प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू मेरी थाह लेता और मुझे जानता है।
1. मैं कहाँ जा कर तुझ से अपने को छिपा लूँ? मैं कहाँ भाग कर तेरी आँखों से ओझल हो जाऊँ? यदि मैं आकाश तक पहुँच जाऊँ, तो तू वहाँ है; यदि मैं अधोलोक में लेदूँ, तो तू वहाँ भी है।
2. यदि मैं उषा के पंखों पर चढ़ कर, समुद्र के उस पार बस जाऊँ, तो वहाँ भी तेरा हाथ मुझे ले चलता, वहाँ भी तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता।
3. यदि मैं कहूँ, "अन्धकार मुझे छिपाये और रात मुझे चारों ओर से घेर ले", तो तेरे लिए अन्धकार अँधेरा नहीं है और रात दिन की भाँति प्रकाशमान है।
अल्लेलूया ! जो मसीह की आज्ञाओं का पालन करता है, ईश्वर का प्रेम उस में परिपूर्णता तक पहुँचता है। अल्लेलूया !
येसु ने यह कहा, "ऐ ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! तुम पुती हुई कब्रों के सदृश हो, जो बाहर से तो सुन्दर दीख पड़ती हैं, किन्तु भीतर से मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गंदगी से भरी हुई हैं। इसी तरह तुम भी बाहर से लोगों को धार्मिक दीख पड़ते हो, किन्तु भीतर से तुम पाखण्ड और अधर्म से भरे हुए हो।" "ऐ ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! तुम नबियों के मकबरे बनवा कर और धर्मात्माओं के स्मारक 'सँवार कर कहते हो, 'यदि हम अपने पुरखों के समय जीवित होते, तो हम नबियों की हत्या करने में उनका साथ नहीं देते।' इस तरह तुम लोग अपने विरुद्ध यह गवाही देते हो कि तुम नबियों के हत्यारों की सन्तान हो। तो, अपने पुरखों की कसर पूरी कर लो।"
प्रभु का सुसमाचार।
जो व्यक्ति भले और आदर्श आचरण का ढोंग करता है उसमें और जो व्यक्ति वास्तव में धर्मी है, इन दोनों में जमीन आसमान का फ़र्क है। ये दोनों ही तरह के लोग हमें आज के पाठों में देखने को मिलते हैं। पहले पाठ में संत पौलुस जब थेसलीनिकियों के लिए पत्र लिखते हैं तो उनके विश्वास की प्रशंसा करते हैं। सन्त पौलुस और उनके साथी सच्चाई और परिश्रम का जीवन जीते थे। वे जब उन लोगों के बीच में थे तो उन्होंने उनके समक्ष पवित्र, धार्मिक और निर्दोष जीवन का आदर्श रखा था। लोगों ने उनके जीवन के साक्ष्य द्वारा उनकी शिक्षाओं में विश्वास किया और प्रभु को स्वीकार किया। उन्होंने प्रेरितों की बातों को मनुष्यों की बातों के रूप में नहीं बल्कि ईश्वर के वचन के रूप में अपनाया। वहीं दूसरी ओर फरीसी और शास्त्री लोगों का आचरण बाहर से कुछ और था और अंदर से कुछ और था। वे बाहर से धार्मिक और पवित्र दिखते थे लेकिन अंदर से छल-कपट और पाप से भरे हुए थे। इसलिए प्रभु उनकी तुलना पुती हुई कब्रों से करते हैं। प्रभु का वचन हमारे पास है, हमें आसानी से मिल जाता है, लेकिन क्या हमारा जीवन और आचरण प्रेरितों की तरह पवित्र, धार्मिक और निर्दोष है या फिर पुती हुई कब्रों की तरह?
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)IThere is a vast difference between a person who pretends to be virtuous and ideal in conduct and one who is truly righteous. We see both kinds of people in today’s readings. In the first reading, when Saint Paul writes to the Thessalonians, he praises their faith. Paul and his companions lived lives of truth and hard work. When they were among the people, they presented before them an example of a holy, righteous, and blameless life. Through the witness of their lives, people believed in their teaching and accepted the Lord. They received the words of the apostles not as human words but as the Word of God. On the other hand, the conduct of the Pharisees and scribes was outwardly one thing and inwardly another. Outwardly they appeared religious and holy, but within they were filled with deceit and sin. That is why the Lord compares them to whitewashed tombs. The Word of the Lord is with us and easily available to us, but is our life and conduct like that of the apostles—holy, righteous, and blameless—or like whitewashed tombs?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)
खुद की निजी छवि और बाहरी दिखावट इस समय हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण मूल्य माने जाते हैं। यहाँ अच्छा दिखने पर जोर दिया जाता है, और लोग अच्छा दिखने के लिए बहुत कुछ करते हैं। अच्छा दिखने के लिए संसाधनों का आज पूरा बाजार भरा पड़ा है। सुसमाचार में, येसु बाहर के बजाय जो भीतर है उसके महत्व पर प्रकाश डालते हैं। लोग अंदर से कैसे हैं ये उनके बाहरी प्रकटीकरण से ज़्यादा मायने रखता है।
क्रूस पर से लटकते हुए यीशु सबसे अनाकर्षक व विरूपित रूप में प्रकट हुए। फिर भी, यही वह क्षण था जब उनके भीतर मानव जाती के लिए जो प्रेम था वह अपने चरम पर था। गरीब विधवा जिसने मंदिर के खजाने में तांबे के दो सिक्के डाले थे, वह संसार की निगाहों में एक तुच्छ व्यक्ति लग रही थी जो एक तुच्छ राशि का योगदान कर रही थी। तौभी यीशु ने इस स्त्री के भीतर के उदार हृदय, को असाधारण रूप से देखा, और उसने अपने शिष्यों को बुलाया और इस सचाई को उनको बताया की बहार से उस विधवा ने न के बराबर दान दिया है परन्तु भीतर से उसने अपना सब कुछ दान कर दिया है।
आज का सुसमाचार हमें अपने दिखावे के बजाये हमारे हृदय में प्रेम की गुणवत्ता पर अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
✍फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांतImage and appearance are important values in our culture at the moment. There is an emphasis on looking well, and people can go to great lengths to look well. In the gospel reading, Jesus highlights the importance of what is within rather than what is without. How people are within themselves rather than how they appear to others is what matters. Jesus himself appeared at his most unattractive as he hung dying from the cross. Yet, that was the moment when the love that was within him was at its most intense.
The poor widow who put two copper coins into the Temple treasury looked an insignificant figure contributing an insignificant amount of money. Yet Jesus saw through the unexceptional appearance of this woman to the generous heart within, a heart like his own, and he called over his disciples so that they could learn from her. Appearances can be deceptive. In the case of the scribes and Pharisees in today’s gospel reading there was less there than met the eye. In the case of the widow and Christ crucified there was more than met the eye. The gospel reading this morning encourages us not to work so much on our appearances as on what is within, the quality of the love in our heart.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya