मैं तेरा धन्यवाद और तेरी स्तुति करूँगा, मैं प्रभु का नाम धन्य कहूँगा। मैं जब अल्पवयस्क और निर्दोष था, उस समय भी मैं आग्रह के साथ प्रज्ञा के लिए प्रार्थना करता था। मैं मंदिर के प्रांगण में उसके लिए अनुरोध करता था और अंत तक उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करता रहूँगा। वह फलते-फूलते हुए अंगूर की तरह मुझ में विकसित हो कर मुझे आनन्दित करती रही। मैं सीधे मार्ग पर आगे बढ़ता गया और बचपन से ही प्रज्ञा का अनुगामी बना। मैंने थोड़े समय तक उस पर कान दिया था और मुझे प्रचुर मात्रा में शिक्षा मिली। मैं उसी के कारण प्रगति कर सका। जिसने मुझे प्रज्ञा प्रदान की है, मैं उसकी महिमा करूँगा। मैंने प्रज्ञा के अनुसार आचरण करने का निश्चय किया। मैं भलाई करता रहा। मुझे कभी लज्जित नहीं होना पड़ेगा। मैं प्रज्ञा प्राप्त करने के लिए पूरी शक्ति से प्रयास करता रहा और संहिता के पालन में ईमानदार रहा। मैंने आकाश की ओर हाथ ऊपर उठाया और अपनी नासमझी पर दुःख प्रकट किया। मैं उत्सुकता से प्रज्ञा को खोजता रहा और अपने सदाचरण के कारण मैंने उसे पाया।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य: प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं।
1. प्रभु का नियम सर्वोतम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वासनीय है; वह अज्ञानियों को समझदार बना देती है।
2. प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं। प्रभु की आज्ञाएँ स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं।
3. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं। वे सब के सब न्यायसंगत हैं।
4. वे सोने से अधिक वांछनीय हैं, परिष्कृत सोने से भी अधिक वांछनीय। वे मधु से अधिक मधुर हैं, छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक मधुर।
अल्लेलूया ! मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करे। आप उनके द्वारा पिता-ईश्वर को धन्यवाद देते रहें। अल्लेलूया !
येसु और उनके शिष्य फिर येरुसालेम आये। जब येसु मंदिर में टहल रहे थे, तो महायाजक, शास्त्री और नेता उनके पास आ कर पूछने लगे, "आप किस अधिकार से यह सब कर रहे हैं? किसने आप को यह सब करने का अधिकार दिया है?" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ। बताइए, योहन का बपतिस्मा स्वर्ग का था अथवा मनुष्यों का?" वे यह कह कर आपस में परामर्श करने लगे- "यदि हम कहें, 'स्वर्ग का', तो यह कहेंगे, 'तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया'। यदि हम कहें, 'मनुष्यों का' तो…।" वे जनता से डरते थे, क्योंकि सब योहन को नबी मानते थे। इसलिए उन्होंने येसु को उत्तर दिया, "हम नहीं जानते।" इस पर येसु ने उन से कहा, "तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।"
प्रभु का सुसमाचार।