वर्ष का बीसवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

रूत का ग्रन्थ 2:1-3,8-11; 4:13-17

"प्रभु ने आप को एक उत्तराधिकारी दिया है। वही दाऊद के पिता येस्से का पिता है।"

अपने पति की तरफ से नोयमी के बोअज़ नामक एक सम्बन्धी था। वह एलीमेलेक के कुल का बहुत धनी मनुष्य था। मोआबिन रूत ने नोयमी से कहा, "मुझे खेतों में जाने दीजिए। जो मुझ पर कृपा करेगा, उसी के पीछे-पीछे सिल्ला बीनना चाहती हूँ।" उसने उत्तर दिया, "बेटी, जाओ।" वह गयी और खेतों में फ़सल काटने वाले के पीछे-पीछे सिल्ला बीनने लगी। बोअज़ ने रूत से कहा, "बेटी ! सुनो ! दूसरे खेत में सिल्ला बीनने मत जाओ। यहाँ रहो। मेरी नौकरानियों के साथ रहो। इसका ध्यान रखा करो कि किस खेत में फ़सल कट रही है और उनके पीछे-पीछे चलो। मैं अपने नौकरों को आदेश दे चुका हूँ कि वे तुम को तंग न करें। यदि तुम्हें प्यास लगे, तो नौकरों द्वारा भरे हुए घड़ों में से पीने जाओ।" रूत ने साष्टांग प्रणाम किया और कहा, "मुझे आपकी कृपादृष्टि कैसे प्राप्त हुई? मैं तो परदेशिनी हूँ और आप मेरी सुधि लेते हैं।" बोअज़ ने उत्तर दिया, "लोगों ने मुझे बताया कि तुमने अपने पति की मृत्यु के बाद अपनी सास के लिए क्या-क्या किया है। तुम अपने माता-पिता और अपनी जन्म-भूमि को छोड़ कर, ऐसे लोगों के यहाँ चली आयी हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानती थीं।" बोअज़ ने रूत को अपनी पत्नी के रूप में अपनाया। बोअज़ का उस से संसर्ग हुआ। प्रभु की कृपा से रूत गर्भवती हो गयी और उसने पुत्र प्रसव किया। स्त्रियों ने नोयमी से कहा, "धन्य है प्रभु ! उसने अब आप को एक उत्तराधिकारी दिया है और उसका नाम इस्राएल में बना रहेगा। वह आप को नया जीवन प्रदान करेगा और बुढ़ापे में आपका सहारा होगा, क्योंकि आपकी बहू ने उसे जन्म दिया है। वह आप को प्यार करती है और आपके लिए सात पुत्रों से भी बढ़ कर है।" नोयमी ने शिशु को अपनी छाती से लगा लिया और उसका पालन-पोषण किया। पड़ोस की स्त्रियों ने यह कहते हुए शिशु का नाम रखा, "नोयमी को पुत्र उत्पन्न हुआ है।" उन्होंने उसका नाम ओबेद रखा। वही दाऊद के पिता येस्से का पिता है।

📖भजन स्तोत्र 127:1-5

अनुवाक्य : जो ईश्वर पर भरोसा रखता है, उसे वही आशिष प्राप्त होगी।

1. धन्य हो तुम, जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हो और उसके मार्ग पर चलते हो। तुम अपने हाथ की कमाई से सुखपूर्वक जीवन बिताओगे।

2. तुम्हारी पत्नी तुम्हारे घर के आँगन में दाखलता की भाँति फलेगी फूलेगी। तुम्हारी सन्तान जैतून की टहनियों की भाँति तुम्हारे चौके की शोभा बढ़ायेंगी।

3. जो ईश्वर पर भरोसा रखता है, उसे वही आशिष प्राप्त होगी।

4. ईश्वर सियोन पर्वत पर से तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करता रहे। जिससे तुम जीवन-भर येरुसालेम का कुशल-मंगल देख पाओ।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 23:1-12

"वे कहते तो हैं, पर करते नहीं।"

येसु ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा, "शास्त्री और फ़रीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं, इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वह करते और मानते रहो, परन्तु उनके कर्मों का अनुसरण न करो, क्योंकि वे कहते तो हैं, पर करते नहीं। वे बहुत-से भारी बोझ बाँध कर लोगों के कंधों पर लाद देते हैं, परन्तु स्वयं उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते। वे हर काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही करते हैं। वे अपने तावीज़ चौड़े और अपने कपड़ों के झब्बे लम्बे कर देते हैं। भोज़ों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना, बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरुवर कहलाना यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।" "तुम लोग 'गुरुवर' कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है और तुम सब के सब भाई हो। पृथ्वी पर किसी को अपना 'पिता' न कहो, क्योंकि तुम्हारा, एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। 'आचार्य' भी कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह। जो तुम लोगों में से सब से बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने। जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।"

प्रभु का सुसमाचार।



📚 मनन-चिंतन

शास्त्री और फरीसी लोग मूसा की गद्दी पर बैठे थे। नबी मूसा को ईश्वर ने नियम और आज्ञायें दीं थीं और उन्हें लोगों को समझाने का आदेश दिया था। जैसा ईश्वर ने संदेश दिया था वैसा ही नबी मूसा ने लोगों को समझा दिया। वे ही नियम धर्मग्रंथ में समाहित थे और उन नियमों की व्याख्या करना और उन्हें समझाना फरीसी और शास्त्रियों की जिम्मेदारी थी। इसलिए प्रभु येसु कहते हैं कि वे लोग मूसा की गद्दी पर बैठे हैं। अर्थात वह जो बोलते हैं उसका पालन करना है लेकिन जैसा जीवन वे जीते हैं उस जीवन का अनुसरण नहीं करना है। वे लोगों को नियमों की व्याख्या विस्तार में समझाते हैं लेकिन स्वयं उसका पालन नहीं करते। जो ईश्वर का वचन सुनता तो हैं लेकिन उसका पालन नहीं करता वह मूर्ख के समान है, उसके जीवन में ईश्वर का वचन फलप्रद नहीं हो सकता। फरीसी और शास्त्रियों के विपरीत प्रभु अपने शिष्यों को विनम्रता और सेवा भाव का जीवन जीने का अहवाहन करते हैं। क्या मेरा जीवन प्रभु की शिक्षाओं के अनुसार है?

फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)

📚 REFLECTION


The scribes and Pharisees sat on Moses’ seat. God had given the prophet Moses the laws and commandments, and had instructed him to explain them to the people. Moses conveyed God’s message exactly as it had been given to him. Those very laws were recorded in the Scriptures, and it was the responsibility of the scribes and Pharisees to interpret and explain them. That is why the Lord Jesus says they sit on Moses’ seat—meaning, what they say is to be followed, but the way they live is not to be imitated. They explain the laws in great detail to the people, yet they do not follow them themselves. Whoever hears the Word of God but does not put it into practice is like a foolish person; God’s Word cannot bear fruit in such a life. In contrast to the scribes and Pharisees, the Lord calls His disciples to live lives of humility and service. Is my life in accordance with the teachings of the Lord?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन -2

कथनी और करनी में अंतर वाले लोगों से हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए क्योकि वे सर्वप्रथम बुरा उदाहरण बनते है और दूसरा वे अच्छाई के रास्तों पर चलने वालो को निरुत्साहित करते हैं। प्रभु येसु के समय में फरीसी और शास्त्रियों में कथनी और करनी में अंतर था; क्योंकि वे धर्म के अधिकारी के रूप में थे इसलिए प्रभु येसु लोगों से एवं अपने शिष्यों से कहते हैं कि जो कुछ वे कहें उसे मानते और करते जाओ परंतु उनके कार्यो का अनुसरण मत करों। हम सब जो कोई अधिकारी के रूप में हो- चाहे माता पिता के रूप में या शिक्षक के रूप में या धार्मिक अगुवा के रूप में या राजनैतिक नेता हम सभी का अपनी कथनी और करनी मे एक समान होना चाहिए। जिससे जो हम शिक्षा दे उसे हम अपने जीवन में भी लागू करें।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


We should always be careful with the people having differences between their words and deeds because firstly, they become a bad example for others and secondly, they discourage those who follow the path of goodness. During the time of Lord Jesus, the Pharisees and the scribes were the people whose words were very different from their deeds; Since they were in the authorities of the religion, Lord Jesus tells the people and his disciples to obey them and do whatever they say, but do not follow their actions. All of us who are in authority - whether as parents or teachers or religious leaders or political leaders, our words and actions should be similar and always go together so that whatever we teach, we may apply it in our lives as well.

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन-3

फरीसियों को येसु से एक बड़ी चुनौती मिलती थी, क्योंकि वे उन्हें छोटी-छोटी बातों से परे एक गहरी आध्यात्मिकता की और ले जाने की कोशिश कर रहे थे जो की जीवित ईश्वर के साथ एक जीवंत संबंध में निहित थी। फरीसी ऊपरी तौर पर अपनी धार्मिकता के प्रदर्शन मात्र से संतुष्ट थे। क्या मुझ में फरीसी का कुछ अंश है? क्या मैं दिखावे के लिए जीता हूं,? हमेशा इस बात की चिंता करता हूं कि दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? क्या मैं एक उथली अध्यत्मिता में जी रहा हूँ? एक चीज़ से दूसरी चीज़ की ओर भटक रहा हूँ? क्या मैं अपने हृदय की गहराई में ईश्वर की पुकारों को नज़रअंदाज़ कर रहा हूँ, जो कि अपने आप में अधिक समृद्ध और अधिक संतोषजनक है?

प्रभु, मुझे आपका एक बेहतर अनुयायी बनने में मदद कर, और जो आप मुझे बताने की कोशिश कर रहे हैं उसे सुनने के लिए मुझे पवित्र आत्मा प्रदान कर। आपके साथ मेरी दैनिक व्यक्तिगत प्रार्थना चुपचाप मुझे बदल दें। शिचेस्टर के संत रिचर्ड की सुन्दर प्रार्थना को मैं आज दोहराना चाहता हूँ - प्रभु यह वर दे कि मैं आपको और अधिक स्पष्ट रूप से देख सकूँ, आपको और अधिक गहरे प्यार से प्रेम कर सकूँ, और आपका और अधिक करीबी से अनुसरण कर सकूँ। आमेन

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


The Pharisees get a hard time from Jesus, because he is trying to draw them away from trivialities to something deeper—a dynamic relationship with the living God. Is there anything of the Pharisee in me? Do I live for show, always worried about what others think of me? Am I superficial, flitting from one thing to the next, while ignoring the calls of God in the depth of my heart to something richer and more satisfying?

Lord, help me to be a better follower of yours, and to listen for what you are trying to tell me. May my daily meetings with you quietly transform me. In the words of the beautiful prayer, ‘may I see you more clearly, love you more dearly, and follow you more nearly’ (Saint Richard of Chichester).

-Fr. Preetam Vasuniya