29 दिसम्बर - खीस्त-जयन्ती के अठवारे का पाँचवाँ दिन

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📕पहला पाठ

सन्त योहन का पहला पत्र 2:3-11

“जो अपने भाई को प्यार करता है, वही ज्योति में निवास करता है।”

यदि हम येसु की आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो उसी से हमें पता चलेगा कि हम उन्हें जानते हैं। जो कहता है कि मैं उन्हें जानता हूँ, किन्तु उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता, वह झूठा है और उस में सच्चाई नहीं है। परन्तु जो उनकी आज्ञाओं का पालन करता है, ईश्वर का प्रेम उस में परिपूर्णता तक पहुँचता है। जो कहता है कि मैं उन में विश्वास करता हूँ, उसे वैसा ही आचरण करना चाहिए, जैसा आचरण मसीह ने किया है। प्रिय भाइयों। मैं तुम्हें कोई नयी आज्ञा नहीं लिख रहा हूँ। यह वह पुरानी आज्ञा है, जो प्रारंभ से ही तुम्हें प्राप्त है। यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम सुन चुके हो। फिर भी जो आज्ञा मैं तुम्हें लिख रहा हूँ, वह नयी है। वह नयी इसलिए है कि वह उन में चरितार्थ हुई और तुम में भी चरितार्थ हो रही है; क्योंकि अंधकार हट रहा है और सत्य की ज्योति अब चमकने लगी है। जो कहता है कि मैं ज्योति में हूँ और अपने भाई से बैर करता है, वह अब तक अंधकार में है। जो अपने भाई को प्यार करता है, वही ज्योति में निवास करता है और कोई कारण नहीं कि उसे ठोकर लगे। परन्तु जो अपने भाई से बैर करता है, वह अंधकार में है और अंधकार में चलता है। वह यह नहीं जानता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ; क्योंकि अंधकार ने उसे अंधा बना दिया है।

प्रभु की वाणी।

📖भजन स्तोत्र 95:1-3,5-6

अनुवाक्य : स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास।

1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ। समस्त पृथ्वी प्रभु का भजन सुनाये। भजन गाते हुए प्रभु का नाम धन्य कहो।

2. दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करते जाओ। सभी राष्ट्रों में उसकी महिमा का बखान करो। सभी लोगों को उसके अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ।

3. प्रभु ने आकाश का निर्माण किया है। वह ऐश्वर्यशाली तथा महिमामय है। उसका मंदिर भव्य तथा वैभवशाली है।

📒जयघोष : लूकस 2:32

अल्लेलूया ! गैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 2:22-35

“गैरयहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति।”

जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धाकरण का दिन आया, तब वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये; जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है : हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पंडुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें। उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सांत्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था। उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मंदिर आया। माता-पिता शिशु येसु के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये, तो सिमेयोन ने येसु को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, “हे प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शांति के साथ विदा कर; क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्लाएल का गौरव।”' बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये। सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, “देखिए, इस बालक के कारण इख्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिह्न है जिसका विरोध किया जायेगा, जिससे बहुत-से हदयों के विचार प्रकट हो जायें और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगीं।”

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु के सांसारिक पिता योसेफ को प्रभु येसु के असाधारण जन्म के बारे में स्वर्गदूत ने सपने में ही बता दिया था। माता मरियम को भी स्वर्गदूत ने सन्देश देकर बताया था कि जो बालक जन्म लेगा वह पवित्र आत्मा की शक्ति से उत्पन्न होगा और ईश्वर का पुत्र कहलाएगा। वह लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा। उसके दोनों माता-पिता को उसके असाधारण बालक होने की पूरी जानकारी थी। यही शिशु जिसे वे मन्दिर में समर्पण करने के लिए ले गए थे, वह शिशु ईश्वर का पुत्र था। फिर उसे साधारण विधि पूरा करने की क्या जरूरत थी?

क्योंकि उसके माता-पिता आज्ञाकारी और धार्मिक माता-पिता थे। वह अपने धर्म के नियमों और परम्परा का निर्वहन कर रहे थे। नज़रेथ का यह नन्हा परिवार इसी कारण पवित्र परिवार कहलाता है और सारे संसार के सभी परिवारों के लिए आदर्श है। परिवार में जन्म लेने वाला हर शिशु ईश्वर की ओर से मिला एक सुन्दर उपहार है और ये प्रत्येक माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे इस मूल्यवान उपहार की देखभाल करें। इस देखभाल का पहला कदम है कि वे उस बच्चे को ईश्वर को समर्पित करें। नज़रेथ का यह पवित्र परिवार सारी दुनिया के परिवारों पर आशीष का माध्यम बने। आमेन ।

-फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Joseph was told in the dream about the special birth of Jesus. Mother Mary also was given the message by the angel that the child will be holy and will be born through the Holy Spirit. He would liberate the people from their sins. Both the parents were well aware of the extra ordinary birth and extra ordinary nature of the child. This baby Jesus that they took to the temple was the son of God. Then why should they take him for an ordinary human ceremony?

They were faithful and obedient parents. Their scripture and tradition told them about what is to be done. They obeyed the rules and regulations of the religion. This family of Nazareth is called holy family and is an ideal for the families of the whole world. Every child is a gift from God and the parents have the duty to take utmost care of this precious gift. The first step of caring for the child is to initiate the child in the relationship with God. May God bless all our families through the holy family of Nazareth.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

मनन-चिंतन - 2

सुसमाचार एक महान व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है जिसने बड़ी उत्सुकता तथा उदारता से नए मसीही युग का स्वागत किया। दुनिया के उद्धारकर्ता, बालक येसु के दर्शन में ही सिमयोन ने अपने जीवन में पूर्णता पाई। उसकी सभी इच्छाएँ येसु के दर्शन में पूरी हुईं। वह उद्धार के उस महान दिन को देखने के लक्ष्य के साथ जी रहा था। सिमयोन ने ईश्वर की सबसे बड़ी प्रतिज्ञा को अपनी आँखों के सामने पूरा होते देखा। ईश्वर अपनी सभी प्रतिज्ञाओं में विश्वासयोग्य है। इस्राएलियों को जो सबसे बडी प्रतिज्ञा मिली थी, वह मसीहा के आगमन के विषय में थी। अपने जीवन में हमें प्रभु की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने की आवश्यकता है। हमारी धन्य माँ के बारे में, एलिजाबेथ ने कहा, "धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!" (लूकस 1:45)। इब्राहीम की महानता यह थी कि वह प्रभु के वादों पर विश्वास करता था। ईश्वर ने उसे आकाश के तारों और समुद्रतट की रेत के समान असंख्य वंशज प्रदान करने का वादा किया था। यहाँ तक कि जब ईश्वर ने उसे अपने इकलौते पुत्र इसहाक का बलिदान करने के लिए कहा, तब भी इब्राहीम ने प्रभु के वचन पर विश्वास किया। क्या हम प्रभु की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करते हैं?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


REFLECTION

The Gospel presents a great personality who ushered in the new era of the Messiah with great expectation and generosity. Simeon found fulfilment in his life at the very sight of child Jesus, the saviour of the world. His desires were all fulfilled at the sight of Jesus. He was living to see that great day of deliverance. Simeon saw the greatest promise of God being fulfilled before his own very eyes. God is faithful in all his promises. The greatest promise the Israelites received was that of the coming of the Messiah. In our own lives we need to believe in the promises of the Lord. About our Blessed Mother, Elizabeth said, “And blessed is she who believed that there would be a fulfillment of what was spoken to her by the Lord” (Lk 1:45). Our Lady believed in the promises of the Lord. The greatness of Abraham was that he believed in the promises of the Lord. God promised him to make his descendants as many as the stars of heaven and the sand on the sea shore. Even when God asked him to sacrifice his only son Isaac, Abraham believed in the promise of the Lord. Are we aware of the promises of the Lord? Do we believe in them?

-Fr. Francis Scaria