊँगा, मैं उन्हें अपने प्रार्थनागृह में आनन्द प्रदान करूँगा। मैं अपनी वेदी पर उनके होम और बलिदान स्वीकार करूँगा, क्योंकि मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा। बिखरे हुए इस्राएलियों को एकत्र करने वाला प्रभु ईश्वर यह कहता है, "एकत्र किये हुए लोगों के सिवा मैं दूसरों को भी एकत्र करता जाऊँगा।"

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 66:2-3,5,7-8

अनुवाक्य : हे ईश्वर ! राष्ट्र तुझे धन्य कहें, सभी राष्ट्र तेरी स्तुति करें। प्रभु की वाणी है।

1. हे ईश्वर ! हम पर दया कर और हमें आशिष दे, हम पर प्रसन्न हो कर दयादृष्टि कर। पृथ्वी के निवासी तेरा मार्ग समझ लें, सभी राष्ट्र तेरा मुक्ति-विधान जान जायें।

2. सभी राष्ट्र उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि तू न्यायपूर्वक संसार का शासन करता है। तू निष्पक्ष हो कर पृथ्वी के देशों का शासन करता और सभी राष्ट्रों का संचालन करता है।

3. पृथ्वी ने फल उत्पन्न किया है, क्योंकि ईश्वर ने हमें आशीर्वाद दिया है। ईश्वर हमें आशीर्वाद प्रदान करता रहे और समस्त पृथ्वी उस पर श्रद्धा रखे।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! हमें शांति प्रदान करने आ, जिससे हम तेरे सामने निष्कपट हृदय से आनन्द मना सकें। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:33-36

"योहन एक जलता और चमकता हुआ दीपक था।"

येसु ने यहूदियों से कहा, "तुम लोगों ने योहन से पुछवाया और उसने सत्य के संबंध में साक्ष्य दिया है। मुझे किसी मनुष्य के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं। यह तो मैं इसलिए कहता हूँ कि तुम लोग मुक्ति पा सको। योहन एक जलता और चमकता हुआ दीपक था। उसकी ज्योति में थोड़ी देर तक आनन्द मनाना तुम लोगों को अच्छा लगा। परन्तु मुझे जो साक्ष्य प्राप्त है, वह योहन के साक्ष्य से भी महान् है। पिता ने जो कार्य मुझे पूरा करने को सौंपे हैं, जो कार्य मैं करता हूँ, वे ही मेरे विषय में यह साक्ष्य देते हैं कि पिता ने मुझे भेजा है। "

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

सन्त योहन 1:19 में हम पढ़ते हैं कि येरूसलेम से फरीसी और शास्त्रियों ने कुछ लेवियों और याजकों को योहन के बारे में पता करने के लिए भेजा था, लेकिन योहन उन्हें प्रभु येसु के बारे में बताता है। उसने ईश्वर के उस मेमने का साक्ष्य दिया जो अपने बलिदान द्वारा संसार के पाप हरने वाला था। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु फरिसियों को योहन के उसी साक्ष्य की याद दिलाते हैं और उनके दोगलेपन को दर्शाते हैं। योहन बपतिस्ता एक दीपक था और उस दीपक की ज्योति स्वयं प्रभु येसु थे, ऐसी ज्योति जो अंधकार में चमकती रहती है (देखिए योहन 1:8-9)। जब योहन ने लोगों से पश्चाताप का आह्वान किया तो वह उसके वचनों को सुनकर और उसके जीवन को देखकर उसकी ओर उसी तरह आकर्षित हुए जैसे जलते हुए दीपक को देखकर कीट-फ़तनगे आकर्षित होते हैं। लेकिन उन्होंने उसके साक्ष्य पर ध्यान नहीं दिया और अपना जीवन नहीं बदला।

प्रभु येसु को मनुष्यों के साक्ष्य की जरूरत नहीं है। पिता ईश्वर सदा उनके साथ हैं, क्योंकि वह पिता ईश्वर के कार्य में ही व्यस्त रहते हैं। वही उनके कार्यों को प्रमाणित करते हैं। वह सारे चिन्ह और चमत्कार प्रभु येसु ने पिता के सामर्थ्य से ही पूर्ण किये थे। निकोदेमुस भी इस बात को व्यक्त करता है, “आप जो चमत्कार दिखाते हैं, उन्हें कोई तब तक नहीं दिखा सकता जब तक कि ईश्वर उसके साथ न हो।” (देखिए योहन 3:2)। प्रभु येसु के कार्य पिता ईश्वर की उपस्थिति को प्रकट करते थे। जब हम अपने जीवन में पिता ईश्वर की इच्छा पूरी करते हैं, तो ईश्वर जरूर हमारे हर कार्य में हमारे साथ रहेंगे। हमें किसी के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है। हमारे कार्य और व्यवहार ही हमारे जीवन में ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण होना चाहिए। ईश्वर तभी हमारे साथ होंगे जब हम अपने पापों को त्यागकर अपने जीवन में ईश्वर का स्वागत करेंगे।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

In John 1:19 and following we read that the Jews had sent some priests and Levites from Jerusalem to enquire about the identity of John and there John gives testimony about Jesus. He was bearing a witness to the lamb of God who could save the world. In today’s gospel Jesus refers to same testimony and reminds the Jews of their hypocrisy. John the Baptist was the lamp and Jesus was the light of that lamp, the light that shines in darkness (cf Jn 1:9). When John was calling people for repentance, they were attracted by his words and his way of life as insects and moths are attracted by light. But they did not follow his testimony about Jesus and did not mend their ways.

Jesus does not require the human testimony to prove himself. God the Father is always with him because he doing the work of God and the Father approves his works. It was through the power of God that he performed such great miracles and signs. Nicodemus declares by saying, “no one can do these signs that you do, apart from the presence of God.” (cf Jn 3:2). The works and actions of Jesus showed the presence of God. When we are doing the will of God in our life, God will sure accompany us in all our actions. We do not need anybody’s approval or witness. Our actions and behaviour should be proof that our God is with us. God can be with us only when we repent and prepare ourselves to receive him.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)