वर्ष का सोलहवाँ सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 1

पहला पाठ

निर्गमन-ग्रन्थ 20:1-17

ईश्वर मूसा को अपनी आज्ञाएँ देता है।

ईश्वर ने सीनय पर्वत पर मूसा से यह सब कहा, "मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैंने तुम को मिस्त्र देश से, गुलामी के घर से, निकाल लिया है। मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा। "अपने लिए कोई देवमूर्ति मत बनाओ। ऊपर आकाश में, या नीचे पृथ्वीतल पर, या पृथ्वी के नीचे के जल में रहने वाले किसी भी प्राणी अथवा वस्तु का चित्र मत बनाओ। उन मूर्तियों को दण्डवत् करके उनकी पूजा मत करो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर, ऐसी बातें सहन नहीं करता। जो मुझ से बैर करते हैं, मैं तीसरी और चौथी पीढ़ी तक उनकी सन्तति को उनके अपराधों का दंड देता हूँ। जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हूँ। प्रभु, अपने ईश्वर, का नाम व्यर्थ मत लो, क्योंकि जो व्यर्थ ही प्रभु का नाम लेता है, प्रभु उसे अवश्य दण्डित करेगा। विश्राम दिवस को पवित्र मानने का ध्यान रखो। तुम छह दिनों तक परिश्रम करते रहो और अपना सब काम करो; परन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के आदर में विश्राम का दिन है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो, न तुम्हारा पुत्र, न तुम्हारी पुत्री, न तुम्हारा नौकर, न तुम्हारी नौकरानी, न तुम्हारे चौपाये, और न तुम्हारे शहर में रहने वाला परदेशी। छह दिनों में प्रभु ने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में जो कुछ भी है, यह सब बनाया है और सातवें दिन उसने विश्राम किया। इसलिए प्रभु ने विश्राम-दिवस को आशिष दी है और उसे पवित्र ठहराया है। अपने माता-पिता का आदर करो, जिससे तुम बहुत दिनों तक उस देश में जीते रहो, जिसे तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हें प्रदान करेगा। हत्या मत करो। व्यभिचार मत करो। चोरी मत करो। अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो। अपने पड़ोसी के घर-बार का लालच मत करो। न तो अपने पड़ोसी की स्त्री का, न उसके नौकर अथवा नौकरानी का, न उसके बैल अथवा गधे का उसकी किसी भी चीज का लालच मत करो।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 18:8,11

अनुवाक्य : प्रभु ! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है।

1. प्रभु का नियम सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है; वह अज्ञानियों को समझदार बना देती है।

2. प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं। प्रभु की आज्ञाएँ स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं।

3. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं; वे सब के सब न्यायसंगत हैं।

4. वे सोने से अधिक वांछनीय हैं, परिष्कृत सोने से भी अधिक वांछनीय। वे मधु से अधिक मधुर हैं, छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक वांछनीय।

जयघोष

अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन सुन कर सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं। अल्लेलूया !

सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:18-23

"जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "अब तुम लोग बोने वाले का दृष्टान्त सुनो। यदि कोई राज्य का वचन सुनता है लेकिन समझता नहीं, तब जो उसके मन में बोया गया था, उसे शैतान आ कर ले जाता है : यह वह है, जो रास्ते के किनारे बोया गया है। जो पथरीली भूमि में बोया गया है : यह वह है, जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता है; परन्तु उस में जड़ नहीं है और वह थोड़े ही दिन दृढ़ रहता है। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है। जो काँटों में बोया गया है : यह वह है, जो वचन सुनता है; परन्तु संसार की चिन्ता और धन का मोह वचन को दबा देता है और वह फल नहीं लाता। जो अच्छी भूमि में बोया गया है: यह वह है जो वचन सुनता और समझता है और फल लाता है – कोई सौ-गुना, कोई साठ-गुना और कोई तीस-गुना।

प्रभु का सुसमाचार।