इस्राएलियों ने यह कहा, "कौन हमें खाने के लिए मांस देगा? हाय ! हमें याद आता है कि हम मिस्त्र में मुफ़्त में मछली खाते थे, साथ ही खीरा, तरबूज, गन्दना, प्याज और लहसुन। अब तो हम भूखों मर रहे हैं हमें कुछ भी नहीं मिलता। मन्ना के सिवाय हमें और कुछ दिखाई नहीं देता।" मन्ना धनिया के बीज जैसा था। उसका रूप-रंग गुग्गुल के सदृश था। लोग उसे बटोरने जाते थे, चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे और बर्तनों में उबाल कर उसकी रोटियाँ पकाते थे। उसका स्वाद तेल में तली हुई पूरी जैसा था। जब रात को ओस शिविर पर उतरती थी, तो मन्ना भी गिरता था। मूसा ने लोगों को, हर परिवार को अपने-अपने तम्बू के द्वार पर, विलाप करते सुना। प्रभु का क्रोध भड़क उठा। मूसा को यह बहुत बुरा लगा और उसने प्रभु से यह कहा : "तू अपने दास को इतना दुःख क्यों दे रहा है? तू मुझ पर इतना अप्रसन्न क्यों है कि तूने इस प्रजा का पूरा भार मुझ पर ही डाल दिया है? क्या मैंने इसे उत्पन्न किया है, जो तू मुझ से कहता है जिस तरह दाई दूध-पीते बच्चे को सँभालती है, तुम इसे गोद में उठा कर उस देश ले जाओ, जिसे मैंने इसके पूर्वजों को देने की शपथ खायी है? मैं इन सब लोगों के लिए कहाँ से मांस ले आऊँगा। वे विलाप करते हुए मुझ से कहते हैं, हमें खाने के लिए मांस दीजिए। मैं अकेले ही इस प्रजा को नहीं सँभाल सकता, मैं यह भार उठाने में असमर्थ हूँ। यदि मेरे साथ तेरा यही व्यवहार हो, तो यह अच्छा होता कि तू मुझे मार डालता। यह संकट मुझ से दूर करने की कृपा कर।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हमारे शक्तिशाली ईश्वरं का जयकार करो।
2. ओह ! यदि मेरी प्रजा मेरी बात सुनती, यदि इस्राएल मेरे पथ पर चलता, तो मैं तुरन्त ही उसके शत्रुओं को हराता और उसके अत्याचारियों का दमन करता।
3. तब ईश्वर के शत्रु उसके अधीन रहते और सदा के लिए समाप्त हो जाते; जब कि मैं इस्राएल को उत्तम गेहूँ खिलाता और उसे चट्टान के मधु से तृप्त करता।
अल्लेलूया ! मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है। अल्लेलूया !
येसु योहन बपतिस्ता की मृत्यु का समाचार सुन कर वहाँ से हट गये और नाव पर चढ़ कर एक निर्जन स्थान की ओर चल दिये। जब लोगों को इसका पता चला, तो वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उनकी खोज में चल पड़े। नाव से उतर कर येसु ने एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया और उन्होंने उनके रोगियों को अच्छा किया। संध्या होने पर शिष्य उनके पास आ कर कहने लगे, "यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे गाँवों में जा कर अपने लिए खाना, खरीद लें।" येसु ने उत्तर दिया, "उन्हें चले जाने की जरूरत नहीं है। तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो।" इस पर शिष्यों ने कहा, "पाँच रोटियों और दो मछलियों के सिवा यहाँ हमारे पास कुछ नहीं है।" येसु ने कहा, "उन्हें यहाँ मेरे पास ले आओ।" येसु ने लोगों को घास पर बैठा देने का आदेश दे कर वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले लीं। उन्होंने स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और रोटियों को तोड़-तोड़ कर शिष्यों को दिया और शिष्यों ने लोगों को। सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये। भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त लगभग पाँच हजार पुरुष थे।
प्रभु का सुसमाचार।