भ्रातृप्रेम के विषय में आप लोगों को लिखने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि आप लोग ईश्वर से ही एक दूसरे को प्यार करना सीख चुके हैं और सारी मकेदूनिया के भाइयों के प्रति इस भ्रातृप्रेम का निर्वाह करते हैं। भाइयो ! मेरा अनुरोध है कि आप इस विषय में और भी उन्नति करें। आप इस बात पर गर्व करें कि आप शांति में जीवन बिताते हैं और हर एक अपने-अपने काम में लगा रहता है। आप लोग मेरे आदेश के अनुसार अपने हाथों से काम करें।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है।
1.प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।
2. समुद्र की लहरें गरज उठें, पृथ्वी और उसके निवासी जयकार करें, नदियाँ तालियाँ बजायें और पर्वत आनन्दित हो उठें।
3. क्योंकि प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह न्यायपूर्वक संसार का शासन करेगा। वह निष्पक्ष हो कर लोगों का न्याय करेगा।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ तुम एक दूसरे को प्यार करो।" अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त सुनाया, "स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी। उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया। जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, वह तुरन्त उनके साथ लेन-देन करने लगा और उसने और पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ कमा लीं। इसी तरह जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने और दो हज़ार कमा लीं। लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, वह गया और भूमि खोद कर उसने अपने स्वामी का धन छिपा दिया।" "बहुत समय बाद उन सेवकों का स्वामी लौटा और उन से लेखा लेने लगा। जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हज़ार ला कर कहा, 'स्वामी ! आपने मुझे पाँच हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हज़ार कमायीं।' उसके स्वामी ने उस से कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक ! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' इसके बाद वह आया, जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी ! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।' उसके स्वामी ने उससे कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक ! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' अंत में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी ! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और आपने जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इसे लौटाता हूँ।' स्वामी ने उसे उत्तर दिया,' दुष्ट और आलसी सेवक ! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और मैंने जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ; तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता। इसलिए ये हज़ार अशर्फ़ियाँ इससे ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो; क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उससे वह ले लिया जायेगा, जो उसके पास है। और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अंधकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।"
प्रभु का सुसमाचार।
ईश्वर सभी के हृदय के रहस्य जानता है। हम मनुष्य केवल दूसरों के बाहरी व्यवहार से उनके बारे में निर्णय करते हैं या अपनी राय बनाते हैं। कभी-कभी हम किसी की वास्तविकता नहीं जानते और न जानना चाहते। लेकिन ईश्वर सब जानता है। नाकेदार लेवी को सभी बुरा मानते थे और शायद उससे पिता ईश्वर इस संसार का सृष्टिकर्ता एवं संचालक है। वह चाहता है कि हम इस सृष्टि की देख-भाल करें एवं इसके संचालन में उसका सहयोग करें। इसीलिए उसने हमें विभिन्न रूपों में कई ज़िम्मेदारियाँ दीं हैं। और उन जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने के लिए हमें आवश्यक योग्यता एवं गुण दिए हैं। उसने यह ज़िम्मेदारियाँ हमें हमारी क्षमताओं एवं सीमाओं के अनुसार ही दीं हैं। आज का सुसमाचार हमें इसी बात की झलक दिखलाता है कि जब हम अपने दिए हुए सद्गुणों का सदुपयोग करते हुए अपनी जिम्मेदारी को पूरा करते हैं तो हमारा स्वामी हमें किस तरह से पुरस्कृत करेगा और जब हम अपने गुणों और क्षमताओं का उपयोग ही नहीं करते तो हमारा क्या होगा। हम जानते हैं कि जिन गुणों और क्षमताओं का उपयोग नहीं किया जाता है, वह नष्ट हो जाते हैं। ईश्वर ने हमें अलग-वरदान और गुण दिए हैं। किसी को प्रभावशाली ढंग से बोलने का वरदान, किसी को तेज दिमाग, किसी को संगीत का ज्ञान, किसी को किसी विषय में विशेष ज्ञान इत्यादि। अगर हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त इन वरदानों का ईश्वर के राज्य के लिए उपयोग करेंगे तो ईश्वर हम पर और अधिक कृपा करेगा। हमें यही फैसला करना है कि हमें हमारे स्वामी से पुरस्कार पाना है कि दण्ड पाना है।
✍फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर)God the Father is the Creator and Sustainer of this world. He desires that we take care of creation and cooperate with Him in its governance. That is why He has entrusted us with various responsibilities in different forms, and to fulfill them faithfully, He has also given us the necessary talents and virtues. These responsibilities are given to us according to our capacities and limitations. Today’s Gospel reminds us that when we make good use of the gifts given to us and fulfill our responsibilities, our Master will reward us; but when we do not use our gifts and abilities, we will face the consequences. We know that talents and abilities that are not used eventually perish. God has given each of us unique gifts and talents—some the gift of speaking with influence, others a sharp mind, some the knowledge of music, others special knowledge in a particular subject, and so on. If we use these God-given gifts for the sake of His Kingdom, He will bless us with even more grace. It is for us to decide whether we want to receive a reward from our Master or punishment.
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior)