वर्ष का बारहवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 16:1-12,15-16

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
"हागार से अब्राम के एक पुत्र हुआ और उसने उसका नाम इसमाइल रखा।"

[ अब्राम की पत्नी सारय के कोई सन्तान नहीं हुई थी। सारय की हागार नामक एक मिस्त्री दासी थी। उसने अपने पति से कहा, "आप देखते ही हैं कि प्रभु ने मुझे बाँझ बना दिया है। आप मेरी दासी के पास जाइए। हो सकता है कि उसके माध्यम से मुझे सन्तान मिल जाये।" और अब्राम ने सारय की बात मान ली। इस प्रकार जब अब्राम को कनान के देश में रहते दस बरस हो गये, तो उसकी पत्नी सारय अपनी मिस्त्री दासी हागार को ले कर आयी और उसने उसे उपपत्नी के रूप में अपने पति अब्राम को दे दिया। अब्राम का हागार से संसर्ग हुआ और वह गर्भवती हो गयी। जब उसे मालूम हुआ कि वह गर्भवती है, तो वह अपनी स्वामिनी का तिरस्कार करने लगी। सारय ने अब्राम से कहा, "मेरे साथ जो अन्याय हो रहा है, उसके लिए आप उत्तरदायी हैं। मैंने आप को अपनी दासी को समर्पित कर दिया और जब से उस को मालूम हो गया है कि वह गर्भवती है, वह मेरा तिरस्कार करने लगी है। प्रभु हम दोनों का न्याय करे।" अब्राम ने उत्तर दिया, "अपनी दासी पर तुम्हारा पूरा अधिकार है। जैसी इच्छा हो, उसके साथ वैसा व्यवहार करो।"]

उस समय से सारय हागार के साथ इतना दुर्व्यवहार करने लगी कि वह घर छोड़ कर भाग गयी। प्रभु के दूत ने हागार को उजाड़ प्रदेश में शूर के रास्ते पर किसी झरने के पास पाया और उस से कहा, "सारय की दासी, हागार ! तुम कहाँ से आयी और कहाँ जा रही हो?" उसने उत्तर दिया, "मैं अपनी स्वामिनी सारय के यहाँ से भाग आयी हूँ।" प्रभु के दूत ने उस से कहा, "तुम गर्भवती हो और तुम प्रसव करोगी। तुम उसका नाम इसमाएल रखोगी, क्योंकि प्रभु ने तुम्हारे प्रति दुर्व्यवहार के विषय में सुना। वह गोरखर जैसा मनुष्य होगा, वह सबों पर हाथ उठायेगा और सब उस पर हाथ उठायेंगे। वह अपने सब सम्बन्धियों का विरोध करेगा।" हागार से अब्राम को एक पुत्र हुआ और अब्राम ने उस पुत्र का नाम इसमाएल रखा। जब हागार से इसमाएल उत्पन्न हुआ, उस समय अब्राम की उम्र छियासी वर्ष की थी।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 105:1-5

अनुवाक्य : प्रभु की स्तुति करो, क्योंकि वह भला है।

1. प्रभु की स्तुति करो, क्योंकि वह भला है। उसका प्रेम अनन्तकाल तक बना रहता है। प्रभु के महान् कार्यों का वर्णन कौन

2. कर सकता है? उसकी यथायोग्य स्तुति कौन कर सकता है? धन्य हैं वे, जो प्रभु की संहिता का पालन करते और हर समय सदाचरण करते हैं ! तू अपनी प्रजा को प्यार करता है। हे प्रभु ! मुझे भी याद कर !

3. हे प्रभु ! आ कर हमारी सहायता कर, जिससे मैं तेरे कृपापात्रों का आनन्द देख सकूँ, तेरे भक्तों की सुख-शांति से प्रफुल्लित होऊँ। और तेरी प्रजा की महिमा का भागी बन जाऊँ।

जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आ कर उस में निवास करेंगे।" अल्लेलूया !

सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:21-29

चट्टान पर और बालू पर बनाये घर।

प्रभु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "जो लोग 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कह कर मुझे पुकारते हैं, उन में से सब के सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा। उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु ! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकाला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?' तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, 'मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। रे कुकर्मियो ! मुझ से दूर हटो'।" "जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। "जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया। पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।" जब येसु का यह उपदेश समाप्त हुआ, तो लोग उनकी शिक्षा पर बड़े अचम्भे में पड़ गये; क्योंकि वह उनके शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

प्रभु का सुसमाचार।