
जब अन्ना समूएल का दूध छुड़ा चुकी, तो उसने उसे अपने साथ कर लिया। वह तीन बरस का बछड़ा, एक मन आटा और एक मशक अंगूरी ले गयी और समूएल को शिलो में प्रभु के मंदिर के भीतर लायी। उस समय बालक छोटा था। बछड़े की बलि चढ़ाने के बाद, वे बालक को एली के पास ले गये। अन्ना ने कहा, "महोदय ! क्षमा करें। महोदय ! आपकी शपथ, मैं वही स्त्री हूँ जो यही प्रभु से प्रार्थना करती हुई आपके सामने खड़ी थी। मैंने इस बालक के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली। इसलिए मैं इसे प्रभु को अर्पित करती हूँ। यह आजीवन प्रभु को अर्पित है। " और उन्होंने वहाँ प्रभु की आराधना की।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है।
1. मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है। मुझे अपने प्रभु से शक्ति मिली है और मैं अपने शत्रुओं का सामना कर सकता हूँ, क्योंकि तेरा सहारा मुझे उत्साहित करता है।
2. शक्तिशालियों के धनुष टूट गये और जो दुर्बल थे, वे शक्तिसम्पन्न बन गये। जो धनी थे, वे रोटी के लिए मजबूरी करते हैं और जो भूखे थे, वे सम्पन्न बन गये। जो बाँझ थी, वह सात बार प्रसव करती है और जो पुत्रवती थी, उसकी गोद खाली है।
3. प्रभु मारता और जिलाता है, वह मनुष्यों को अधोलोक पहुँचाता और वहाँ से निकालता है, प्रभु निर्धन और धनी बना देता है, वह मनुष्यों को नीचा दिखाता और उन्हें ऊँचा उठाता है।
4. वह दीन-हीन को धूल में से निकालता है और कूड़े पर बैठे हुए कंगाल को ऊपर उठा कर उसे रइसों की संगति में पहुँचाता और सम्पन्न के आसन पर बैठा देता है।
अल्लेलूया ! तू सभी राजाओं का राजा और कलीसिया का कोने का पत्थर है। तूने धरती की मिट्टी से मनुष्य को बनाया। आ कर उसे बचाने की कृपा कर। अल्लेलूया !
मरियम बोल उठी, “मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है, मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है, क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर कृपादृष्टि की है। अब से सब पीढ़ियाँ मुझे धन्य कहेंगी; क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मेरे लिए महान् कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम ! उसकी कृपा उसके श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है। उसने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है, उसने घमंडियों को तितर-बितर कर दिया है। उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है। उसने दरिद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को खाली हाथ लौटा दिया है। इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को स्मरण कर, उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने दास इस्राएल की सुध ली है।" लगभग तीन महीने एलीजबेथ के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।
प्रभु का सुसमाचार।
आज का सुसमाचार पाठ कल के सुसमाचार की निरंतरता है। इस पाठ के शुरुआती शब्दों में, मरियम फिर से ईश्वर की अच्छाई और महानता की घोषणा करती है। येसु की माँ बनने के अपने बुलावे की चरम और असामान्य परिस्थितियों के बावजूद, मरियम खुश होती है और घोषणा करती है कि ईश्वर ने उस पर बड़ी कृपादृष्टि की है। मरियम को यह प्रश्न करने में कोई झिझक नहीं हुआ कि ईश्वर उसके जीवन में क्या कर रहा है। वह अपनी गर्भावस्था की अत्यधिक असामान्य परिस्थितियों के बारे में आश्चर्य करने में संकोच नहीं करती थी; हालाँकि, मरियम का भी ईश्वर के साथ बहुत गहरा और व्यक्तिगत रिश्ता रहा होगा। उसके भ्रम और भय के बावजूद, ईश्वर के कार्य में उसका विश्वास गहरा और हार्दिक था। हममें से प्रत्येक को ईश्वर के साथ घनिष्ठ, व्यक्तिगत और भरोसेमंद रिश्ते का उपहार भी मिल सकता है। आज हम मरियम से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमें ईश्वर में अपनी आस्था और विश्वास का हिस्सा दें। मरियम हमारी मदद करेगी. मरियम हमारे साथ चलेंगी. और ईश्वर हमें आशीर्वाद देंगे!
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)The Gospel reading for today is the continuation of yesterday’s Gospel. In the opening words of this reading, Mary again proclaims the goodness and greatness of God. Despite the extreme and unusual circumstances of her call to be the mother of Jesus, Mary rejoices and proclaims that God has looked upon her with great favor. Mary didn’t hesitate to question what God was doing in her life. She didn’t hesitate to wonder about the highly unusual circumstances of her pregnancy; however, Mary also must have had a very deep and personal relationship with God. Despite her confusion and fear, her trust in God and in God’s action was deep and heartfelt. Each of us also can have the gift of an intimate, personal and trusting relationship with God. Today may we pray to Mary and ask her to give us a share of her faith and trust in God. Mary will help us. Mary will walk with us. And God will bless us!
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
ईश्वर के इंसान बनने की घटना सबसे अद्वितीय घटना थी। इससे पहले न कभी ऐसा हुआ और न इसके बाद दोबारा ऐसा हुआ। सारी सृष्टि की सबसे अद्भुत घटना है यह। ईश्वर स्वयं शरीर धारण कर मनुष्य बनकर मनुष्यों को पाप से बचाते हैं। माता मरियम अपने स्तुतिगान में अनेकों लोगों के मन की आवाज को प्रकट करती हैं, जो ईश्वर के आगमन की बेसब्री से बात जोह रहे थे। माता मरियम का यह स्तुतिगान यह दर्शाता है कि ईश्वर कभी भी अपने भक्तों की करुण पुकार को अनसुना नहीं करता।
प्रभु येसु इस दुनिया में लाचार और बेबस लोगों का सहारा बनकर आए थे। हमारे प्रति ईश्वर का अनुपम प्रेम ही है जो ईश्वर को ज़मीं पर आने के लिए मजबूर कर देता है। प्रभु येसु वही वचन हैं जिसने शरीर धारण किया और अंधों की दृष्टि बना, बहरों के कान बना, भूले-भटकों की राह की ज्योति बना यहाँ तक कि मुरदों का नया जीवन बना। प्रभु येसु के जन्म की यह घटना लाचार और दबे-कुचले लोगों के लिए ईश्वर के प्रेम की याद दिलाती है। प्रभु येसु में सारी मानवजाति ईश्वर के करुणामय रूप के दर्शन करती है।
✍ -फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
God’s becoming man was the greatest events of all time. Nothing of this sort ever took place before nor after. This is the most unique event of whole creation. God takes on the flesh and chooses to save the world from darkness of sin. Mother Mary represents the sentiments of innumerable people in her Magnificat who are waiting for God to come and intervene in history. Mother Mary song reminds us that God never abandons his people when they need him most.
Jesus has come to this world for the poor and downtrodden. It is the love of God for each one of us that God comes down to us. Jesus is the Word that became flesh, who came to give sight to the blind, new life to the lost ones, and even freeing people from the clutches of death. Christmas is the reminder of God’s love and mercy for those who are oppressed by the powerful ones. He shows his compassionate face to humanity through Jesus.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
मरियम का गीत, जो ’मग्निफिकात’ कहलाता है, एक ऐसा गीत है जो मुक्ति के इतिहास में ईश्वर के शक्तिशाली कार्यों को याद करते हुए उनकी प्रशंसा करता है। स्तुति का यह गीत 1 समुएल 2: 1-10 में पाए जाने वाले हन्ना के गीत से बहुत मिलता-जुलता है, जिसे हन्ना ने समूएल के जन्म के समय ईश्वर की स्तुति में गाया था। मग्निफिकात हमारी धन्य माँ मारियम की आत्मा से उभरने वाला गीत है। यह उन हज़ारों स्तुतियों के समान नहीं है, जो केवल होठों से की जाती है। प्रशंसा का यह गीत उन लोगों की पीढ़ियों की ओर से पेश किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन तथा इतिहास में ईश्वर की मुक्ति की शक्ति का अनुभव किया है। यह गीत ईश्वर की मुक्ति का गीत है क्योंकि कुँवारी मरियम इस के द्वारा अपने लोगों के जीवन में गरीबों तथा शोषितों के बीच सक्रिय ईश्वर की शक्ति की प्रशंसा करती है। वे जानती हैं कि उनके साथ जो हो रहा है, वह इस्राएलियों के इतिहास में महसूस की जाने वाली इश्वर की पूरी मुक्ति-योजना का हिस्सा ही है। हमें भी अपनी आत्मा से प्रभु की स्तुति करने की ज़रूरत है, जिसे कि हम जीवन में हर रोज़ अनुभव करते हैं।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
The song of Mary, popularly known as ‘Magnificat’ is a song glorifying God enumerating his mighty works of liberation in history. This song of praise is very similar to the song of Hannah found in 1Sam 2:1-10 which she sang in praise of God at the birth of Samuel. This is a song of our blessed Mother emerged from her soul as opposed to many praises uttered merely by lips. This song of praise is offered on behalf of the generations of people who have experienced God’s liberating power in history, in their own lives. This song is a song of God’s liberation as Mary praises the liberating power of God, active in the lives of his people as experienced by the poor, the marginalised, and the exploited. She is aware that what happens to her is part of the whole liberating plan of God to be realised in the history of the Israelites. We too need to praise God from our soul for all his graciousness and generosity that we experience everyday in life.
✍ -Fr. Francis Scaria