23 दिसम्बर

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📕पहला पाठ

नबी मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4; 4:5-6

"विधान का दूत आ रहा है।"

प्रभु - ईश्वर यह कहता है, "देखो, मैं अपना दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मंदिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिसके लिए तुम तरसते हो, आ रहा है। कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है। वह चाँदी गलाने वाले शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा। तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और येरुसालेम की भेंट स्वीकार करेगा। "देखो, उस महान् एवं भयानक दिन के पहले, प्रभु के दिन के पहले, मैं नबी एलियस को तुम्हारे पास भेजूँगा। वह पिता का हृदय पुत्र की ओर अभिमुख करेगा और पुत्र का हृदय पिता की ओर। कहीं ऐसा न हो कि मैं आ कर देश का सर्वनाश कर दूँ।”

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 24:4-5,8-10,14

अनुवाक्य : उठ खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है। (लूकस 21:28)

1. हे प्रभु! तू मुझे अपने मार्ग दिखा, तू मुझे अपने पथ बता। मुझे अपनी सच्चाई के मार्ग पर ले चल और मुझे शिक्षा देने की कृपा कर, क्योंकि तू ही मेरा ईश्वर और मुक्तिदाता है।

2. प्रभु भला और न्यायी है, वह पापियों को मार्ग पर लाता है। वह दीनों को सन्मार्ग पर ले चलता और पददलितों को अपना मार्ग बताता है।

3. प्रभु के विधान और नियमों पर चलने वाले जानते हैं कि उसके मार्ग प्रेम और सच्चाई हैं। प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले उसके कृपापात्र हैं और उसके विधान का रहस्य जानते हैं।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! तू सभी राजाओं का राजा और कलीसिया का कोने का पत्थर है। तूने धरती की मिट्टी से मनुष्य को बनाया। आ कर उसे बचाने की कृपा कर। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 1:57-66

योहन बपतिस्ता का जन्म।

एलीजबेथ के प्रसव का समय पूरा हो गया और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। उसके पड़ोसियों और सम्बन्धियों ने सुना कि प्रभु ने उस पर इतनी बड़ी दया की है और उन्होंने उसके साथ आनन्द मनाया। आठवें दिन वे बच्चे का खतना करने आये। वे उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकरियस रखना चाहते थे, परन्तु उसकी माँ ने कहा, "जी नहीं, उसका नाम योहन, रखा जायेगा”। उन्होंने उस से कहा, "तुम्हारे कुटुम्ब में यह नाम तो किसी का भी नहीं है"। तब उन्होंने उसके पिता से इशारे से पूछा कि वह उसका नाम क्या रखना चाहता है। उसने पाटी मँगा कर लिखा, "उसका नाम योहन है"। सब अचम्भे में पड़ गये। उसी क्षण जकरियस के मुख और जीभ के बंधन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा। सभी पड़ोसी विस्मित हो गये और यहूदिया के पहाड़ी प्रदेश में ये सब बातें चारों ओर फैल गयीं। सभी सुनने वाले यह कह कर मन-ही-मन विचार करने लगे, "पता नहीं, यह बालक क्या होगा?" वास्तव में बालक पर प्रभु का अनुग्रह बना रहा।

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

एलिज़ाबेथ आज के सुसमाचार पाठ में प्रमुख पात्र है, जो योहन के जन्म का विवरण है। जैसा कि हम जानते हैं, एलिजाबेथ ने बुढापे में योहन को जन्म दिया था। एलिज़ाबेथ और जकर्याह को पता था कि आख़रिकार ईश्वर ने उनकी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं। उन भावनाओं की कल्पना करें जिन्हें उन्होंने अनुभव किया होगाः खुशी, आश्चर्य, कृतज्ञता। क्या अद्भुत और अप्रत्याशित उपहार है! ईश्वर हमें जवाब देंगे. क्या हमें उस पर भरोसा है? हालाँकि, यह वह विशिष्ट उत्तर नहीं हो सकता जिसकी हम अपेक्षा करते हैं, लेकिन ईश्वर हमें उपहार देगा और हम पर अनुग्रह करेगा। हमें बस एक खुला दिमाग और सुनने वाला हृदय होना चाहिए। अपनी आँखें और दिल खुला रखेंः ईश्वर आज आपके पास ऐसे तरीकों से आ सकते हैं जिनकी आपको उम्मीद नहीं है!

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Elizabeth is the prime character in today’s Gospel reading, which is the account of the birth of John the Baptist. As we know, Elizabeth conceived John at an advanced age. Elizabeth and Zechariah knew that God finally had heard their prayers. Imagine the emotions they must have experienced: joy, wonder, gratitude. What a wondrous and unexpected gift! God will answer us. Do we trust that? However, it may not be the specific answer we expect, but God will gift us and grace us. We simply need to have an open mind, and a listening heart. Keep your eyes and heart open: God may come to you today in ways that you do not expect!

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

जैसे-जैसे हम इस संसार की सबसे महानतम घटना को मनाने के करीब पहुँच रहे हैं, हमारे हृदय आनन्द, उल्लास और कृतज्ञता से भरते जा रहे हैं। हमें अपार आनन्द और खुशी का अनुभव होता है क्योंकि प्रभु स्वयं हमें बचाने आता है, भले ही हम पापी और लाचार ही क्यों न हों। इसलिए सारी सृष्टि आनन्द मनाती है। यह धन्यवाद भरा समय भी है क्योंकि यह हमारे किसी पुण्य के कारण नहीं बल्कि ईश्वर की दयालुता एवं करुणा के कारण ही संभव है कि वह हमें अपने सबसे अज़ीज उपहार को दे देते हैं। आज के सुसमाचार में हम योहन के जन्म और नामकरण की घटना को देखते हैं। जैसे ही इस बालक का जन्म होता है, सब कुछ बदलने लगता है। उसके पिता की आवाज वापस आ जाती है, और लोग आश्चर्यचकित होकर आनन्द मनाते हैं क्योंकि आश्चर्यजनक घटनाएं हो रहीं हैं।

योहन के नाम का अर्थ ही ईश्वर की दयालुता एवं कृपालुता को व्यक्त करता है, कि किस तरह से प्रभु इस मानवजाति पर दया करता और कृपायें बरसाता है। योहन का जन्म एक नये युग के आरंभ की ओर संकेत करता है, एक ईश्वरीय कृपा से पूर्ण युग का आरंभ। जब प्रभु हम पर कृपा करते हैं तो हमारे जीवन की सारी बधायें और परेशानियाँ गायब हो जाती हैं। माता मरियम ईश्वर के पुत्र की माँ इसलिए बन पाईं क्योंकि वह ईश्वरीय कृपा से परिपूर्ण थीं। यह ईश्वर की कृपा ही है जो हमें उनका स्वागत करने के लिए तैयार करती है। जब हमारे हृदय और यह संसार ईश्वर की कृपा से भरा हुआ है, तभी बालक येसु इस दुनिया में और हमारे दिलों में जन्म ले सकते हैं। प्रभु येसु के जन्मोत्सव का यह समय सारी दुनिया को ईश्वरीय कृपा से भर दे।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

As we reach more closer to the most important event of the whole human history, the readings put us in the mood of celebration and gratitude. We enter into celebration because God comes to his people and the creation rejoices and exalts. It is also a gratitude filled season because we were sinners yet God on his own accord decided to give us the greatest gift for our salvation. In the gospel today we witness the birth and naming of John the Baptist. As soon as he comes to this world, the things start changing. His father is freed from the impediment of speech and people rejoice because lot of strange things have started to happen.

The meaning of the name of John expresses the graciousness of God, how God keeps and showers his graces upon humanity. The birth of John is the beginning of new era, the beginning of the days of grace. When God is gracious towards us, all our impediments and hurdles in life disappear. Mother Mary was found to be worthy of being the mother of God’s son as she was filled with the grace of God. When we are filled with grace, we can welcome God more appropriately. The Baby Jesus can be born into this world and into our hearts only when are filled with God’s grace. May this Christmas season fill the whole world with God’s grace.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

ज़करिया के परिवार को ईश्वर की योजनाओं के साथ तालमेल बिठाना पड़ा। एलिजाबेथ बांझ थीं। ज़करिया और एलिजाबेथ दोनों बूढ़े हो चले थे। प्रभु ने उस दंपति को अपने बुढ़ापे में एक बच्चा दे कर आशीर्वाद दिया, एक बच्चा जो मसीहा का अग्रदूत बनेगा। उन्हें प्रभु की मांग को पूरा करने के लिए पिता के नाम पर बच्चे का नामकरण करने की परंपरा से हटना पड़ा। जकरियस और एलिजाबेथ के परिवार के अनुभवों से हम सीखते हैं, सबसे पहले, कि बच्चे ईश्वर के हैं और ईश्वर के उपहार हैं। इसलिए बच्चों को ईश्वर से धन्यवाद और निष्ठा के साथ प्राप्त किया जाना चाहिए। उनमें से प्रत्येक की इतिहास में एक विशिष्ट भूमिका है और प्रभु की उनमें से प्रत्येक के लिए एक विशिष्ट योजना है। हमें उनका ऐसा पालन-पोषण करना चाहिए कि वे प्रभु द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व बन जाये। जकरियस के परिवार की तरह, हमारे परिवारों को अपने पड़ोसियों और संबंधियों के लिए खुला रहना है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The family of Zachariah had to adjust to God’s designs. Elizabeth was barren. Both Zachariah and Elizabeth were advanced in years. The Lord blessed the couple in their old age with a child, a child who would become the precursor of the Messiah. They had to depart from the tradition of naming the child after the father in order to fulfill the demand of the Lord. From the experiences of the family of Zachariah and Elizabeth we learn, first of all, that children belong to God and are gifts of God. We should not take children for granted. Hence children are to be received with thanksgiving and loyalty to God. Each of them has a unique role to play in history and the Lord has a specific plan for each one them. We need to nurture them to become what they are indented to be by the Lord. Like the family of Zachariah, our families are to be open to their neighbors and relations.

-Fr. Francis Scaria