वर्ष का दसवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 5:14-21

"जिसका कोई पाप नहीं था। उसी को उसने हमारे कल्याण के लिए पाप का भागी बना दिया।"

मसीह का प्रेम हमें प्रेरित करता रहता है; क्योंकि हम समझ गये हैं कि जब एक सबों के लिए मर गया, तो सभी मर गये हैं। मसीह सबों के लिए मर गये, जिससे जो जीवित हैं, वे अब से अपने लिए नहीं, बल्कि उनके लिए जीवन बितायें, जो उनके लिए मर गये और जी उठे हैं। इसलिए हम अब से किसी को भी दुनिया की दृष्टि से नहीं देखते। हमने मसीह को पहले दुनिया की दृष्टि से देखा, किन्तु अब हम ऐसा नहीं करते। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नया मनुष्य बन गया है। पुरानी बातें समाप्त हो गयी हैं और सब कुछ नया हो गया है। ईश्वर ने यह सब किया है उसने मसीह के द्वारा अपने से हमारा मेल कराया और इस मेल-मिलाप का सेवा-कार्य हम प्रेरितों को सौंपा है। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर ने मनुष्यों के अपराध उनके खर्चे में न लिख कर मसीह के द्वारा अपने से संसार का मेल कराया और इस मेल-मिलाप के संदेश का प्रचार हमें सौंपा है। इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं, मानो ईश्वर हमारे द्वारा आप लोगों से अनुरोध कर रहा हो। हम मसीह के नाम पर आप लोगों से यह विनती करते हैं, कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें। मसीह का कोई पाप नहीं था; फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बना दिया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,8-9,11-12

अनुवाक्य : प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमजोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से सँभालता है।

3. प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। उसका क्रोध समाप्त हो जाता और सदा के लिए नहीं बना रहता है।

4. आकाश पृथ्वी के ऊपर जितना ऊँचा है, उतना महान् है अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम। पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है।

जयघोष

अल्लेलूया ! हे ईश्वर ! अपने नियमों का प्रेम मेरे हृदय में रोपने और मुझे अपनी आज्ञाएँ सिखाने की कृपा कर। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:33-37

"मैं तुम से कहता हूँ : शपथ कभी नहीं खानी चाहिए।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "तुम लोगों ने यह भी सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है - झूठी शपथ मत खाओ। प्रभु के सामने खायी हुई शपथ पूरी करो। परन्तु मैं तुम से कहता हूँ : शपथ कभी नहीं खानी चाहिए न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह ईश्वर का सिंहासन है; न पृथ्वी की, क्योंकि वह उसका पाँवदान है; न येरुसालेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है और न अपने सिर की, क्योंकि तुम इसका एक भी बाल सफेद या काला नहीं कर सकते। तुम्हारी बात इतनी हो - हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। जो इस से अधिक है, वह बुराई से उत्पन्न होता है।"

प्रभु का सुसमाचार।