वर्ष का ग्यारहवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 6:1-10

"हम ईश्वर के योग्य सेवक की तरह आचरण करने का प्रयत्न करते हैं।"

हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि ईश्वर की जो कृपा आप को मिली है, उसे व्यर्थ न होने दें। क्योंकि वह कहता है - मैंने उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनी है; मैंने कल्याण के दिन तुम्हारी सुध ली है। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है। हम हर बात में इसका ध्यान रखते हैं कि किसी को हमारी ओर उंगली उठाने का अवसर न मिले। कहीं ऐसा न हो कि हमारे सेवा-कार्य पर कलंक लगे। हम कष्ट, अभाव, संकट, कोड़ों की मार, क़ैद और उपद्रव में धीर बने हुए और अथक परिश्रम, जागरण तथा उपवास करते हुए, हर परिस्थिति में, ईश्वर के योग्य सेवक की तरह आचरण करने का प्रयत्न करते हैं। हमारी सिफ़ारिश यह है – निर्दोष जीवन, अन्तर्दृष्टि, सहनशीलता, मिलनसारी, पवित्र आत्मा के वरदान, निष्कपट प्रेम, सत्य का प्रचार, ईश्वर का सामर्थ्य। हम दाहिने और बायें हाथ में धार्मिकता के शस्त्र लिये संघर्ष करते रहते हैं। सम्मान तथा अपमान, प्रशंसा तथा निन्दा - यह सब हमारे भाग्य में है। हम कपटी समझे जाते हैं, किन्तु हम सत्य बोलते हैं; हम नगण्य हैं, किन्तु सब लोग हमें जानते हैं; हम मरने-मरने को हैं, किन्तु हम जीवित हैं; हम मार खाते रहते हैं, किन्तु हमारा वध नहीं होता। हम दुःखी हैं, फिर भी हम हर समय आनन्दित हैं। हम दरिद्र हैं, फिर भी हम बहुतों को सम्पन्न बनाते हैं। हमारे पास कुछ नहीं है, फिर भी सब कुछ हमारा है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 97:1-4

अनुवाक्य : प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया।

1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।

2. प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया और सभी राष्ट्रों को अपना न्याय दिखाया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रख कर इस्राएल के घराने की सुध ली है।

3. पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। समस्त पृथ्वी आनन्द मनाये और ईश्वर की स्तुति करे।

जयघोष

अल्लेलूया ! तेरी शिक्षा मुझे ज्योति प्रदान करती है और मेरा पथ आलोकित कर देती है। अल्लेलूया !

सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:38-42

"मैं तुम से कहता हूँ - दुष्ट का सामना नहीं करो।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो। यदि कोई मुकदमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहे, तो उसे अपनी चादर भी ले लेने दो। और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ। जो तुम से माँगे, उसे दे दो और जो तुम से उधार लेना चाहे, उस से मुँह न मोड़ो।"

प्रभु का सुसमाचार।