मूसा मोआब के मैदान से नेबो पर्वत और पिसगा की चोटी पर चढ़ा। यह येरिखो के सामने है। प्रभु ने उसे समस्त देश दिखाया – दान तक गिलद को, सारे नफ्ताली, एफ्रईम और मनस्से के प्रदेश को, पश्चिमी समुद्र तक समस्त यूदा प्रदेश को, नेगेब और यर्दन की घाटी, तथा सोअर तक खजूरों के नगर येरिखो के मैदान को। इसके बाद प्रभु ने उस से कहा, "यही वह देश है जिसके विषय में मैंने शपथ खा कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब से कहा- मैं उसे तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूँगा। मैंने इसे तुम को दिखाया और तुमने इसे अपनी आँखों से देखा, किन्तु तुम इस में प्रवेश नहीं करोगे।" प्रभु का सेवक मूसा वहाँ मोआब में मर गया, जैसा कि प्रभु ने कहा था। लोगों ने उसे बेत-पओर के सामने मोआब की घाटी में दफ़नाया, किन्तु अब कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहाँ है। मूसा का देहान्त एक सौ बीस बरस की उमर में हुआ था। उसकी आँखों की ज्योति धुँधलायी नहीं थी और न ही उसकी तेजस्विता घटी थी। इस्राएलियों ने मोआब के मैदान में तीस दिन तक मूसा के लिए विलाप किया। इसके बाद मूसा के लिए शोक का समय समाप्त हुआ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य है ईश्वर ! वही हमें जीवन प्रदान करता है।
1. समस्त पृथ्वी ईश्वर को धन्य कहे, उसके महिमामय नाम का गीत गाये और उसकी महिमा का स्तुतिगान करे। वह ईश्वर से यह कहे, “तेरे कार्य अपूर्व हैं।”
2. आओ, ईश्वर के कार्यों का ध्यान करो – उसने पृथ्वी पर अपूर्व कार्य किये हैं! हे राष्ट्रो ! हमारे ईश्वर को धन्य कहो और उसकी प्रशंसा में गीत सुनाओ।
3. हे प्रभु-भक्तो ! आओ और सुनो, मैं तुम्हें बताऊँगा कि उसने मेरे लिए क्या-क्या किया है। मैंने उसे ऊँचे स्वर से पुकारा और उसकी प्रशंसा में गीत सुनाया।
अल्लेलूया ! ईश्वर ने मसीह के द्वारा अपने से संसार का मेल कराया और उस मेल-मिलाप का सेवा-कार्य हमें सौंपा है। अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो जा कर उसे अकेले में समझाओ। यदि वह तुम्हारी बात मान जाता है, तो तुमने अपने भाई को बचा लिया। यदि वह तुम्हारी बात नहीं मानता, तो और दो-एक व्यक्तियों को साथ ले जाओ ताकि दो या तीन गवाहों के सहारे सब कुछ प्रमाणित हो जाये। यदि वह उनकी भी नहीं सुनता, तो कलीसिया को बता दो और यदि वह कलीसिया की भी नहीं सुनता, तो उसे गैरयहूदी और नाकेदार जैसा समझो।" "मैं तुम से कहे देता हूँ तुम लोग पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी। "मैं तुम से यह भी कहे देता हूँ- यदि पृथ्वी पर तुम लोगों में से दो व्यक्ति एकमत हो कर कुछ भी माँगेंगे, तो वह उन्हें मेरे स्वर्गिक पिता की ओर से निश्चय ही मिलेगा; क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।"
प्रभु का सुसमाचार।
अक्सर हम विश्वासी सामूहिक प्रार्थना में भाग लेते है। चाहे वह मिस्सा बलिदान हो, रोजरी प्रार्थना हो, एस. सी. सी., बी. सी. सी. प्रार्थना हो, आराधना हो या पारिवारिक प्रार्थना हो। प्रभु येसु इन सामूहिक प्रार्थना के विषय में बताते हैं कि, ‘‘तुम लोगों में दो व्यक्ति एकमत हो कर कुछ भी मॉंगोगे, तो वह उन्हे मेरे स्वर्गिक पिता की और से निश्चय ही मिलेगा’’ सामूहिक प्रार्थना में शक्ति होती है और जहॉं कही सामूहिक प्रार्थना होती है वहॉं पर सभी को एकमत होकर प्रार्थना करनी चाहिए। एकमत होने का तात्पर्य है कि जिस उद्देश्य या जिस मतलब के लिए प्रार्थना किया जा रहा है सभी उसी उद्देश्य या मतलब को ध्यान में रखतेे हुए प्रार्थना करना। एक मन और एक ह्दय से की गई प्रार्थना ईश्वर जरूर सुनता है और वहॉं पर पवित्र आत्मा कार्य करता है, जिस प्रकार अटारी में मॉं मरियम और शिष्यगण एक मन और एक ह्दय होकर प्रार्थना कर रहें थे तब उन पर पवित्र आत्मा उतरता है और उनके जीवन को एक नये दिशा में ले चलता है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाOften we believers participate in community prayers, may it be sacrificial Mass, Rosary prayer, S.C.C., B.C.C. prayer, adorations or family prayer. Lord Jesus tells about these community prayers that, “If two of you agree on Earth about anything you ask it will be done for you by my Father in heaven” There is power in collective prayer and whereever there is prayer, everyone should pray being united with one accord. Being united with one accord means for the purpose or intention for which the prayers are offered, all should pray by keeping in their mind that particular purpose and intention. Prayer done with one mind and one heart is definitely heard by God and Holy Spirit works at that place, just as Mother Mary and the disciples were praying with one mind and one heart in the upper room, then the Holy Spirit descended on them and tookd their lives in a new direction.
✍ -Fr. Dennis Tigga
कभी-कभी हम सोचते और बोलते भी हैं कि ईश्वर को हमारी बेहतर देखभाल करनी चाहिए। आज हम पेत्रुस को वैसी ही शिकायत करते हुए पाते हैं और उसके जवाब में येसु की ओर से एक कोमल प्रतिक्रिया हमें सुनने को मिलती है । भजन सहिंता में कई भजन शिकायतों से भरे हुए हैं; अय्यूब के ग्रन्थ में भी हम ऐसा ही पाते हैं। क्या मैं अपने दिल को ईश्वर के सामने रखने से रोकता हूँ, या क्या मैं पेत्रुस की तरह बेझिझक शिकायत करता हूँ?
मुझे सौ गुना दिए जाने का वादा किया गया है। क्या मैं कभी भी ईश्वर की महान उदारता को भांप सकता हूँ ? जब मैं उसके उपकारों को मेरे जीवन में समझने लगता हूँ तो एक गहरी कृतज्ञता से भर जाता हूँ और यह जानने के लिए अनुग्रह मांगता हूं कि मेरी कृतज्ञता को विश्वास में कैसे बदला जाए।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतSometimes I find myself thinking that God should take better care of me. Today I hear Peter making the same complaint, and receiving a gentle response from Jesus. The Psalms are full of complaints, so is most of the book of Job. Do I stop myself from baring my heart to God, or do I, like Peter, feel free to complain?
I am promised a hundredfold. Can I ever surpass God in his generosity? I spend some time getting in touch with the deep gratitude I feel for all I have received from God, and ask for the grace to know how to transform my gratitude into trust.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya