प्रभु ने मूसा से कहा, "प्रभु के पुण्य पर्व, जिन्हें समारोह के साथ निश्चित समय पर मनाना चाहिए, इस प्रकार हैं। "पहले महीने के चौदहवें दिन, सन्ध्या समय प्रभु के आदर में पास्का है और उस महीने के पंद्रहवें दिन प्रभु के आदर में बेख़मीर रोटियों का पर्व है। तुम सात दिन बेख़मीर रोटियाँ खाओगे। पहले दिन तुम लोगों के लिए एक धार्मिक समारोह का आयोजन किया जायेगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। तुम सात दिन प्रभु को नैवेद्य चढ़ाओगे। सातवें दिन तक धार्मिक समारोह का आयोजन किया जायेगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।" प्रभु ने मूसा से कहा, "इस्राएलियों से यह कहो। जब तुम उस देश में पहुँच जाओगे, जिसे मैं तुम्हें देने जा रहा हूँ, और तुम वहाँ फ़सल काटोगे, तो तुम अपनी फ़सल का पहला पूला पुरोहित के पास ले आओगे। वह विश्राम-दिवस के दूसरे दिन उसे प्रभु के सामने प्रस्तुत करेगा, जिससे तुम्हें ईश्वर की कृपादृष्टि प्राप्त हो जाये।" "विश्राम-दिवस के दूसरे दिन, जब तुम चढ़ावे का पूला लाते हो, उस दिन से तुम पूरे सात सप्ताह गिनोगे। सातवें सप्ताह के दूसरे दिन, अर्थात् पचासवें दिन तुम प्रभु को नये अनाज का नैवेद्य चढ़ाओगे।" "सातवें महीने का दसवाँ दिन प्रायश्चित्त-दिवस है। उस दिन तुम लोगों के लिए धार्मिक समारोह का आयोजन किया जायेगा। तुम उपवास करोगे और प्रभु को नैवेद्य चढ़ाओगे। उसी सातवें महीने के पंद्रहवें दिन प्रभु के आदर में शिविर-पर्व प्रारंभ होगा। वह सात दिन तक मनाया जायेगा। उसके प्रथम दिन धार्मिक समारोह का आयोजन किया जायेगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे। तुम सात दिन प्रभु को नैवेद्य चढ़ाओगे। आठवें दिन तुम लोगों के लिए धार्मिक समारोह का आयोजन किया जायेगा और तुम प्रभु को नैवेद्य चढ़ाओगे। उस दिन समापन समारोह होगा और तुम किसी प्रकार का काम नहीं करोगे।" "ये प्रभु के पर्व हैं, जिन में धार्मिक समारोह का आयोजन करोगे और प्रत्येक की विधि के अनुसार प्रभु को नैवेद्य, होम, बलिदान और तर्पण चढ़ाओगे।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हमारे शक्तिशाली ईश्वर का जयकार करो।
1. नया गीत गाओ, डफली बजाओ, सुरीली वीणा तथा तानपूरा सुनाओ। पूर्णिमा के दिन, हमारे उत्सव के दिन, नये मास की तुरही बजाओ।
2. यह तो इस्राएल का विधान है, याकूब के ईश्वर का आदेश है। जब वह मिस्र के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ, तो उसने योसेफ के लिए यह नियम बनाया।
3. तुम लोगों के बीच कोई पराया देवता न हो, तुम किसी पराये देवता की आराधना मत करो। मैं ही तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ, मैं ही तुम्हें मिस्र से निकाल लाया।
अल्लेलूया ! प्रभु का वचन सदा ही बना रहता है, उस वचन का सुसमाचार आप लोगों को मिल गया है। अल्लेलूया !
येसु अपने नगर आये और लोगों को उनके सभागृह में शिक्षा देने लगे। वे अचंभे में पड़ कर कहने लगे, "इसे यह ज्ञान और यह सामर्थ्य कहाँ से मिला? क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या मरियम इसकी माँ नहीं? क्या याकूब, योसेफ, सिमोन और यूदस इसके भाई नहीं? क्या इसकी सब बहनें हमारे ही बीच नहीं रहतीं? तो यह सब इसे कहाँ से मिला?" और वे येसु में विश्वास नहीं कर सके। येसु ने उन से कहा, "अपने नगर और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।" लोगों के अविश्वास के कारण उन्होंने वहाँ बहुत कम चमत्कार दिखाये।
प्रभु का सुसमाचार।
प्रभु येसु जब अपने ही गाँव में जाकर सभागृह में प्रवचन देते हैं, जीवन के रहस्यों को समझाते हैं, तो लोग बड़े आश्चर्य चकित हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि इसे ये सब ज्ञान कहाँ से मिला? फिर वे उनकी मानवीय जड़ों की ओर इंगित करते हैं। प्रभु येसु की बातों में आख़िर ऐसा क्या था कि लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया? लोगों ने अनुभव किया था कि प्रभु येसु अधिकार के साथ बोलते थे, अर्थात कोई भी उनकी सत्यता पर संदेह नहीं कर सकता था। प्रभु येसु सबसे अलग शिक्षा देते थे, जो उस समय के धर्मगुरु नहीं दे पाते थे। यानी कि भले ही सारी दुनिया उल्टी दिशा में जा रही हो लेकिन एक सच्चा ईसाई, प्रभु येसु का सच्चा शिष्य सही रास्ते पर ही चलता है, फिर चाहे वह रास्ता कितना ही कठिन या दुर्गम क्यों न हो। ऐसा ही एक उदाहरण हम संत अल्फ़ोनसुस के रूप में पाते हैं, जिनका स्मृति दिवस आज हम मनाते हैं। जब दुनिया नैतिकता को भूलकर अंधेरे के रास्ते की ओर जा रही थी तब उन्होंने दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाया, प्रभु की शिक्षाओं के महत्व को समझाया।उनकी लिखी नैतिक और आध्यात्मिक रचनाएँ आज भी दुनिया के लिए ज्वलंत उदाहरण हैं।
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)When Jesus went to His own village and gave sermons in the synagogue, explaining the mysteries of life, people were astonished. They wondered, "Where did He get all this knowledge from?" Then they pointed toward His human roots. What was it about Jesus’ words that compelled people to think so deeply? People experienced that He spoke with authority — meaning that no one could doubt the truth of His words. Lord Jesus taught in a way that was completely different from the religious leaders of that time. In other words, even if the whole world is going in the wrong direction, a true Christian — a true disciple of Jesus — walks only on the right path, no matter how difficult or challenging it may be. We see such an example in Saint Alphonsus, whose memorial we celebrate today. At a time when the world was forgetting morality and heading down a dark path, he taught the world about ethics and explained the importance of the Lord’s teachings. His writings on morality and spirituality remain a burning example for the world even today.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘फैमिलियरिटी ब्रीडस् कन्टेम्ट’ जिसका अर्थ होता है कि यदि हम किसी व्यक्ति या स्थिति को अच्छी तरह से जानते हैं, तो हम आसानी से उस व्यक्ति के प्रति सम्मान खो सकते हैं या उस स्थिति में लापरवाह हो सकते हैं। यही प्रभु येसु के साथ हुआ; जो उनके साथ रहते थे, उनके साथ समय बिताये थे वे येसु को केवल बढ़ाई के रूप में ही देख रहे थे परंतु उनकी ऑंखे येसु में प्रभुत्व को नहीं पहचान पायी। इसलिए हम सभी को पूर्वधारणा से बचना चाहिए क्योंकि यह हमें हमारे ही साथ रहने वाले व्यक्ति के जीवन में अच्छाईयॉं को देखने नहीं देती। जॉन मेरी वियानि को सब एक कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति के रूप में समझते थे परंतु उन्होंने अपने पवित्र जीवन द्वार आर्स के पल्ली का नवीनिकरण कर दिया। जिस प्रकार प्रभु बाहरी रंग रूप नहीं देखता परंतु मनुष्य के हृदय को देखता है और उन्हें आर्शीवाद देता है। हमें भी भले ही हम किसी भी क्षेत्र से हो, कोई सा भी वेश-भूषा पहनते हो प्रभु हमारे हृदय को देखकर हमें आशीष देता है। संत जॉन मेरी वियानि का जीवन और मध्यस्ता द्वारा हम सबके जीवन में आशीष आये।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाThere is a saying in English 'Familiarity breeds contempt' which means that if we know a person or situation well enough, we can easily lose respect for that person or become careless in that situation. This is what happened with Lord Jesus; those who lived with him, spent time with him, saw Jesus only as a carpenter but their eyes could not recognize the divinity in Jesus. That's why we all should avoid prejudices because it does not allow us to see the good in the life of the person living with us. John MaryVianney was regarded by all as a weak-minded person but he renewed the parish of Ars by his pious life. Just as Lord does not see the external appearance but sees the heart of a person and blesses him/her; No matter what region we are from, whatever dress we wear, GOD blesses us by looking at our heart. May the life and intercession of Saint John Mary Vianney bless us all.
✍ -Fr. Dennis Tigga
हर व्यक्ति में अच्छाईयां और बुराइयाँ दोनों होती हैं. लोग उसी अच्छाई या बुराई को देखते और समझते हैं. लेकिन कभी-कभी लोगों के हृदय पर कुछ ऐसा पर्दा पड़ जाता है कि वे एक अच्छे इन्सान में भी सिर्फ बुराइयाँ खोजते हैं, और अच्छाई को भूल जाते हैं. आज के सुसमाचार में जब प्रभु येसु अपने गृह नगर आते हैं, तो लोग उनकी बातें सुनकर और उनके महान चमत्कारों के बारे में सुनकर चकित हो जाते हैं और उनके बारे में अजीब बातें करने लगते हैं. वे उनके भाई-बहनों, माता-पिता आदि के बारे में बातें करते हैं और इस बात पर यकीन नहीं कर पाते कि उनके बीच में रहा, पला-बढ़ा यह व्यक्ति ईश्वर का पुत्र भी हो सकता है. वे प्रभु येसु की ईश्वरता को नहीं पहचान पाते.
हम जानते हैं कि प्रभु येसु पूर्ण रूप से मनुष्य और पूर्ण रूप से ईश्वर हैं. पूर्ण रूप से मनुष्य होने का अर्थ है कि जो भी एक मनुष्य के अनुभव के रूप में उन्हें अनुभव करना था वह सब उन्होंने अनुभव किया. वे साधारण मानव माता-पिता के अधीन रहे, उनसे सीखा और दुःख-दर्द को महसूस किया. वहीँ दूसरी ओर वह पूर्ण रूप से ईश्वर भी थे, मानव जाति के दुःख-दर्द को दूर करने का प्रयास किया, विभिन्न प्रकार के चिन्ह और चमत्कारों द्वारा अपने ईश्वर होने का प्रमाण दिया. उनके गृह नगर के लोगों की यह कमी थी कि वे प्रभु येसु की मनुष्यता से बढ़कर उनकी ईश्वरता को नहीं पहचान पाए. कभी-कभी हम भी अपने आस-पास लोगों में ईश्वर के निवास को नज़रन्दाज़ कर उनकी कमियों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं. हम दूसरों के अन्दर ईश्वर के दर्शन करने की कृपा माँगें. आमेन.
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)Every person has good things and also some short comings within themselves. People observe this goodness or weaknesses. But sometimes some people become so much veiled by their prejudiced mind set that they see only one aspect of a person’s life and ignore the other. When Jesus comes to his home town, people are surprised at the words and wisdom of Jesus, they had heard about the mighty works and miracles of Jesus, but still they talk strangely about Jesus. They talk about his parents, his brothers and sisters and are unable to accept and believe that this boy who grew amidst them and lived with them, could be the Son of God. They could not recognise the divinity of Jesus.
Our faith teaches us, that Jesus is fully human and fully God. To be fully human means, he experienced the joys and sorrows of human life. As a human he lived and obeyed human parents, he learnt the scriptures and underwent the pain and happiness like any ordinary human being. On the other hand, as God, he healed people, cast away the demons, changed the lives of people with his teachings and mighty works that proved him to be God. The people of his home town lacked the ability to see beyond the humanity of Jesus. They could not see God in Jesus. We have people around us in whom we look for shortcomings and weaknesses than to see the face of God in them. May God bless us with the grace to recognise the dwelling of divine within all. Amen.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)