वर्ष का ग्यारहवाँ सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 1

पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 11:18,21-30

"इन बातों के अतिरिक्त सब कलीसियाओं के विषय में मेरी चिन्ता बनी रहती है।"

जब कि बहुत-से लोग उन बातों की डींग मारते हैं, जो संसार की दृष्टि में महत्त्व रखती हैं, तो मैं भी वही करूँगा। वे इब्रानी हैं? मैं भी हूँ ! वे इस्राएली हैं? मैं भी हूँ ! वे इब्राहीम की सन्तान हैं? मैं भी हूँ! वे मसीह के सेवक हैं? मैं नादानी की झोंक में कहता हूँ कि मैं इस विषय में उन से बढ़ कर हूँ। मैंने उन से अधिक परिश्रम किया, अधिक समय बन्दीगृह में बिताया और अधिक बार कोड़े खाये। मैं बारम्बार प्राणसंकट में पड़ा। यहूदियों ने मुझे पाँच बार एक कम चालीस कोड़े लगाये। मैं तीन बार बेंतों से पीटा और एक बार पत्थरों से मारा गया। तीन बार ऐसा हुआ कि जिस नाव पर मैं यात्रा कर रहा था, वह टूट गयी और एक बार वह रात और दिन भर खुले समुद्र पर इधर-उधर बहती रही। मैं बारम्बार यात्रा करता रहा। मुझे नदियों के खतरे का सामना करना पड़ा, डाकुओं के खतरे, यहूदियों के खतरे, गैर-यहूदियों के खतरे, नगरों के खतरे, निर्जन स्थानों के खतरे, समुद्र के खतरे और कपटी भाइयों के खतरे का। मैंने कठोर परिश्रम किया और बहुत-सी रातें जागते हुए बितायीं। मुझे अक्सर भोजन नहीं मिला। भूख-प्यास, ठण्ढ और कपड़ों का अभाव - यह सब मैं सहता रहा। और इन बातों के अतिरिक्त सब कलीसियाओं के विषय में मेरी चिन्ता हर समय बनी रहती है। जब कोई दुर्बल है, तो क्या मैं उसकी दुर्बलता से प्रभावित नहीं? जब किसी का पतन होता है, तो क्या मैं इसका तीखा अनुभव नहीं करता? यदि किसी बात पर गौरव करना ही है, तो मैं अपनी दुर्बलताओं पर गौरव करूँगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 33:2-7

अनुवाक्य : ईश्वर हर प्रकार की विपत्ति में धर्मियों की रक्षा करता है।

1. मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कण्ठ निरन्तर उसकी स्तुति करता रहेगा। मेरी आत्मा प्रभु पर गौरव करेगी। विनम्र, सुन कर, आनन्दित हो उठेंगे।

2. मेरे साथ प्रभु की महिमा का गीत गाओ, हम मिल कर उसके नाम की स्तुति करें। मैंने प्रभु को पुकारा। उसने मेरी सुनी और मुझे हर प्रकार के भय से मुक्त कर दिया।

3. जो प्रभु की ओर दृष्टि लगाता है, वह आनन्दित होगा- उसे कभी लज्जित नहीं होना पड़ेगा। दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उसकी सुनी और उसे हर प्रकार की विपत्ति से बचा लिया।

जयघोष

अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं- स्वर्गराज्य उन्हीं का है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:19-23

"जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहाँ तुम्हारा हृदय भी रहेगा।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीड़े खाते हैं और चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीड़े खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी रहेगा।" “आँख शरीर का दीपक है। यदि तुम्हारी आँख अच्छी हो, तो तुम्हारा सारा शरीर प्रकाशमान होगा; किन्तु यदि तुम्हारी आँख बीमार हो, तो तुम्हारा सारा शरीर अंधकारमय होगा। इसलिए जो ज्योति तुम में है, यदि वही अंधकार हो, तो यह कितना घोर अंधकार होगा।"

प्रभु का सुसमाचार।