वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह – मंगलवार - वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 19:15-29

"प्रभु ने सोदोम और गोमोरा पर गन्धक और आग बरसायी।"

स्वर्गदूतों ने यह कहते हुए लोत से अनुरोध किया, "जल्दी कीजिए। अपनी पत्नी और अपनी दोनों पुत्रियों को ले जाइए। नहीं तो आप भी नगर के दण्ड की लपट में नष्ट हो जायेंगे।" वह हिचकता रहा, इसलिए स्वर्गदूत उसका, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों का हाथ पकड़ कर नगर के बाहर ले चले, क्योंकि प्रभु लोत को बचाना चाहता था। नगर के बाहर पहुँच कर एक स्वर्गदूत ने कहा, "जान बचा कर भाग जाइए। पीछे मुड़ कर मत देखिएगा और घाटी में कहीं भी नहीं रुकिएगा। पहाड़ पर भाग जाइए, नहीं तो आप नष्ट हो जायेंगे।" लोत ने उत्तर दिया, "महोदय ! यह नहीं होगा ! आपने मुझ पर दयादृष्टि की और मेरी जान बचा कर मेरा बड़ा उपकार किया। यदि मैं पहाड़ पर भाग जाऊँ, तो मैं विपत्ति से नहीं बच सकूँगा और निश्चय ही मर जाऊँगा। देखिए, सामने की नगरी अधिक दूर नहीं है। मैं वहाँ शीघ्र ही पहुँच सकता हूँ। मुझे वहाँ शरण लेने दीजिए। यह एक छोटी सी जगह है। मैं वहाँ सुरक्षित होऊँगा।" स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "आपका यह निवेदन मुझे स्वीकार है। मैं इस नगरी का विनाश नहीं करूँगा। शीघ्र ही वहाँ भाग जाइए। जब तक आप वहाँ नहीं पहुँचेंगे, तब तक मैं कुछ नहीं करूँगा।" इस कारण वह नगरी सोअर कहलाती है। जिस समय पृथ्वी पर सूर्य का उदय हुआ और लोत सोअर पहुँचा, उस समय प्रभु ने सोदोम और गोमोरा पर आकाश से गंधक और आग बरसायी। उसने उन नगरों को, सारी घाटी को, उसके समस्त निवासियों को और उसके सभी पेड़-पौधों को नष्ट कर दिया। लोत की पत्नी ने, जो उसके पीछे चल रही थी, मुड़ कर देखा और वह नमक का खम्भा बन गयी। दूसरे दिन सबेरे ही इब्राहीम उस जगह पहुँचा, जहाँ वह प्रभु के साथ खड़ा हुआ था। उसने सोदोम, गोमोरा और सारी घाटी पर दृष्टि दौड़ा कर देखा कि भट्ठी के धुएँ की तरह भूमि पर से धुआँ ऊपर उठ रहा है। इस प्रकार जब ईश्वर ने घाटी के नगरों का विनाश किया, तो उसने इब्राहीम का ध्यान रखा और लोत की रक्षा की, जब उसने उन नगरों का विनाश किया जहाँ वह रहता था।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 25:2-3,9-12

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मैं तेरे प्रेम का मनन करता रहता हूँ।

1. हे प्रभु ! मुझे परख ! मेरी परीक्षा ले ! मेरे हृदय और अन्तःकरण की जाँच कर ! मैं तेरे प्रेम का मनन करता रहता और तेरी सच्चाई के मार्ग पर चलता हूँ।

2. मुझे पापियों के साथ न मिला और न उन हत्यारों के साथ ही, जिसके हाथ कुकर्मों से दूषित हैं और रिश्वत से भरे रहते हैं।

3. मैं तो धर्म के मार्ग पर चलता हूँ। हे प्रभु! दयापूर्वक मेरा उद्धार कर। मेरे पैर सन्मार्ग से नहीं भटकेंगे। हे प्रभु ! मैं भरी सभा में तुझे धन्य कहूँगा।

जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु ही मेरा आसरा है। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 8:23-27

"उन्होंने वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शांति छा गयी।"

येसु अपने शिष्यों के साथ नाव पर सवार हो गये। उस समय समुद्र में एकाएक इतनी भारी आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। परन्तु येसु तो सो रहे थे। शिष्यों ने पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, "प्रभु ! हमें बचाइए। हम डूब रहे हैं।" येसु ने उन से कहा, "रे अल्पविश्वासियो ! डरते क्यों हो?" तब उठ कर उन्होंने वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शांति छा गयी। इस पर वे लोग अचंभे में पड़ कर कहने लगे, "आखिर यह कौन हैं? वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं।"

प्रभु का सुसमाचार।

टक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किन्तु सँकरा है वह द्वार और सँकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।"

प्रभु का सुसमाचार।