वर्ष का बीसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ 6:11-24

"गिदओन ! तुम इस्राएल को मुक्त करोगे। याद रखो कि मैंने तुम को भेजा है।"

प्रभु का दूत आया और ओफ्रा के बलूत वृक्ष के नीचे बैठ गया। यह वृक्ष अबीएजेरवंशी योआज़ का था। योआज़ का पुत्र गिदओन इसलिए अंगूर पेरने के कोल्हू में गेहूँ दाँव रहा था कि वह उसे मिदयानियों से छिपा कर रखे। प्रभु का दूत उसे दिखाई दिया और बोला, "हे वीर योद्धा ! प्रभु तुम्हारे साथ है।" गिदओन ने उत्तर दिया, "क्षमा करें, महोदय ! यदि प्रभु हमारे साथ है, तो यह सब हम पर क्यों बीती? वे सब चमत्कार कहाँ गये, जिनका वर्णन हमारे पूर्वज यह कहते हुए करते थे- 'प्रभु हमें मिस्र से निकाल लाया'? अब तो प्रभु ने हमें छोड़ कर मिदयानियों के हवाले कर दिया।" प्रभु ने उसे संबोधित करते हुए कहा, "तुम मिदयानियों से युद्ध करने जाओ। तुम अपनी शक्ति के बल पर इस्राएल को उनके हाथ से बचा सकते हो। मैं ही तुम को भेज रहा हूँ।" गिदओन ने उत्तर दिया, "क्षमा करें, महोदय ! मैं इस्राएल को कैसे बचा सकता हूँ। मेरा कुल मनस्से में सब से दरिद्र है और मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूँ।" किन्तु प्रभु ने कहा, "मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम मिदयानियों को परास्त करोगे, मानो वे एक ही आदमी हों।" गिदओन ने निवेदन किया, "यदि मुझ पर आपकी कृपा-दृष्टि हो, तो मुझे एक ऐसा चिह्न दीजिए, जिससे मैं जान सकूँ कि आप ही मुझ से बोल रहे हैं। आप कृपया यहाँ से तब तक न जायें जब तक मैं आपके पास न लौट आऊँ। मैं अपना चढ़ावा ले कर आऊँगा और आपके सामने रखूँगा।" उसने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारे लौटने तक यहाँ रहूँगा।" गिदओन ने जा कर बकरी का एक बच्चा पकाया और एक एफा मैदे की बेख़मीर रोटियाँ बनायीं। उसने एक टोकरी में मांस रखा और एक पात्र में शोरबा ऊँडेला। फिर उसने इन्हें ले जा कर बलूत के नीचे स्वर्गदूत के सामने रख दिया। प्रभु के दूत ने उस से कहा, "मांस और रोटियाँ वहाँ चट्टान पर रखो और उन पर शोरबा ऊँडेल दो।" उसने यही किया। तब प्रभु के दूत ने अपने हाथ का डण्डा बढ़ा कर उसके सिरे से मांस और बेख़मीर रोटियाँ को स्पर्श किया। इस पर चट्टान में से आग निकली, जिसने मांस और बेख़मीर रोटियों को भस्म कर दिया। और प्रभु का दूत गिदओन की आँखों से ओझल हो गया। तब गिदओन समझ गया कि वह प्रभु का दूत था और उसने कहा, "हाय ! हे प्रभु-ईश्वर ! मैंने प्रभु के दूत को आमने-सामने देखा है।" किन्तु प्रभु ने उसे आश्वासन दिया, "तुम्हें शांति मिले ! मत डरो। तुम नहीं मरोगे।" गिदओन ने वहाँ प्रभु के लिए एक वेदी बनायी और उसका नाम 'प्रभु-शांति' रखा।

📖भजन : स्तोत्र 84:9,11-14

अनुवाक्य : प्रभु अपनी प्रजा को शांति का संदेश देता है।

1. प्रभु-ईश्वर जो कुछ कहता है, मैं उसे ध्यान से सुनूँगा। वह अपनी प्रजा को, अपने भक्तों को तथा पश्चात्तापियों को शांति का संदेश सुनाता है।

2. दया और सच्चाई, न्याय और शांति ये एक दूसरे से मिल जायेंगे। सच्चाई पृथ्वी पर पनपने लगेगी और न्याय स्वर्ग से हम पर दयादृष्टि करेगा।

3. प्रभु हमें सुख-शांति प्रदान करेगा और पृथ्वी फल उत्पन्न करेगी। न्याय उसके आगे-आगे चलेगा और शांति उसके पीछे-पीछे आती रहेगी।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! येसु मसीह धनी थे किन्तु आप लोगों के कारण निर्धन बने, जिससे आप लोग उनकी निर्धनता द्वारा धनी बन जायें। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 19:23-30

"सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ धनी के लिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कठिन होगा। मैं यह भी कहता हूँ कि सूई के नाके से हो कर ऊँट का निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है।" यह सुन कर शिष्य बहुत अधिक विस्मित हो गये और बोले, "तो फिर कौन बच सकता है?" उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए येसु ने कहा, "मनुष्यों के लिए तो यह असंभव है। ईश्वर के लिए सब कुछ संभव है।" तब पेत्रुस ने येसु से कहा, "देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं। हमें क्या मिलेगा?” येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "मैं तुम अपने अनुयायियों से कहे देता हूँ मानव पुत्र जब पुनरुत्थान में अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा, तब तुम लोग भी बारह सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय करोगे। और जिसने मेरे लिए, घर, भाई-बहनों, माता-पिता, पत्नी, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया है, वह सौ-गुना पायेगा और अनन्त जीवन का अधिकारी होगा।" "बहुत-से लोग जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।"

प्रभु का सुसमाचार।

📚 मनन-चिंतन

स्वर्ग का धन और इस संसार का धन, ये दोनों अलग-अलग तरह के धन हैं। एक धन को चोर चुरा सकते हैं, दीमक और कीट नष्ट कर सकते हैं, और दूसरा धन जो स्वर्ग में है, उसे कोई नहीं चुरा सकता और न ही उसे कोई नष्ट कर सकता है। लेकिन इस पृथ्वी का धन हमें अच्छा लगता है, मन को मोह लेता है। इस धन से हमें सुरक्षा, आराम, सुख-सुविधा आदि मिलती है। जिंदगी के कई प्रकार के कष्टों से बचाता है। लेकिन जो इस प्रकार का धनी है उसके लिए स्वर्ग में प्रवेश करना बहुत कठिन है। समस्या उस धनी व्यक्ति का धन नहीं बल्कि उस धन के कारण उसका स्वभाव, उसका व्यवहार है। शिष्यों ने प्रभु के लिए सब कुछ त्याग दिया था, तो प्रभु उन्हें स्वर्ग में उचित पुरस्कार का वादा करते हैं। जो स्वर्ग के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है, उसे स्वर्ग का धन प्राप्त होगा। अगर धनी व्यक्ति भी अपने धन के मोह से दूर होकर धन का सदुपयोग करता है, तो जरूर वह स्वर्ग में अपने लिए पूंजी एकत्रित कर लेगा। क्या हमारे पास ऐसा कुछ है जो स्वर्ग में हमारे प्रवेश को कठिन बना देगा?

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


The wealth of heaven and the wealth of this world are two very different kinds of riches. One kind of wealth can be stolen by thieves or destroyed by termites and pests, while the other—the wealth stored in heaven—cannot be stolen or destroyed. Yet the wealth of this earth appeals to us and captivates our hearts. It provides security, comfort, and luxuries, and protects us from many kinds of hardships in life. However, for a person who is rich in this way, entering heaven is very difficult. The problem is not the wealth itself, but the character and behavior that often develop because of it. The disciples had given up everything for the Lord, and so He promised them a worthy reward in heaven. Whoever gives up everything for the sake of heaven will receive heavenly treasure. If a wealthy person can free themselves from the attachment to riches and use their wealth rightly, they too will store up treasure in heaven. Do we have anything in our lives that could make our entry into heaven difficult?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)



📚 मनन-चिंतन - 2

‘‘मनुष्यांे के लिए तो यह असम्भव है। ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।’’ मनुष्यों का इस संसार में रहते हुए पापों से अपने आप को बचायें रखना आसान नहीं है मनुष्य कितना भी कोशिश करले परंतु वह पाप में गिर ही जाता है। हम अक्सर चाहते है कि भला सोचें और भला कार्य करे परंतु हम हर बार गिर जाते है क्योंकि यह हमारे दुर्बल शरीर के लिए असंभव है। हम अपने जीवन में पवित्रता का जीवन, ईश्वर के अनुसार जीवन अपनी शक्ति, कला, ज्ञान, बुद्धि से नहीं परंतु केवल और केवल ईश्वर की सहायता और सामर्थ्य से जी सकते है क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है। हम ईश्वर के अनुसार जीवन जीने के लिए निरंतर ईश्वर से सहायता मॉंगे।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


“For mortals it is impossible, but for God all things are possible.” It is not easy for humans to keep themselves safe from sins while living in this world, no matter how much a person tries, but he/she falls into sin. We often want to think good and do good but we fall every time because it is impossible for our weak body. We can live a life of purity or a life according to God, not with our own power, art, knowledge, intelligence but only and only with the help and power of God because everything is possible for God. Let’s seek God's constant help to live a life according to Him.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन-3

कल के सुसमाचार में अमीर युवक ने अपनी संपत्ति के प्रति लगाव के कारण, अनन्त जीवन प्राप्त करने की अपनी महान इच्छा के बावजूद, येसु का अनुसरण करना असंभव पाया। यही कारण है कि आज के सुसमाचार में येसु आगे कहते हैं, 'स्वर्ग के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है। येसु के इस कठोर कथन ने शिष्यों को चकित कर दिया और उन्हें लगभग निराशाजनक प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया, 'फिर कौन बच सकता है?' वे ये कहते प्रतीत होते हैं, कि न केवल उस अमीर, युवक के लिए जो आपके पास आया था परन्तु किसी के लिए भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना लगभग असंभव होगा। यीशु ने उनकी नकारात्मक सोच को एक बहुत ही आशावादी कथन के साथ काट दिया, 'मनुष्यों के लिए यह असंभव है; ईश्वर के लिए सब कुछ संभव है'।

येसु कह रहे हैं कि हमारे अंतिम मुकाम पर पहुंचना हमारे कर्मों से ज्यादा ईश्वर का काम है; यह हमारे प्रयासों से अधिक ईश्वर की कृपा के कारण संभव है। एफीसियों को लिखे पत्र की भाषा में- इस प्रकार आप लोग, ईश्वर की पूर्णता तक पहुँच कर, स्वयं परिपूर्ण हो जायेंगे। जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य सम्पन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है,। (एफेसियों 3:20)

जब हम अपने आप में कमज़ोर होते हैं और महसूस करते हैं कि यात्रा हमारी यह दुनयाई यात्रा बहुत भारी है, तब हमें खुद को इस महान सत्य की याद दिलाना होगा। संत पौलुस ने जेल से एक पत्र में घोषणा की,जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।(फिलिपियों 4:13) हमें उन संसाधनों पर अपना भरोसा बनाए रखने की आवश्यकता है जो प्रभु हमें हमेशा हमें प्रदान करते हैं और जिनकी हमें बहुत आवश्यकता है।

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


In yesterday’s gospel reading the rich young man found it impossible to follow Jesus because of his attachment to his possessions, in spite of his great desire to inherit eternal life. That is why Jesus goes on to say in this morning’s gospel reading, ‘it is easier for a camel to pass through the eye of an needle than for a rich man to enter the kingdom of kingdom of heaven. This stark statement of Jesus left the disciples astonished and led them to ask the almost despairing question, ‘Who then can be saved?’ They seem to be saying, ‘it must be nearly impossible for anyone to enter the kingdom o heaven, not just that rich, good man who approached you’. Jesus cuts across their negative thinking with a very hopeful statement, ‘for men this is impossible; for God everything is possible’.

Jesus is saying that arriving at our ultimate destiny is more God’s doing than our doing; it is due more to God’s grace than to our efforts. In the language of the letter to the Ephesians, God’s ‘power at work within us is able to accomplish abundantly far more than all we can ask or imagine’. It is above all when we are low in ourselves and feel the journey is too much for us that we need to remind ourselves of this great truth. Saint Paul declared in a letter from prison, ‘I can do all things in him who gives me strength’. We need to keep putting our trust in the resources the Lord is always giving us and which we need so much.

-Fr. Preetam Vasuniya