वर्ष का बाईसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

थेसलिनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 5:1-6,9-11

"मसीह हमारे लिए मर गये, जिससे हम उन से संयुक्त हो कर जीवन बितायें।"

भाइयो ! आप लोग भली भाँति जानते हैं कि प्रभु का दिन रात के चोर की तरह आयेगा। इसलिए इसके निश्चित समय के विषय में आप को कुछ लिखने की कोई जरूरत नहीं। जब लोग यह कहेंगे- अब तो शांति और सुरक्षा है, तभी विनाश, गर्भवती पर प्रसव पीड़ा की तरह, उन पर अचानक आ पड़ेगा और वे उस से नहीं बच सकेंगे। भाइयो ! आप तो अन्धकार में नहीं हैं, जो वह दिन आप पर चोर की भाँति अचानक आ पड़े। आप सब ज्योति की सन्तान हैं, दिन की सन्तान हैं। हम रात या अन्धकार के नहीं। इसलिए हम दूसरों की तरह न सोयें, बल्कि जागते हुए सतर्क रहें। ईश्वर यह नहीं चाहता कि हम उसके कोपभाजन बनें, बल्कि अपने प्रभु येसु मसीह के द्वारा मुक्ति प्राप्त करें। मसीह हमारे लिए मर गये, जिससे हम चाहे जीवित हों या मर गये हों, उन से संयुक्त हो कर जीवन बितायें। इसलिए आप को एक दूसरे को प्रोत्साहन और सहायता देनी चाहिए, जैसा कि आप कर रहे हैं।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 26:1,4,13-14

अनुवाक्य: मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा।

1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?

2. मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ और प्रभु की मधुर छत्रछाया में रह कर उसके मंदिर में मनन करूँ।

3. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! हमारे बीच महान् नबी उत्पन्न हुए हैं और ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:31-37

"मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।"

येसु गलीलिया के कफ़रनाहूम नगर आये और विश्राम के दिन लोगों को शिक्षा दिया करते थे। लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचंभे में पड़ जाते थे, क्योंकि वह अधिकार के साथ बोलते थे। सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा, "येसु नाजरी ! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।" येसु ने यह कह कर उसे डाँटा, "चुप रह, इस मनुष्य में से बाहर निकल जा।" अपदूत ने सब के देखते-देखते उस मनुष्य को भूमि पर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना वह उस में से निकल गया। सब विस्मित हो गये और आपस में कहने लगे, “यह क्या बात है ! वह अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।" इसके बाद येसु की चरचा उस प्रदेश के कोने-कोने में फैल गयी।

प्रभु का सुसमाचार।

📚 मनन-चिंतन

लूकस 4:31-37 से लिए हुए आज के सुसमाचार में प्रभु येसु के शब्दों की शक्ति और शैतान पर उनके अधिकार को हम पाते हैं। प्रभु येसु के मिशन का एक मुख्य कार्य शैतान को हराना था जो वे क्रूस पर मरकर किये। लेकिन उसकी शुरुआत तो उन्होंने अपने वचन से ही की। इसकी सुन्दर व्याख्या CCC 550 हम पाते हैं : ईश्वर के राज्य का आगमन शैतान की हार का संकेत है: "परन्तु यदि मैं ईश्वर के आत्मा की सहायता से नरकदूतों को निकालता हूँ, तो निस्सन्देह ईश्वर का राज्य तुम्हारे बीच आ गया है।" (मत्ती 12:28) प्रभु येसु के शैतान को निकालकर कुछ व्यक्तियों को दुष्टात्माओं के आधिपत्य से मुक्त कराते हैं। ये कार्य प्रभु येसु की उस महान विजय का संकेत हैं, जो वह “इस संसार के शासक” – शैतान पर पाने वाले हैं। ईश्वर का राज्य अन्ततः मसीह के क्रूस द्वारा स्थापित होगा : "ईश्वर ने लकड़ी से राज्य किया।" आज भी यह कार्य जारी है; लेकिन बहुत ही अलग रीति से। शैतान सबके साथ चलता रहता है। महान संतों को भी वह छोड़ा नहीं। जब-जब हम उसके प्रलोभन पर पड़कर उसकी इच्छा पूरी करते हैं तो हम प्रभु येसु को हरा देते हैं! हम किसके पक्ष में हैं? प्रभु येसु के या शैतान के?

- फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट


📚 REFLECTION

In today’s Gospel taken from Luke 4:31-37, we see the power of the words of the Lord Jesus and His authority over Satan. One of the main missions of the Lord Jesus was to defeat Satan, which He accomplished through His death on the Cross. But the beginning of that mission was already seen in the power of His Word. A beautiful explanation of this is found in CCC 550: The coming of God's kingdom means the defeat of Satan's: “If it is by the Spirit of God that I cast out demons, then the kingdom of God has come upon you.” (Mt 12:28) Jesus' exorcisms free some individuals from the domination of demons. They anticipate Jesus' great victory over “the ruler of this world.” The kingdom of God will be definitively established through Christ's cross: “God reigned from the wood.” This work continues even today, but in a very different way. Satan still walks with everyone. He did not spare even the great Saints. Whenever we fall into his temptations and do his will, we defeat the Lord Jesus! So, whose side are we on? The Lord Jesus’ or Satan’s?

-Fr. George Mary Claret

📚 मनन-चिंतन-2

आज के सुसमाचार में, एक अशुद्ध आत्मा उस व्यक्ति के अंदर से येसु को चिल्लाती है, 'क्या तुम हमें नष्ट करने आए हो?' उस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' है।येसु उन सभी ताकतों और शक्तियों को नष्ट करने आए हैं जिन्होंने लोगों को गुलाम बनाया है और उन्हें ईश्वर की इच्छानुसार पूर्ण मनुष्य बनने से रोकती हैं। हम अक्सर येसु के मिशन को विनाशकारी मिशन नहीं मानते। हम उन्हें विनाशक के बजाय एक उद्धारकर्ता के रूप में देखते हैं और यह एक सही समझ है। फिर भी, वे दोनों थे बचने वाले और नष्ट करने वाले। उनके लिए लोगों को बचाने के लिए, कुछ वास्तविकताओं को नष्ट करना ज़रूरी है।

येसु जानते थे कि उनका संघर्ष दुष्ट की शक्तियों से था। शैतानी ताकतें वे ताकतें है जो मनुष्य के सम्पूर्ण विनाश में सदा लगी रहती है, और येसु के लिए ऐसी ताकतों को नष्ट करना ज़रूरी था। सभागृह में लोगों ने येसु को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जिनके पास जीवन देने और मृत्यु को हारने का अधिकार है। यही वह अधिकार और शक्ति है जिसे पुनर्जीवित प्रभु हम सभी के साथ साझा करना चाहते हैं, ताकि हम बदले में दुनिया में उनके जीवन देने वाले कार्य में हिस्सा ले सकें, एक ऐसा कार्य जो समय के अंत तक जारी रहता है।

फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत

📚 REFLECTION


In this today's gospel reading, the spirit of an unclean demon shouts at Jesus through the person possessed, ‘Have you come to destroy us?’ The answer to that question is ‘yes’. Jesus had come to destroy all the forces and powers that enslaved people and prevented them from becoming the full human beings that God wants them to be. We don’t always think of Jesus’ mission as having a destructive quality. Quite rightly we think of him as a Saviour rather than as a Destroyer. Yet, he was both. For people to be saved, in the full sense of that word, certain realities have to be destroyed.

Jesus was aware that he was in conflict with forces of evil, forces that had to be overcome and destroyed. The people in the synagogue recognized Jesus as a person of authority and power; His was a life-giving authority and power that worked to destroy the forces of death and destruction. That is the kind of authority and power that the risen Lord wants to share with all of us, so that we in turn can share in his life-giving work in the world, a work that continues until the end of time.

-Fr. Preetam Vasuniya