वर्ष का तेईसवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

कलोसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 3:12-17

<5>"आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब-कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।"

आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा हैं। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता को धारण कर लेना चाहिए। आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो, तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया है; आप लोग भी ऐसा ही करें। इसके अतिरिक्त आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब-कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है। मसीह की शांति आपके हृदयों में राज्य करे। इसी शांति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें । मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करे। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञतापूर्ण हृदय से ईश्वर के आदर में भजन स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें। आप जो कुछ भी कहें या करें, वह सब प्रभु के नाम पर किया करें। उन्हीं के द्वारा आप लोग पिता ईश्वर को धन्यवाद देते रहें ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 150:1-6

अनुवाक्य : सभी प्राणी प्रभु की स्तुति करें । अथवा : अल्लेलूया !

1. प्रभु के मंदिर में उसकी स्तुति करो। उसके महिमामय आकाश में उसकी स्तुति करो। उसके महान् कार्यों के कारण उसकी स्तुति करों । उसके परम प्रताप के कारण उसकी स्तुति करो

2. तुरही फूंकते हुए उसकी स्तुति करो। वीणा और सितार बजाते हुए उसकी स्तुति करो । ढोल बजाते हुए और नृत्य करते हुए उसकी स्तुति करो । तानपूरा और बाँसुरी बजाते हुए उसकी स्तुति करो

3. झाँझों की ध्वनि पर उसकी स्तुति करो । विजय की झाँझों को बजाते हुए उसकी स्तुति करो। सभी प्राणी प्रभु की स्तुति करें।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:27-38

"अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो ।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "मैं तुम लोगों से, जो मेरी बात सुनते हो, कहता हूँ अपने शत्रुओं से प्रेम रखो । जो तुम से बैर करते हैं, उनकी भलाई करो। जो तुम्हें शाप देते हैं, उन को आशीर्वाद दो। जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो । जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारता है, दूसरा भी उसके सामने कर दो। जो तुम्हारी चादर छीनता है, उसे अपना कुरता भी ले लेने दो । जो कोई तुम से माँगे, उसे दे दो और जो तुम से तुम्हारा अपना छीन ले, उसे वापस मत माँगो । दूसरों से अपने साथ जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके साथ वैसा ही किया करो। यदि तुम उन्हीं को प्यार करते हो जो तुम्हें प्यार करते हैं, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है ? पापी भी अपने प्रेम करने वालों से प्रेम करते हैं। यदि तुम उन्हीं की भलाई करते हो जो तुम्हारी भलाई करते हैं, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है ? पापी भी ऐसा करते हैं। यदि तुम उन्हीं को उधार देते हो जिन से वापस पाने की आशा करते हो, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है ? पूरा-पूरा वापस पाने की आशा में पापी भी पापियों को उधार देते हैं। परन्तु अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, उनकी भलाई करो और वापस पाने की आशा न रख कर उधार दो । तभी तुम्हारा पुरस्कार महान् होगा और तुम सर्वोच्च प्रभु के पुत्र बन जाओगे, क्योंकि वह भी कृतघ्नों और दुष्टों पर दया करता है।" "अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो। दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा। किसी के विरुद्ध निर्णय न दो और तुम्हारे विरुद्ध भी निर्णय नहीं दिया जायेगा। क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी। दो और तुम्हें भी दिया जायेगा । दबा दबा कर, हिला हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी की पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा ।"

प्रभु का सुसमाचार।