वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह, बुधवार - वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 21:5,8-20

"दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ विरासत का अधिकारी नहीं होगा।"

जब इब्राहीम का पुत्र इसहाक पैदा हुआ, तो इब्राहीम की उमर एक सौ बरस की थी। बच्चा बढ़ता गया और उसका दूध छुड़ाया गया। इसहाक की दूध छुड़ाई के दिन इब्राहीम ने एक बड़ी दावत दी। सारा ने मिस्त्री हागार के पुत्र को अपने पुत्र इसहाक के साथ खेलते हुए देखा और इब्राहीम से कहा, "इस दासी और इसके पुत्र को घर से निकाल दीजिए। इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साथ विरासत का अधिकारी नहीं होगा।" अपने पुत्र के बारे में यह बात इब्राहीम को बहुत बुरी लगी, किन्तु ईश्वर ने उस से कहा, "बच्चे और अपनी दासी की चिन्ता मत करो। सारा की बात मानो, क्योंकि इसहाक के वंशजों द्वारा तुम्हारा नाम बना रहेगा। मैं दासी के पुत्र के द्वारा भी एक महान् राष्ट्र उत्पन्न करूँगा, क्योंकि वह भी तुम्हारा पुत्र है।" इब्राहीम ने सबेरे उठ कर हागार को रोटी और पानी भरी मशक दी और बच्चे को उसके कन्धे पर रख कर उसे निकाल दियां। हागार चली गयी और बएर-शेबा के उजाड़ प्रदेश में भटकती रही। जब मशका पानी समाप्त हो गया, तो उसने बच्चे को एक झाड़ी के नीचे रख दिया और वह जा कर तीर के टप्पे की दूरी पर बैठ गयी, क्योंकि उसने अपने मन में कहा, "मैं बच्चे का मरना नहीं देख सकती।" इसलिए वह वहाँ बैठी हुई फूट कर रोने लगी। ईश्वर ने बच्चे का रोना सुना और ईश्वर के दूत्त ने आकाश से हागार को सम्बोधित कर कहा, "हागार ! क्या बात है? मत डरो। ईश्वर ने बच्चे का रोना सुना, जहाँ तुमने उसे रखा है। उठ खड़ी हो और बच्चे को उठाओ और सँभाल कर रखो, क्योंकि मैं उसके द्वारा एक महान् राष्ट्र उत्पन्न करूँगा।" तब ईश्वर ने हागार की आँखें खोल दीं और उसे एक कुआँ दिखाई पड़ा। उसने मशक भरी और बच्चे को पिलाया। ईश्वर बच्चे का साथ देता रहा। वह बढ़ता गया और उजाड़ प्रदेश में रह कर धनुर्धर बना।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 33:7-8,10-13

अनुवाक्य : दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी और प्रभु ने उसकी सुनी।

1. दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उसकी सुनी और उसे हर प्रकार की विपत्ति से बचा लिया। प्रभु का दूत उसके भक्तों के पास डेरा डाल कर उनकी रक्षा करता है।

2. प्रभु के भक्तो ! प्रभु पर श्रद्धा रखो। श्रद्धालु भक्तों को किसी बात की कमी नहीं। शक्तिशाली दरिद्र बन कर भूखे रहते हैं, किन्तु प्रभु की खोज में लगने वालों का घर भरा-पूरा है।

3. हे मेरे पुत्रो ! आओ और मेरी बात सुनो ! मैं तुम्हें प्रभु की श्रद्धा सिखाऊँगा। तुम में से कौन भरपूर जीवन, लम्बी आयु और सुख-शांति चाहता है?

जयघोष

अल्लेलूया ! पिता ने अपनी ही इच्छा से, सत्य की शिक्षा द्वारा, हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बन जायें। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 8:28-34

"क्या आप यहाँ समय से पहले नरकदूतों को सताने आये हैं?"

जब येसु समुद्र के उस पार गदरीनियों के प्रदेश पहुँचे, तो दो अपदूतग्रस्त मनुष्य मकबरों से निकल कर उनके पास आये। वे इतने उग्र थे कि उस रास्ते से कोई भी आ-जा नहीं सकता था। वे चिल्ला कर कहने लगे, "हे ईश्वर के पुत्र ! हम से आप को क्या? क्या आप यहाँ समय से पहले हमें सताने आये हैं?" वहाँ कुछ दूरी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। अपदूत यह कह कर अनुनय-विनय करने लगे, "यदि आप हम को निकाल ही रहे हैं, तो हमें सूअरों के झुण्ड में भेज दीजिए।" येसु ने उन से कहा, "जाओ।" तब अपदूत उन मनुष्यों से निकल कर सूअरों में जा घुसे और सारा झुण्ड तेजी से ढाल पर से समुद्र में कूद पड़ा और पानी में डूब कर मर गया। सूअर चराने वाले भाग गये और जा कर पूरा समाचार और अपदूतग्रस्तों के साथ जो कुछ हुआ, यह सब उन्होंने नगर में सुनाया। इस पर सारा नगर येसु से मिलने निकला और उन्हें देख कर निवेदन करने लगा कि वह उनके प्रदेश से चले जायें।

प्रभु का सुसमाचार।