
बच्चो ! कोई भी तुम्हें नहीं बहकाये। जो धर्माचरण करता है, वह उनकी तरह निष्पाप है। जो पाप करता है, वह शैतान की सन्तान है, क्योंकि शैतान प्रारंभ से पाप करता आया है। ईश्वर के पुत्र इसीलिए प्रकट हुए कि वह शैतान के कार्य समाप्त कर दें। जो ईश्वर की सन्तान है, वह पाप नहीं करता; क्योंकि ईश्वर का जीवन-तत्त्व उस में क्रियाशील है। वह पाप नहीं कर सकता, क्योंकि वह ईश्वर से उत्पन्न हुआ है। ईश्वर की सन्तान और शैतान की सन्तान की पहचान यह है - जो धर्माचरण नहीं करता, वह ईश्वर की सन्तान नहीं है; और वह भी नहीं, जो अपने भाई को प्यार नहीं करता।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य :पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है।
1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ; क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।
2. समुद्र की लहरें गरज उठें, पृथ्वी और उसके निवासी जयकार करें, नदियाँ तालियाँ बजायें और पर्वत आनन्दित हो उठें। क्योंकि प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है।
3. वह न्यायपूर्वक संसार का शासन करेगा। वह निष्पक्ष हो कर लोगों का न्याय करेगा।
अल्लेलूया ! प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विभिन्न रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था। अब अन्त में वह हम से पुत्र द्वारा बोला है। अल्लेलूया।
योहन अपने दो शिष्यों के साथ वहीं था। उसने येसु को गुजरते देखा और कहा, “देखो - ईश्वर का मेमना !” दोनों शिष्य उसकी यह बात सुन कर येसु के पीछे हो लिये। येसु ने मुड़ कर उन्हें अपने पीछे आते देखा और कहा,’‘क्या चाहते हो?" उन्होंने उत्तर दिया, “रब्बी !”' अर्थात् गुरुबर - “आप कहाँ रहते हैं? '' येसु ने उन से कहा, “आओ और देखो।” उन्होंने जा कर देखा कि वह कहाँ रहते हैं और उस दिन वे उनके साथ रहे ! उस समय शाम के लगभग चार बजे थे। जो योहन की बात सुन कर येसु के पीछे हो लिये थे, उन दोनों में से एक, सिमोन पेत्रुस का भाई अंद्रेयस था। उसने प्रात: अपने भाई सिमोन से मिल कर कहा, “हमें मसीह अर्थात् ख़ीस्त मिल गये हैं” और वह उसे येसु के पास ले गया। येसु ने उसे देख कर कहा, “तुम योहन के पुत्र सिमोन हो। तुम केफ़स - अर्थात् पेत्रुस - कहलाओगे।”
प्रभु का सुसमाचार।
योहन अपनी नैसर्गिक विनम्रता में स्वयं से परे मसीह की ओर संकेत करने के लिए अधिक उत्सुक था। उसने अपने शिष्यों को भी प्रभु येसु की ओर निर्देशित किया। जब योहन के दो शिष्य येसु को खोजने लगे, तो येसु ने उन्हें अपने साथ आने के लिए आमंत्रित किया। जब वह उनसे आधे रास्ते में मिला, तो उसने उनसे जीवन के सबसे बुनियादी प्रश्नों में से एक पूछा: "तुम क्या खोज रहे हो?" आज प्रभु येसु हम में से प्रत्येक से यही प्रश्न पूछते हैं: "तुम क्या खोज रहे हो? क्या हम अपने जीवन का अर्थ और उद्देश्य जानते हैं?" केवल ईश्वर, पिता और जीवन के रचयिता ही उस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं और हमारे उद्देश्य को पूरी तरह से हमें बता सकते हैं। इसीलिए प्रभु येसु हम में से प्रत्येक को अपने निकट आने के लिए आमंत्रित करते हैं। वह चाहते हैं कि हम उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानें - यह जानें कि वह हमारे लिए क्या करने आए हैं और वह हमें क्या देना चाहते हैं। "आओ और देखो" प्रभु का हम में से प्रत्येक के लिए निमंत्रण है कि हम उनके साथ संगति के आनंद को खोजें। यह ईश्वर ही है जो पहल करता है और हमें अपने पास खींचता है। उनकी दया और मदद के बिना हम उन्हें अपने सामर्थ्य पर ढूंढ नहीं पाते।
✍ -फादर रोनाल्ड वॉन (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
John in his trademark humility was eager to point beyond himself to the Christ, the Messiah. He even directed his own disciples to the Lord Jesus. When two of John's disciples began to seek Jesus out, Jesus invited them into his company. When he met them halfway he asked them one of the most fundamental questions of life: "What are you looking for?" Today the Lord Jesus asks each one of us the same question: "What are you searching for? Do we know the meaning and purpose for our life?" Only God, the Father and Author of life, can answer that question and make our purpose fully known to us. That is why the Lord Jesus invites each one of us to draw near to himself. He wants us to know him personally - to know what he came to do for us and what he wants to offer us. "Come and see" is the Lord's invitation for each one of us to discover the joy of communion with him. It is God who initiates and who draws us to himself. Without his mercy and help we could not find him on our own.
✍ -Fr. Ronald Vaughan(Bhopal Archdiocese)
इस सप्ताह के सुसमाचार का संदेश बहुत सीधा है, लेकिन यह वास्तव में महत्वपूर्ण है। योहन दो अनुयायियों को बताता है कि येसु "ईश्वर का मेमना" है। ये अनुयायी येसु के साथ जाने का निर्णय लेते हैं। जब येसु उन्हें देखता है, तो वह उन्हें अपने निवास-स्थान पर आमंत्रित करता है। उनमें से एक, अन्द्रयस, अपने भाई सिमोन को येसु के बारे में बताता है और वे दोनों येसु के शिष्य बन जाते हैं। भले ही यह कोई बड़ी बात न लगे, यह सुसमाचार हमें बता रहा है कि येसु चाहता है कि हम उसका अनुसरण करें, ठीक वैसे ही जैसे अन्द्रयस और सिमोन ने किया था। आज का सुसमाचार हमें याद दिलाता है कि येसु हमसे बहुत कुछ नहीं चाहते हैं। वह मुख्य रूप से चाहता है कि हम उस पर भरोसा करें और उसकी शिक्षाओं पर विश्वास करें। हम अक्सर चूक जाते हैं क्योंकि हम परिपूर्ण नहीं हैं, और जीवन कभी-कभी येसु के साथ हमारे रिश्ते के रास्ते में आ जाता है। चालीसा आने के साथ, यह सुसमाचार एक अनुस्मारक है कि यदि हम येसु का अनुसरण करने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे, तो वह हमारी गलतियों को माफ कर देंगे। रोज़ा उनके साथ हमारे संबंध को मजबूत करने का एक अच्छा समय है।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
The message in this week’s gospel is pretty straightforward, but it’s really important. John tells two followers that Jesus is the “lamb of God.” These followers decide to go with Jesus. When Jesus sees them, he invites them to his place. One of them, Andrew, tells his brother Simon about Jesus, and they both become Jesus’ disciples. Even though it might not seem like a big deal, this gospel is telling us that Jesus wants us to follow him, just like Andrew and Simon did. The gospel-passage reminds us that Jesus does not ask for a lot from us. He mainly wants us to trust him and believe in his teachings. We often fall short because we are not perfect, and life sometimes gets in the way of our relationship with Jesus. With Lent coming up, this gospel is a reminder that if we stay committed to following Jesus, he will forgive our mistakes. Lent is a great time to strengthen our connection with him.
✍ -Fr. Paul Raj
कोई किसी और की प्रेरणा या अनुनय के लिए प्रभु येसु का अनुसरण कर सकता है। येसु चाहते हैं कि हर शिष्य उनका पीछा करने के लिए सचेत फैसला करे। संत योहन बपतिस्ता ने अपने शिष्यों को येसु का अनुसरण करने के लिए भेजा, लेकिन येसु चाहते थे कि वे स्वयं के लिए एक उचित प्रश्न का उत्तर ढ़ूँढ़े - "आप क्या ढ़ूँढ रहे हैं?" मैं येसु का अनुसरण करते वक्त क्या खोज रहा हूँ? येसु ने उन्हें अपने लिए एक स्थायी प्रतिबद्धता बनाने से पहले अपनी जीवन-शैली और जीवन-स्थितियों का अनुभव करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने येसु की संगति में जो अनुभव किया, उससे इतने अभिभूत थे, कि वे अपने प्रिय और निकट के लोगों को येसु के पास ले आए। वे अपने पड़ोसियों और दोस्तों के साथ मिले खजाने को साझा करना चाहते थे। बाइबिल कहती है कि वापस आते ही अन्द्रयस ने पेत्रुस को येसु के सामने लाने के पहल किया। श्रीलंका के मेथोडिस्ट सुसमाचार प्रचारक डी. टी. नाइल्स कहते हैं, "ईसाई धर्म यह है कि एक भिखारी दूसरे भिखारी को बताता है कि उसे भोजन कहां मिला"। हमारी दुनिया में बहुत से लोग शांति, न्याय और दया के भूखे हैं। येसु इन सभी आशिषों का स्रोत है। यह अनिवार्य हो जाता है कि हम पूरी मानवजाति के लिए येसु की घोषणा करें। आइए हम कम से कम एक कदम आज सुसमाचार के प्रचार की ओर बढ़ाएं।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Someone may begin to follow Jesus at the inspiration or persuasion of someone else. But Jesus wants every disciple to make a conscious decision to follow him. John the Baptist sent his disciples to follow Jesus, but Jesus wanted them to answer for themselves a pertinent question – “What do you seek?” What am I searching for in following Jesus? Jesus invited them to come and experience his life-style and life-situations before making a permanent commitment for him. They were so overwhelmed by what they experienced in the company of Jesus, that they brought their dear and near ones to Jesus. They wanted to share with their neighbors and friends the treasure they had found. The Bible says that “the first thing” that Andrew did was to bring Peter to Jesus. D.T. Niles, a Sri Lankan Methodist Evangelist says, “Christianity is one beggar telling another beggar where he found food”. Many in our world are hungry for peace, justice and mercy. Jesus is the source of all these. It becomes imperative that we proclaim Jesus to the whole humanity. Let us make at least one move today towards evangelization of others.
✍ -Fr. Francis Scaria