वर्ष का सत्रहवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

पहला पाठ

निर्गमन-ग्रन्थ 32:15-24,30-34

"इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बना लिया है।"

मूसा नियम की दोनों पाटियाँ हाथ में लिये पर्वत से उतर कर लौटा। पाटियों पर सामने और पीछे, दोनों ओर लेख अंकित थे। वे पाटियाँ ईश्वर की बनायी हुई थीं और उन पर जो लिपि अंकित थी, वह ईश्वर की अपनी लिपि थी। योशुआ ने लोगों का कोलाहल सुन कर मूसा से कहा, "शिविर में से लड़ाई-जैसी आवाज आ रही है।" उसने उत्तर दिया, "यह न तो विजेताओं का उल्लास है और न पराजितों का विलाप। मैं तो गाने की आवाज सुन रहा हूँ।" शिविर के पास पहुँच कर मूसा ने बछड़े की प्रतिमा और लोगों का नृत्य देखा। उसका क्रोध भड़क उठा और उसने अपने हाथ की पाटियों को पहाड़ के निचले भाग पर पटक कर टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उसने लोगों का बनाया हुआ बछड़ा ले कर जला दिया। उसने उसकी राख पीस कर चूर-चूर कर डाली और उसे पानी में छिड़क कर इस्स्राएलियों को पिला दिया। तब मूसा ने हारून से पूछा, "इन लोगों ने तुम्हारे साथ कौन-सा अन्याय किया, जो तुमने इन्हें घोर पाप में डाल दिया है?" हारून ने उत्तर दिया, "महोदय ! आप क्रोध न करें। आप जानते ही हैं कि इन लोगों का झुकाव पाप की ओर है। इन्होंने मुझ से कहा, 'हमारे लिए एक ऐसा देवता बनाइए, जो हमारे आगे-आगे चले। क्योंकि हम नहीं जानते कि जो मनुष्य हम को मिस्र से निकाल लाया, उस मूसा का क्या हुआ।' तब मैंने इन से कहा, 'जिसके पास सोने के आभूषण हों, वे उन्हें उतार कर ला दें'। उन्होंने मुझे सोना ला दिया। मैंने उसे आग में डाला और इस प्रकार यह बछड़ा बन गया।" दूसरे दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा, "तुम लोगों ने घोर पाप किया है। मैं अब पर्वत पर प्रभु के पास जा रहा हूँ। यदि हो सका, तो मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त करूँगा।" मूसा ने प्रभु के पास आ कर कहा, "हाय ! इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है। ओह ! यदि तू इन्हें क्षमा कर दे ! नहीं तो, मेरा नाम अपनी लिखी हुई पुस्तक से निकाल दे।" प्रभु ने उत्तर दिया, "जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है, उसी को मैं अपनी पुस्तक से निकाल दूँगा। अब तुम जा कर लोगों को उस स्थान ले जाओ, जिसे मैंने तुम्हें बता दिया है। मेरा दूत तुम्हारे आगे-आगे चलेगा। जब दण्ड देने का दिन आयेगा, तब मैं लोगों को उनके पाप का दण्ड दूँगा।"

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 105:19-23

अनुवाक्य : प्रभु की स्तुति करो, क्योंकि वह भला है। (अथवा : अल्लेलूया !)

1. उन्होंने होरेब में एक बछड़ा बनाया, उन्होंने एक प्रतिमा की आराधना की। उन्होंने अपने महिमामय ईश्वर के बदले घास खाने वाले बैल की प्रतिमा की शरण ली।

2. उन्होंने अपने मुक्तिदाता ईश्वर को भुला दिया, जिसने मित्र देश में अपूर्व कार्य किये, हाम देश में महान् चमत्कार दिखाये और उनके शत्रुओं को लाल समुद्र में मारा था।

3. वह उनका सर्वनाश करने की सोच रहा था। किन्तु उसका कृपापात्र मूसा बीच में आया। मूसा ने उनके लिए प्रार्थना की और ईश्वर ने उन पर से अपना क्रोध हटा लिया।

जयघोष

अल्लेलूया ! पिता ने अपनी ही इच्छा से, सत्य की शिक्षा द्वारा, हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बन जायें। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:31-35

"राई का दाना ऐसा पेड़ बनता है कि आकाश के पंछी आ कर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं।"

येसु ने लोगों के सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, "स्वर्ग का राज्य राई के दाने के सदृश है, जिसे एक मनुष्य ने लिया और अपने खेत में बोया। यह तो सब बीजों से छोटा है, परन्तु बढ़ कर सब पौधों से बड़ा हो जाता है और ऐसा पेड़ बनता है कि आकाश के पंछी आ कर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं।" येसु ने उन्हें एक और दृष्टान्त सुनाया, "स्वर्ग का राज्य उस खमीर के सदृश है, जिसे एक स्त्री ने ले कर तीन पसेरी आटे में मिला दिया और सारा आटा खमीरा हो गया।" येसु दृष्टान्तों में ही ये सब बातें लोगों को समझाते थे। बिना दृष्टान्त के वह उन से कुछ नहीं कहते थे, जिससे नबी का यह कथन पूरा हो जाये - मैं दृष्टान्तों में बोलूँगा। पृथ्वी के आरम्भ से जो गुप्त रहा, उसे मैं प्रकट करूँगा।

प्रभु का सुसमाचार।