वर्ष का सत्रहवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

पहला पाठ

लेवी-ग्रन्थ 25:1,8-17

"जयन्ती वर्ष में प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फिर प्राप्त करेगा।"

प्रभु ने सीनय पर्वत पर मूसा से यह कहा, "वर्षों के सात सप्ताह, अर्थात् सात बार सात वर्ष, तद्नुसार उनचास वर्ष बीत जाने पर तुम सातवें महीने के दसवें दिन, प्रायश्चित्त के दिन, देश भर में तुरही बजवाओगे। यह पचासवाँ वर्ष तुम लोगों के लिए एक पुण्य वर्ष होगा और तुम देश में यह घोषित करोगे कि सभी निवासी अपने दासों को मुक्त कर दें। यह तुम्हारे लिए जयन्ती वर्ष होगा – प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फिर प्राप्त करेगा और प्रत्येक अपने कुटुम्ब में लौटेगा। पचासवाँ वर्ष तुम्हारे लिए जयन्ती वर्ष होगा – उस में तुम न तो बीज बोओगे, न पिछली फसल काटोगे और न अनछँटी दाखलताओं के अंगूर तोड़ोगे, क्योंकि यह जयन्ती वर्ष है। तुम उसे पवित्र मानोगे और खेत में अपने आप उगी हुई उपज खाओगे।" "उस जयन्ती वर्ष में प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फिर प्राप्त करेगा। जब तुम किसी देशभाई के हाथ कोई जमीन बेचते हो अथवा उस से खरीद लेते हो, तो तुम एक दूसरे के साथ बेईमानी मत करो। जब तुम किसी देशभाई से कोई जमीन खरीदते हो, तो उसका ध्यान रखो कि पिछले जयन्ती वर्ष के बाद कितने बरस बीत गये हैं और बाकी फसलों की संख्या के अनुसार बेचने वाले को विक्रय-मूल्य निर्धारित करना चाहिए। जब अधिक बरस बाकी हों, तो मूल्य अधिक होगा और यदि कम बरस बाकी हों, तो मूल्य कम होगा; क्योंकि वह तुम्हें फसलों की एक निश्चित संख्या बेचता है। तुम अपने देशभाई के साथ बेईमानी मत करो, बल्कि अपने ईश्वर पर श्रद्धा रखो, क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ।"

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 66:2-3,5,7-8

अनुवाक्य : हे ईश्वर ! राष्ट्र तेरी स्तुति करें, सभी राष्ट्र तेरी स्तुति करें।

1 हे ईश्वर। हम पर दया कर और हमें आशिष दे, हम पर प्रसन्न हो कर दयादृष्टि कर। पृथ्वी के निवासी तेरा मार्ग समझ लें, सभी राष्ट्र तेरा मुक्ति-विधान जान जायें।

2. सभी राष्ट्र उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि तू न्यायपूर्वक संसार का शासन करता है। तू निष्पक्ष हो कर पृथ्वी के देशों का शासन करता और सभी राष्ट्रों का संचालन करता है।

3. पृथ्वी ने फल उत्पन्न किया है, क्योंकि हमारे ईश्वर ने हमें आशीर्वाद दिया है। ईश्वर हमें आशीर्वाद प्रदान करता रहे और समस्त पृथ्वी उस पर श्रद्धा रखे।

जयघोष

अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं- स्वर्गराज्य उन्हीं का है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 14:1-12

"हेरोद ने प्यादों को भेज कर योहन का सिर कटवाया। योहन के शिष्यों ने येसु को इसकी सूचना दी।"

उस समय राजा हेरोद येसु की चरचा सुनने लगा और उसने अपने दरबारियों से कहा, "यह योहन बपतिस्ता है। वह जी उठा है, इसलिए वह ये महान् चमत्कार दिखा रहा है।" हेरोद ने अपने भाई फिलिप की पत्नी हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्तार किया और बाँध कर बंदीगृह में डाल दिया था; क्योंकि योहन ने उस से कहा था, "उसे रखना आपके लिए उचित नहीं है।" हेरोद योहन को मार डालना चाहता था, किन्तु वह जनता से डरता था; क्योंकि वह योहन को नबी मानती थी। हेरोद के जन्म-दिवस के अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अतिथियों के सामने नृत्य किया और हेरोद को इतना मुग्ध कर लिया कि उसने शपथ खा कर वचन दिया, "जो भी माँगो मैं तुम्हें दे दूँगा।" उसकी माँ ने उसे पहले से सिखा दिया था। इसलिए वह बोली, "मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दीजिए।" हेरोद को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण उसने आदेश दिया कि उसे सिर दे दिया जाये और प्यादों को भेज कर उसने बंदीगृह में योहन का सिर कटवा दिया। उसका सिर थाली में लाया गया और लड़की को दिया गया और वह उसे अपनी माँ के पास ले गयी। योहन के शिष्य आ कर उसका शव ले गये। उन्होंने उसे दफ़नाया और जा कर येसु को इसकी सूचना दी।

प्रभु का सुसमाचार।