वर्ष का ग्यारहवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 11:1-11

"मैंने बिना कुछ लिये आप लोगों के बीच ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार किया।"

ओह ! यदि आप लोग मेरी थोड़ी-सी नादानी सहन कर लेते ! खैर, आप मुझे अवश्य सहन करेंगे। मैं जितनी तत्परता से आप लोगों की चिन्ता करता रहता हूँ, वह ईश्वर की चिन्ता जैसी है मैंने आपके एकमात्र दुलहे मसीह के साथ आपका वाग्दान सम्पन्न किया, जिससे मैं आप को पवित्र कुँवारी की तरह उनके सामने प्रस्तुत कर सकूँ। मुझे डर है कि जिस प्रकार साँप ने अपनी धूर्तता से हौवा को धोखा दिया था, उसी प्रकार आप लोगों का मन भी न बहका दिया जाये और आप मसीह के प्रति अपनी निष्कपट भक्ति न खो बैठें। क्योंकि जब कोई आप लोगों के पास एक ऐसे येसु का प्रचार करने आता है, जो हमारे द्वारा प्रचारित येसु से भिन्न है, या एक ऐसा आत्मा अथवा सुसमाचार ग्रहण करने को कहता है, जो आपके द्वारा स्वीकृत आत्मा अथवा सुसमाचार से भिन्न है, तो आप लोग उस व्यक्ति का स्वागत करते हैं। ऐसे महान् प्रचारकों से मैं अपने को किसी भी तरह कम नहीं समझता। मैं अच्छा वक्ता नहीं हूँ, किन्तु मुझ में ज्ञान का अभाव नहीं इसका प्रमाण मैं सब तरह से और हर प्रकार की बातों में आप लोगों को दे चुका हूँ। आप लोगों को ऊपर उठाने के लिए मैंने अपने को दीन-हीन बना लिया और बिना कुछ लिये आप लोगों के बीच ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार किया- क्या इस में मेरा कोई दोष था? आप लोगों की सेवा करने के लिए मैंने दूसरी कलीसियाओं से चंदा माँगा। आप लोगों के यहाँ रहते समय जब मैं आर्थिक संकट में पड़ जाता था, तो मैं किसी के लिए भी भार नहीं बना। मकेदूनिया से आने वाले भाइयों ने मेरी आवश्यकताएँ पूरी कर दीं। मैं आपके लिए भार नहीं बना और कभी नहीं बनूँगा। मुझ में विद्यमान मसीह की सच्चाई की शपथ ! अखैया भर में कोई या कुछ भी मुझे इस गौरव से वंचित नहीं कर सकेगा। ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि मैं आप को प्यार नहीं करता? ईश्वर जानता है कि मैं आप लोगों को प्यार करता हूँ।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 110:1-4,7-8

अनुवाक्य : प्रभु के कार्य सच्चे तथा न्यायपूर्ण हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)

1. धर्मियों की गोष्ठी और उनकी सभा में मैं सारे हृदय से प्रभु की स्तुति करूँगा। प्रभु के कार्य महान् हैं, भक्त जन उनका मनन करें।

2. उसके कार्य प्रतापी तथा ऐश्वर्यपूर्ण हैं, उसका न्याय युग-युगों तक बना रहता है। प्रभु के कार्य स्मरणीय हैं। प्रभु दयालु और प्रेममय है।

3. उसके कार्य सच्चे तथा न्यायपूर्ण हैं। उसके सभी नियम अपरिवर्तनीय हैं। वे युगयुगों तक बने रहेंगे, उनके मूल में न्याय और सत्य है।

जयघोष

अल्लेलूया ! आप लोगों को गोद लिये हुए पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता !" अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:7-15

"तुम इस प्रकार प्रार्थना किया करो।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "प्रार्थना करते समय गैरयहूदियों की तरह रट नहीं लगाओ। वे समझते हैं कि लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करने से हमारी सुनवाई होती है। उनके समान नहीं बनो, क्योंकि तुम्हारे माँगने से पहले ही तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें किन-किन चीजों की जरूरत है। तो इस प्रकार प्रार्थना किया करो हे स्वर्ग में विराजमान् हमारे पिता ! तेरा नाम पवित्र माना जाये। तेरा राज्य आये। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में, वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो। आज हमारा प्रतिदिन का आहार हमें दे। हमारे अपराध क्षमा कर, जैसे हमने भी अपने अपराधियों को क्षमा किया है। और हमें परीक्षा में न डाल, बल्कि बुराई से हमें बचा।" "यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। परन्तु यदि तुम दूसरों को नहीं क्षमा करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।"

प्रभु का सुसमाचार।