वर्ष का इक्कीसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

थेसलिनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 2:1-8

"हम आप को सुसमाचार के साथ अपना जीवन भी अर्पित करना चाहते थे।"

भाइयो ! आप स्वयं जानते हैं कि आप लोगों के यहाँ मेरा आगमन व्यर्थ नहीं हुआ है। आप जानते हैं कि हमें इसके ठीक पहले फ़िलिप्पी में दुर्व्यवहार और अपमान सहना पड़ा था, फिर भी हमने ईश्वर पर भरोसा रख कर, घोर विरोध का सामना करते हुए, निर्भीकता से आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। हमारा उपदेश न तो भ्रम पर आधारित है, न दूषित अभिप्राय से प्रेरित है और न उस में कोई छल-कपट है। ईश्वर ने हमें योग्य समझ कर सुसमाचार सौंपा है। इसलिए हम मनुष्यों को नहीं, बल्कि हमारा हृदय परखने वाले ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उपदेश देते हैं। आप लोग जानते हैं और ईश्वर भी इसका साक्षी है कि हमारे मुख से चाटुकारी की बातें कभी नहीं निकलीं और न हमने लोभ से प्रेरित हो कर कुछ किया। हमने मनुष्यों का सम्मान पाने की चेष्टा नहीं की न आप लोगों का और न दूसरों का; यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के नाते अपना अधिकार जता सकते थे। उलटे, अपने बच्चों का लालन-पालन करने वाली माता की तरह हमने आप लोगों के साथ कोमल व्यवहार किया। आपके प्रति हमारी ममता तथा हमारा प्रेम यहाँ तक बढ़ गया था कि हम आप को सुसमाचार के साथ अपना जीवन भी अर्पित करना चाहते थे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 138:1-6

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू मेरी थाह लेता और मुझे जानता है।

1. हे प्रभु ! तू मेरी थाह लेता और मुझे जानता है। मैं चाहे लेदूँ या बैठ जाऊँ तू जानता है। तू दूर रहते हुए भी मेरे विचार भाँप लेता है। मैं चाहे चलूँ या लेट जाऊँ तू देखता है। मैं जो भी करता हूँ तू सब जानता है।

2. मेरे मुँह से बात निकल ही नहीं पायी कि तू उसे पूरी तरह जान गया। तू मुझे आगे से और पीछे से सँभालता है, तेरा हाथ मेरी रक्षा करता रहता है। तेरी यह सूक्ष्मदृष्टि मेरी समझ के परे है। यह इतनी गहरी है कि मैं उसकी थाह नहीं ले सकता।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! ईश्वर का वचन जीवन्त और सशक्त है। वह हमारी आत्मा के अन्तरतम तक पहुँच जाता है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 23:23-26

"इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था।"

येसु ने यह कहा, "ऐ ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! तुम पुदीने, सौंफ़ और जीरे का दशमांश तो देते हो; किन्तु न्याय, दया और ईमानदारी, संहिता की मुख्य बातों की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था। अंधे नेताओ ! तुम मच्छर छानते हो, किन्तु ऊँट निगल जाते हो।" "ऐ ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! तुम प्याले और थाली को बाहर से तो माँजते हो, किन्तु भीतर वे लूट और असंयम से भरे हुए हैं। रे अंधे फ़रीसी ! पहले भीतर से प्याले को साफ़ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ़ हो जाये।"

प्रभु का सुसमाचार।

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