प्रभु ने योशुआ से यह कहा, "मैं आज से इस बात का ध्यान रखूँगा कि सभी इस्राएली तुम्हारा महत्त्व समझें और यह जान जायें कि जिस तरह मैं मूसा के साथ रहा, उसी तरह तुम्हारे साथ भी रहूँगा। तुम विधान की मंजूषा ढोने वाले पुरोहितों को यह आदेश दोगे, 'जब तुम लोग यर्दन नदी के तट पर पहुँचो, तो नदी में ही खड़े हो जाओ'।" इसके बाद योशुआ ने इस्राएलियों से कहा, "यहाँ आओ और अपने प्रभु-ईश्वर का आदेश सुनो।" योशुआ ने कहा, “अब तुम जान जाओगे कि जीवन्त ईश्वर तुम्हारे बीच है और तुम लोगों के सामने से कनानियों को निश्चय ही भगा देगा। समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा तुम लोगों से पहले यर्दन पार करेगी। बारह व्यक्तियों को चुन लो, हर एक वंश में से एक व्यक्ति को। ज्योंही समस्त पृथ्वी के प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले पुरोहित यर्दन नदी के पानी में पैर रखेंगे, त्योंही ऊपर से बहने वाला पानी थम जायेंगा और ठोस पुंज जैसा हो जायेगा।" जब हस्स्राएली अपने तम्बू उखाड़ कर यर्दन को पार करने निकले, तो विधान की मंजूषा ढोने वाले पुरोहित उनके आगे-आगे चले। ज्योंही मंजूषा ढोने वाले पुरोहितों ने यर्दन के पास जा कर पानी में पैर रखा - कटनी के समय यर्दन का पानी उमड़ कर तट पर फैल जाता है - त्योंही ऊपर से बहने वाला पानी थम गया और सारतान के पुंज जैसा बन गया। अराबा के समुद्र अर्थात् लवण-समुद्र की ओर उतरने वाला पानी बह निकला और इस प्रकार इस्राएली येरिखो के सामने पार उतरे। जब इस्राएली सूखे पाँव उस पार जा रहे थे, तो प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले पुरोहित यर्दन के बीच के सूखे तल पर तब तक खड़े रहे, जब तक सभी लोग यर्दन के उस पार नहीं पहुँचे।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : अल्लेलूया !
1. जब इस्राएली मिस्र से निकल आये, जब याकूब के वंशज उस विद्रोही राष्ट्र से भागे, तो यूदा प्रभु का मंदिर बन गया और इस्राएल उसकी अपनी प्रजा।
2. समुद्र यह देख कर भाग गया, यर्दन नदी उलटी दिशा में बहने लगी, पर्वत मेढ़ों की तरह और पहाड़ियाँ मेमनों की तरह उछलने लगीं।
3. समुद्र ! तू क्यों भाग गया ! यर्दन ! तू उलटी दिशा में क्यों बहने लगी? पर्वतो ! तुम मेढ़ों की तरह, पहाड़ियो ! तुम मेमनों की तरह क्यों उछलने लगीं?
अल्लेलूया ! हे प्रभु ! अपने सेवक पर दयादृष्टि कर और मुझे अपनी संहिता सिखा। अल्लेलूया !
तब पेत्रुस ने पास आ कर येसु से कहा, "प्रभु ! यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? सात बार तक?" येसु ने उत्तर दिया, "मैं तुम से नहीं कहता - सात बार तक, बल्कि सत्तर-गुना सात बार तक।" "यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था। जब वह लेखा लेने लगा, तो उसका लाखों रुपये का एक कर्जदार उसके सामने पेश किया गया। अदा करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाये और ऋण अदा कर लिया जाये। इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को सब चुका दूँगा'। उस सेवक के स्वामी को तरस हो आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज माफ़ कर दिया। जब वह सेवक बाहर निकला, तो वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ रुपये का कर्जदार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घोंट कर कहा, 'अपना कर्ज़ चुका दो'। सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कह कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को चुका दूँगा'। परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बंदीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे। यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं। तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, 'रे दुष्ट सेवक ! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कर्ज माफ़ कर दिया था, तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?' और स्वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए जल्लादों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे। यदि तुम में हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।" अपना यह उपदेश समाप्त कर येसु गलीलिया से चले गये और यर्दन के पार यहूदिया प्रदेश पहुँचे।
प्रभु का सुसमाचार।
क्षमा करना ख्रीस्तीय धर्म को ही नहीं परंतु एक व्यक्ति के जीवन में निवास कर रहे ख्रीस्त को भी प्रकट करता है। प्रभु येसु ख्रीस्त अत्यंत प्रेममय और क्षमाशील व्यक्ति थे। उन्होने कई लोगो के पाप क्षमा कर उन्हें चंगाई प्रदान करीं। उन्होंने पाप में पकड़ी गई स्त्री के पापों को क्षमा किया। और इन सब से ऊपर उन्होंने अपने उपहास करने वाले और उन से घृणा करने वालों को कू्रस से क्षमा प्रदान करी। उन्होंने अपने जीवन के द्वारा बताया कि किस प्रकार हमें दूसरों को क्षमा प्रदान करनी है। उनकी शिक्षा केवल पेत्रुस और उनके शिष्यों के लिए ही नहीं परंतु हर एक ख्रीस्तीय अनुयायी के लिए है। यदि येसु ने हमारे असंख्य पापों को क्षमा किया है तो हमें भी दूसरों को क्षमा करने की जरूरत है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाForgiveness reveals not only the Christian faith, but also the indwelling Christ in a person's life. Lord Jesus Christ was a very loving and forgiving person. He forgave the sins of many people and gave them healing. He forgave the sins of the woman caught in sin. And above all, he gave forgiveness on the cross to those who mocked and hated him. He showed through his life how we are to forgive others. His teaching is not only for Peter and his disciples but for every Christian follower. If Jesus has forgiven our innumerable sins, then we too need to forgive others.
✍ -Fr. Dennis Tigga
हम ईश्वर से यह उम्मीद नहीं करते कि वो हमें एक बार, दो बार अथवा कुछ सीमित समय तक माफ़ करें। उलटे हम यह चाहते हैं कि वे हमें असंख्य बार, जब- जब हम उनके विरुद्ध पाप करते हैं, हमें क्षमा करें। कलीसिया में ऐसा कोई नियम नहीं बना है कि कोई व्यक्ति एक साल में सिर्फ कुछ गिनती के दिनों में ही पापस्वीकार के लिए आ सकता है। नहीं पापस्वीकार का दरवाज़ा हर विश्वासी के के लिए हमेशा खुला रहता है चाहे वो कितनी ही बार उठकर आये।
यदि यह परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के बारे में सच है, तो इसे दूसरों के साथ हमारे संबंधों में भी सत्य होना चाहिए। हमें हमेशा यह प्रयास करना चाहिए कि सुलह के प्रस्ताव को कभी भी अस्वीकार न करें। आज जब मैं इस सुसमाचार पर चिंतन कर रहा हूं, क्या कोई है जिसके साथ मुझे मेल-मिलाप करने की आवश्यकता है? प्रार्थना के इस समय में मेरे उस टूटे रिश्ते को और उस व्यक्ति को क्या मैं येसु के पास आज लाता हूँ और येसु की करुणा मेरे दिल में भरते हुए मैं उसे एक सच्ची क्षमा देता हूँ?
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतWe do not expect God to forgive us once or twice or any limited number of times but every time. It isn’t written that we have, for example, only 10 chances of going to confession and once our quota is used up, there is nothing left. If that is true of our relationship with God, it also has to be true in our relationships with others. We should always strive to never refuse an offer of reconciliation. As I reflect on this gospel today is there someone I need to be reconciled with? Bring this relationship to Jesus in this time of prayer.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya