इस समय मैं आप लोगों के लिए जो कष्ट पाता हूँ, इसके कारण मैं प्रसन्न हूँ। मसीह ने अपने शरीर अर्थात् कलीसिया के लिए जो दुःख भोगा है, उस में जो कमी रह गयी है, मैं उसे अपने शरीर में पूरा करता हूँ। मैं ईश्वर के विधान के अनुसार कलीसिया का सेवक बन गया हूँ, ताकि मैं आप लोगों को ईश्वर का वह संदेश, वह रहस्य सुनाऊँ, जो युगों तथा पीढ़ियों तक गुप्त रहा और अब उसके सन्तों के लिए प्रकट किया गया है। ईश्वर ने उन्हें दिखलाना चाहा कि गैरयहूदियों में इस रहस्य की कितनी महिमामय समृद्धि है। वह रहस्य यह है कि मसीह आप लोगों के बीच हैं और उन में आप लोगों की महिमा की आशा है। हम उन्हीं मसीह का प्रचार करते हैं, प्रत्येक मनुष्य को उपदेश देते और प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण ज्ञान की शिक्षा देते हैं, जिससे प्रत्येक मनुष्य को मसीह के शरीर का पूर्ण अंग बना दें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैं उनके सामर्थ्य से, जो मुझ में प्रबल रूप से क्रियाशील है, प्रेरित हो कर कठिन परिश्रम करते हुए संघर्ष में लगा रहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप जान जायें कि आप लोगों के लिए, लौदीकिया के विश्वासियों मुझे कभी नहीं देखा, मैं कितना कठोर परिश्रम करता रहता हूँ, जिससे वे हिम्मत न हारें, प्रेम परिपूर्णता प्राप्त करें और इस प्रकार ईश्वर के रहस्य के मर्म तक पहुँच जायें। वह रहस्य है की संपूर्ण निधि निहित है। और उन सबों के लिए, जिन्होंने की एकता में बँधे रहें, ज्ञान की मसीह, जिन में प्रज्ञा तथा ज्ञान
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : ईश्वर से ही सुरक्षा और सम्मान मिलता है ।
1. मेरी आत्मा ईश्वर पर ही भरोसा रखे, क्योंकि उसी से सुरक्षा मिलती है। वही मेरी चट्टान है, मेरी सुरक्षा, मेरा गढ़- मैं विचलित नहीं होऊँगा
2. सभी लोग उसी की शरण लें और हर समय उसी पर भरोसा रखें । उसी के सामने अपना हृदय खोल दो, क्योंकि ईश्वर हमारा आश्रय है।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया !
येसु किसी विश्राम के दिन सभागृह में जा कर शिक्षा देने लगे। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था । शास्त्री और फ़रीसी इस बात की ताक में थे कि यदि येसु विश्राम के दिन किसी को चंगा करें, तो हम उन पर दोष लगायें । येसु ने उनके विचार जान कर सूखे हाथ वाले से कहा, "उठो और बीच में खड़े हो जाओ।" वह उठ खड़ा हो गया। येसु ने उन से कहा, “मैं तुम से पूछता हूँ - विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, जान बचाना या नष्ट करना ?" तब उन सबों पर दृष्टि दौड़ा कर उन्होंने उस मनुष्य से कहा, "अपना हाथ बढ़ाओ।" उसने ऐसा ही किया और उसका हाथ चंगा हो गया । वे बहुत क्रुद्ध हो गये और आपस में परामर्श करने लगे कि हम येसु के विरुद्ध क्या करें।
प्रभु का सुसमाचार।
सुसमाचार में आज हम एक सूखे हाथ वाले व्यक्ति के बारे में सुनते हैं। वहाँ प्रभु येसु उपस्थित हैं और वे उस पीडित व्यक्ति की हालत महसूस करते हैं। उन्हें उस पर दया आती है। वे जानते थे कि शास्त्री और फरीसी यह देख रहे थे कि क्या वे उस आदमी को चंगा करेंगे या नहीं ताकि वे उन पर आरोप लगा सकें। येसु उनकी प्रतिक्रिया की परवाह नहीं करते हैं। सब की "भलाई करते जाना" उनकी आदत थी। वे पीड़ित व्यक्ति को समूह के केंद्र में ले आये। उनके अनुसार पीड़ित मनुष्य समुदाय के केन्द्र में रहे और सबका ध्यान उस पर होना चाहिए। येसु ने वही किया जो उस पीड़ित व्यक्ति के लिए अच्छा था। उन्होंने उसे चंगा किया, कि वह औरों की भलाई करता फिरे। दूसरी ओर, हम फरीसियों को देखते हैं जो भलाई करने में रुचि नहीं रखते हैं, लेकिन जो अच्छा कर रहे हैं उनमें दोष निकालते हैं। वे बेकार और हानिकारक आलोचना करने में लगे हैं। ऐसे लोग समाज में अच्छा करने वालों को हतोत्साहित करते हैं। वे स्वयं कोई भलाई नहीं करते; न ही वे दूसरों को किसी का भला करने देते हैं। एक ख्रीस्तीय विश्वासी वह है जो जहाँ भी और जब भी संभव हो भलाई करता रहे। क्योंकि वह इस दुनिया में सभी भलाई के स्रोत और कर्ता का प्रतिनिधि या राजदूत है। आईए हम भी प्रभु येसु के समान हमेशा दूसरों की भलाई करते रहें।
✍ - फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया
Today we hear about a man with a withered hand. We have Jesus who feels with that man who was suffering. He has compassion for him. He was aware that the Scribes and Pharisees were watching him to see whether he would heal that man so that they could find fault with him. Jesus does not bother about their reaction. It was customary for him to “go about doing good”. He brought the suffering man to the centre of the scene. For him the suffering human being should attract all attention of others. He did what was good for that suffering man. He healed him, so that he could go about doing good to others. On the other hand, we see the pharisees who are not interested in doing good, but finding fault with those who are doing good. They engage in useless and detrimental criticism. Such people in society discourage those who do good. They do not do any good by themselves; nor do they allow others to do any good to others. A Christian is one going about doing good wherever and whenever possible. Because he is representative or ambassador of the source and doer of all good.
✍ -Fr. Francis Scaria
शास्त्री और फरीसी येसु से इतना घृणा करने लग गये थें कि वे येसु के महान चमत्कारों को देखते हुए भी उनमें ईश्वरत्व को नहीं पहचान पा रहें थे और इसके विपरीत वे हर क्षण येसु को किसी न किसी बातों में फसाना चाहते थे।
भलाई करना एक महान काम है, जिसके लिए न तो कोई सीमा है और न कोई बंदिशे। फरीसी और शास्त्री यह देखना चाहते थे येसु विश्राम के दिवस रोगियों को चंगा करते है कि नहंीं। येसु उनके मन की बातो को जानकर उस सूखे हाथ वाले व्यक्ति को चंगा करते हुए या बात को सिद्ध करते है कि भलाई के लिए कोई सीमा नहीं; न दिन की न जाति की। इसे हम प्रभु येसु द्वारा बताये गये भले समारी के दृष्टांत से भी समझ सकते है जहॉं पर एक समारी यह न देखते हुए कि एक व्यक्ति जो घायल है वह यहूदी है या कोई और वह उसकी सेवा सुश्रुषा करता है। प्रभु येसु हमें निरंतर भलाई करते रहने की शिक्षा देते है। हमारे साथ तो बुराई हर कोई कर सकता है परंतु हमें भलाई करने से कौन रोक सकता है, क्योंकि भलाई की न कोई सीमा है न बंदिशे।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाThe Pharisees and Scribes were envying Jesus to that extent that even after seeing the great miracles they were not able to recognize the divinity in him and on the contrary they wanted to trap him in every moment.
To good is a noble work, for which there is neither boundary nor limits. Pharisees and Scribes wanted to see whether Jesus heals the sick on the Sabbath or not. Understanding the mind of them Jesus heals the man with withered hand and hence affirming that there is no limit, neither of day nor of caste for doing any good. This we can also understand with the parable given by Jesus of the Good Samaritan, where one samaritan helps the wounded person withou seeing whether the person who is wounded is Jew or some one else. Lord Jesus always teaches us to do good. Any one can do wrong to us but no one can stop us from doing good because for goodness there is neither the boundary nor any limit.
✍ -Fr. Dennis Tigga