प्रभु ने मूसा से कहा, "जो कनान देश मैं इस्राएलियों को देने जा रहा हूँ, उसकी टोह लगाने के लिए आदमियों को हर एक वंश में से एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को।" चालीस दिन के बाद वे उस देश की टोह लगा कर लौटे। वे पारान की मरुभूमि के कादेश नामक स्थान पर मूसा, हारून और इस्स्राएल के सारे समुदाय के पास आये। उन्होंने उनके और सारे समुदाय के सामने अपना विवरण प्रस्तुत किया और उन्हें उस देश के फल दिखाये। उन्होंने मूसा से कहा, "हम उस देश गये, जहाँ आपने हमें भेजा था। वहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। ये रहे वहाँ के फल ! वहाँ के निवासी बलवान् हैं। उनके नगर सुरक्षित और बहुत बड़े हैं। हमने वहाँ अनाक के वंशजों को भी देखा है। नेगेब प्रदेश में अमालेकी रहते हैं; पर्वतीय प्रदेश में हित्ती, यबूसी और अमोरी; समुद्र के किनारे और यर्दन नदी के तट पर कनानी निवास करते हैं।" कालेब ने मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने वाले लोगों को शांत किया और कहा, "हम वहाँ चलें और उस देश को अपने अधिकार में कर लें। हम उसे जीतने के समर्थ हैं।" किन्तु जो व्यक्ति कालेब के साथ गये थे, वे बोले, "हम उन लोगों का सामना नहीं कर सकते, क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।" वे जिस देश की टोह लगा चुके थे, उसकी निन्दा करने लगे और बोले, "हम जिस देश की टोह लगा चुके हैं, वह एक ऐसा देश है जो अपने निवासियों को खा जाता है। जिन लोगों को हमने वहाँ देखा है, वे सब बहुत लम्बे कद के हैं। हमने वहाँ भीमकाय लोगों को भी देखा - अनाकी भीमकाय लोगों के वंशज हैं - उनकी तुलना में हम अपने को टिड्डियाँ समझते थे और वे भी हमें यही समझते होंगे।" सारा समुदाय ये बातें सुन कर जोर से चिल्लाने लगा और रात भर विलाप करता रहा। प्रभु ने मूसा और हारून से यह कहा, "मैं कब तक दुष्ट समुदाय की शिकायतें सहन करता रहूँ। मैं इस्राएलियों से अपनी शिकायतें सुन चुका हूँ। उन्हें यह बता दो - प्रभु कहता है, अपने अस्तित्व की शपथ ! मैंने तुम लोगों को जो बातें कहते सुना है, उन्हीं के अनुसार मैं तुम्हारे साथ व्यवहार करूँगा। यहाँ इस मरुभूमि में तुम्हारे शव पड़े रहेंगे, क्योंकि तुम लोगों ने मेरी शिकायत की है। जितने लोगों के नाम जनगणना के समय लिखे गये थे और जिनकी उमर बीस से ऊपर है, उन में से एक भी उस देश में प्रवेश नहीं करेगा, जहाँ मैंने हाथ उठा कर तुम्हें बसाने की शपथ की है। यफुन्न का पुत्र कालेब और नून का पुत्र योशुआ इसके एकमात्र अपवाद हैं।" "तुम लोगों ने चालीस दिन तक उस देश का निरीक्षण किया। उनका हर दिन एक बरस गिना जायेगा। इसके अनुसार तुम्हें चालीस बरस तक अपने अपराधों का फल भुगतना पड़ेगा और तुम जान जाओगे कि मेरा विरोध करने का फल क्या होता है। मैं, प्रभु, यह कह चुका हूँ। इस दुष्ट समुदाय ने मेरा विरोध किया है। मैं इसके साथ यही व्यवहार करूँगा। यह इस मरुभूमि में समाप्त हो जायेगा। ये लोग सब के सब यहाँ मर जायेंगे।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू अपनी प्रजा को प्यार करता है। हम को भी याद कर। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. हमने अपने पूर्वजों की तरह पाप किया, हम भटक गये, हम पापी हैं। हमारे पूर्वजों ने मिस्र में रहते समय तेरे अपूर्व कार्यों पर ध्यान नहीं दिया।
2. वे शीघ्र ही उसके कार्य भूल गये और उसकी इच्छा की उपेक्षा करने लगे। वे मरुभूमि में अपनी वासनाओं के शिकार बने। उन्होंने उजाड़ प्रदेश में ईश्वर की परीक्षा ली।
3. उन्होंने अपने उस मुक्तिदाता ईश्वर को भुला दिया, जिसने मिस्त्र देश में अपूर्व कार्य किये, हाम देश में महान् चमत्कार दिखाये और उनके शत्रुओं को लाल समुद्र में मारा था।
4. वह उनका सर्वनाश करने की सोच रहा था, किन्तु उसका कृपापात्र मूसा बीच में आया। मूसा ने उनके लिए प्रार्थना की और ईश्वर ने उन पर से अपना क्रोध हटा लिया।
अल्लेलूया ! हमारे बीच महान् नबी उत्पन्न हुए हैं और ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है। अल्लेलूया !
येसु ने वहाँ से विदा हो कर तीरुस और सिदोन प्रान्तों के लिए प्रस्थान किया। उस प्रदेश की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहने लगी, "हे प्रभु! दाऊद के पुत्र ! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।" येसु ने उन्हें उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उन से यह निवेदन किया, "उसकी बात मान कर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है।" येसु ने उत्तर दिया, "मैं केवल इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।" इतने में उस स्त्री ने आ कर येसु को दण्डवत् किया और कहा, "प्रभु ! मेरी सहायता कीजिए।" येसु ने उत्तर दिया, "बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।" उसने कहा, "जी हाँ, प्रभु ! फिर भी स्वामी की मेज से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं।" इस पर येसु ने उत्तर दिया, "हे नारी ! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।" और उसी क्षण उसकी बेटी अच्छी हो गयी।
प्रभु का सुसमाचार।