वर्ष का बारहवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 12:1-9

"अब्राम चला गया जैसा कि प्रभु ने उस से कहा था।"

प्रभु ने अब्राम से कहा, “अपना देश, अपना कुटुम्ब और अपने पिता का घर छोड़ दो और उस देश जाओ, जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा। मैं तुम्हारे द्वारा एक महान् राष्ट्र उत्पन्न करूँगा, तुम्हें आशीर्वाद दूँगा और तुम्हारा नाम इतना महान् बनाऊँगा कि वह कल्याण का स्रोत बन जायेगा। जो तुम्हें आशीर्वाद देते हैं, मैं उन्हें आशीर्वाद दूँगा। जो तुम्हें शाप देते हैं, मैं उन्हें शाप दूँगा। तुम्हारे द्वारा पृथ्वी भर के वंश आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।" तब अब्राम चला गया जैसा कि प्रभु ने उस से कहा था और लोत उसके साथ गया। जब अब्राम हारान छोड़ कर चला गया, तो उसकी अवस्था पचहत्तर वर्ष की थी। अब्राम अपनी पत्नी सारय तथा अपने भतीजे लोत को अपने साथ ले गया और उनके द्वारा संचित समस्त सम्पत्ति तथा उन सब लोगों को भी, जो उन्हें हारान में मिल गये थे। वे कनान देश चले गये। वहाँ पहुँच कर अब्राम ने सिखेम नगर तक, मोरे के बलूत तक उस देश को पार किया। उस समय कनानी उस देश में निवास करते थे। प्रभु ने अब्राम को दर्शन दे कर कहा, "मैं यह देश तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूँगा।" अब्राम ने वहाँ प्रभु के लिए, जिसने उसे दर्शन दिये थे, एक वेदी बनायी। उसने वहाँ से बेतेल के पूर्व के पहाड़ी प्रदेश जा कर पड़ाव डाला। उसके पश्चिम में बेतेल और पूर्व में अय था। उसने वहाँ प्रभु के लिए एक वेदी बनायी और प्रभु का नाम ले कर प्रार्थना की। इसके बाद अब्राम जगह-जगह पड़ाव डालते हुए नेगेब की ओर आगे बढ़ा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 32:12-13,18-20,22

अनुवाक्य : धन्य है वह राष्ट्र, जिसे प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

1. धन्य हैं वे लोग, जिनका ईश्वर प्रभु है, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है। प्रभु आकाश के ऊपर से दृष्टि डालता और सभी मनुष्यों को देखता रहता है।

2. प्रभु की कृपादृष्टि उसके भक्तों पर बनी रहती है, उन पर जो उसके प्रेम से यह आशा करते हैं कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।

3. हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा उद्धारक और रक्षक है। हे प्रभु ! तेरा प्रेम हम पर बना रहे। तुझ पर ही हमारा भरोसा है।

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:1-5

"पहले अपनी ही आँख की धरन निकाल लो।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "दोष न लगाओ, जिससे तुम पर भी दोष न लगाया जाये; क्योंकि जिस रीति से तुम दोष लगाते हो, उसी रीति से तुम पर भी दोष लगाया जायेगा और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा। जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं है, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो? जब तुम्हारी ही आँख में धरन है, तो तुम अपने भाई से कैसे कह सकते हो, 'मैं तुम्हारी आँख का तिनका निकाल दूँ?' रे ढोंगी ! पहले अपनी ही आँख की धरन निकाल लो। तभी अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे।"

प्रभु का सुसमाचार।