यह कथन सुनिश्चित और नितान्त विश्वसनीय है कि येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, और उन में से मैं सर्वप्रथम हूँ। मुझ पर इसीलिए दया की गयी है कि येसु मसीह सब से पहले मुझ में अपनी सम्पूर्ण सहनशीलता प्रदर्शित करें और उन लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें, जो अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए विश्वास करेंगे । युगों के अधिपति, अविनाशी, अदृश्य और अतुल्य ईश्वर को युगानुयुग सम्मान तथा महिमा ! आमेन ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु का नाम अनन्तकाल तक धन्य है।
1. प्रभु के सेवको ! स्तुति करो ! प्रभु के नाम की स्तुति करो। धन्य है प्रभु का नाम, अभी और अनन्तकाल तक !
2. सूर्योदय से ले कर सूर्यास्त तक प्रभु के नाम की स्तुति हो । प्रभु सभी राष्ट्रों का शासक है। उसकी महिमा आकाश से भी ऊँची है
3. हमारे प्रभु-ईश्वर के सदृश कौन? वह उच्च सिंहासन पर विराजमान हो कर स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों पर दृष्टि रखता है। वह धूल में से दीनों को और कूड़े पर से दरिद्रों को ऊपर उठाता है।
अल्लेलूया ! यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आ कर उस में निवास करेंगे। अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "कोई भी अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता और न कोई बुरा पेड़ अच्छा फल देता है। हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। लोग न तो कँटीली झाड़ियों से अंजीर तोड़ते हैं और न ऊँटकटारों से अंगूर । अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भंडार से अच्छी चीजें निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भंडार से बुरी चीजें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है, वही तो मुँह से बाहर आता है।" "जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कह कर मुझे क्यों पुकारते हो? जो मेरे पास आ कर मेरी बातें सुनता और उन पर चलता है- जानते हो, वह किसके सदृश है? वह उस मनुष्य के सदृश है, जो घर बनाते समय गहरा खोदता है और उसकी नींव चट्टान पर डालता है। बाढ़ आती है और जलप्रवाह उस मकान से टकराता है, किन्तु वह उसे ढा नहीं पाता; क्योंकि वह घर बहुत मजबूत बना है। परन्तु जो मेरी बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस मनुष्य के सदृश है, जो बिना नींव डाले भूमितल पर अपना घर बनाता है। जलप्रवाह की टक्कर लगते ही वह घर ढह जाता है और उसका सर्वनाश हो जाता है।"
प्रभु का सुसमाचार।
आज के सुसमाचार (लूकस 6:43–49) में प्रभु फल से पहले जड़ को देखते हैं। येसु बाहरी सजावट नहीं, नया हृदय चाहते हैं—जिससे स्वाभाविक रूप से अच्छे कर्म और वचन निकलें: “जो हृदय में भरा है, वहीं तो मुँह से बाहर आता है” संत पौलुस कहते हैं, “मुझे दया मिली” (1 तिम 1:16)—और दया ने उनकी जड़ों को बदला। कलीसिया सिखाती है कि प्रतिदिन का परिवर्तन (CCC 1435) छोटे-छोटे निर्णयों से होता है, जिससे हमारे भीतर आत्मा के फल (CCC 1832) पकते हैं। चट्टान पर घर वही बनाता है जो वचन सुनता भी है और उसके अनुसार जीता भी (CCC 546)—प्रार्थना, संस्कार, दया-कार्य—यही आँधियों में हमें स्थिर रखते हैं। आज अपने आप से पूछें :- मेरे शब्दों और व्यवहार का “स्वाद” क्या है—शांति, धैर्य, प्रेम—या चिड़चिड़ापन और भय (CCC 1832)? मेरी ज़िंदगी की नींव कहाँ है—मसीह, या अस्थिर अपेक्षाएँ? आज मैं प्रतिदिन के परिवर्तन का एक ठोस कदम क्या उठाऊँगा?
✍ - फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट
In today’s Gospel (Luke 6:43–49), the Lord looks at our roots before our fruit. Jesus doesn’t ask for cosmetic change; He wants a new heart from which good words and deeds naturally flow: “From the fullness of the heart the mouth speaks.” St. Paul confesses, “I received mercy” (1 Tim 1:16)—and mercy changed his roots. The Catechism calls this daily conversion—small, concrete steps that re-root us in Christ (CCC 1435), so that the fruits of the Spirit ripen in us (CCC 1832). Building on Rock means hearing and doing the Word (cf. CCC 546): prayer, the Sacraments, works of charity—poured into ordinary days until our life stands firm in storms. Ask your heart today :- What “fruit” do people taste when they meet me—peace or impatience, faith or fear (CCC 1832)? Where is my house founded—on Christ the Rock or on shifting sand? What one step of daily conversion (CCC 1435) will I take today?
✍ -Fr. George Mary Claret
येसु जिन चीज़ों से घृणा करता था, उनमें से एक पाखंड या ढोंग थी। हम सभी अच्छा बनना पसंद करते हैं। हम सब यह साबित करना चाहते हैं कि हम अच्छे हैं और अच्छा कर रहे हैं। हम समाज में सम्मान पाना चाहते हैं। लेकिन यह आसान नहीं है। इसलिए हममें से कुछ लोग शॉर्टकट लेना चाहते हैं। वह है अच्छे होने के बजाय, अच्छे होने का दिखावा। अच्छे होने के बजाय हम खुद को अच्छे दिखाने की कोशिश करते हैं। हम धार्मिक माने जाने के लिए, एक धार्मिक तीर्थस्थान में जाकर सेल्फी लेते हैं। हम घर का अतिरिक्त भोजन किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए ले जाते हैं, उस कार्य की एक तस्वीर लेते हैं और इसे सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं ताकि धर्मार्थ और सहायक के रूप में जाना जा सकें। हम सार्वजनिक रूप से बहुत भक्ति प्रदर्शित करते हुए प्रार्थना करते हैं, लेकिन व्यक्तिगत गुप्त प्रार्थना में एक क्षण भर भी बिताने में विफल रहते हैं। हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए बहुत मेकअप करना पसंद करते हैं। हम अपने ज्ञान, शक्ति और पद का प्रदर्शन करना चाहते हैं।
येसु हमें वास्तव में प्रार्थनापूर्ण, मददगार और अच्छा बनने के लिए बुलाते हैं। अच्छा दिखना ही काफी नहीं है, हमें वास्तव में अच्छा होना चाहिए। दिन के अंत में, जो वास्तव में मायने रखता है वह हमारा आंतरिक सच्चाई है जिसे प्रभु ईश्वर भली भाँति जानते हैं। हम अपने ईश्वर के सामने नंगे हैं। स्तोत्रकार कहता है, “प्रभु! तूने मेरी थाह ली है; तू मुझे जानता है। मैं चाहे लेटूँ या बैठूँ, तू जानता है। तू दूर रहते हुए भी मेरे विचार भाँप लेता है। मैं चाहे लेटूँ या बैठूं, तू सब जानता है। मेरे मुख से बात निकल ही नहीं पायी कि प्रभु! तू उसे पूरी तरह जान गया। तू मुझे आगे और पीछे से सँभालता है। तेरा हाथ मेरी रक्षा करता रहता है।” (स्तोत्र 139:1-5) आइए, हम स्तोत्रकार के साथ प्रार्थना करें, “ईश्वर! मुझे परख कर मेरे हृदय को पहचान ले; मुझे जाँच कर मेरी चिन्ताओं को जान ले। मेरी रखवाली कर, जिससे मैं कुमार्ग पर पैर न रखूँ; मुझे अनन्त जीवन के मार्ग पर ले चल।” (स्तोत्र 139:23-24)।
✍ - फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया
One of the things Jesus detested was hypocrisy or pretension. All of us like to be good. We want to be known as good, doing good. We want to be respected and elevated. But it is not easy as is said. Hence some of us like to take a shortcut – pretension. Instead of being good, we try to pretend or project ourselves to be good. We go to a religious sanctuary and take a selfie to be considered as religious. We carry an extra meal to a person in need, take a photograph of that act and post it in social media to be known as charitable and helpful. We pray in public displaying a lot of devotion, but fail to spend a moment in personal secret prayer. We like to do a lot of make up to cover up what is not appreciated in public. We want to showcase our knowledge, power and position.
Jesus calls us to be genuinely prayerful, helpful and good. It is not enough to appear to be good, we need to be really good. At the end of the day, what really matters is our interior self which is known to God. We are naked before our God who sees the heart. The Psalmist says, “O LORD, you have searched me and known me. You know when I sit down and when I rise up; you discern my thoughts from far away. You search out my path and my lying down, and are acquainted with all my ways. Even before a word is on my tongue, O LORD, you know it completely. You hem me in, behind and before, and lay your hand upon me.” (Ps 139:1-5) Let us pray with the psalmist, “Search me, O God, and know my heart; test me and know my thoughts. See if there is any wicked way in me, and lead me in the way everlasting” (Ps 139:23-24)
✍ -Fr. Francis Scaria
इस संसार में हर इंसान खाली हाथ आता है और खाली हाथ चला जाता है। परंतु इस दौरान वह बहुत सारी चीजें इस संसार में रहते हुए ग्रहण करता है जैसे कि नाम, ज्ञान, कला, अच्छाईयॉं, बुराईयॉं, धन दौलत, प्रेम, घृणा, दान, स्वार्थ, अच्छे अनुभव, बुरे अनुभव इत्यादि। और जो चीज़ वह ग्रहण करता है वही इस संसार में दूसरों को देता है।
इस संसार में बहुत सारी चीजे़ हैं और अक्सर हमारे पास चुनाव रहता है कि हम किस को ग्रहण करें और अपने पास रखें। यदि हमने अपने अंदर अच्छाईयों को संजोय कर रखा है तो हमारे अंदर से अच्छाईयॉं ही बाहर आयेंगी। इसलिये येसु कहते है जो हृदय में भरा है, वही तो मुॅंह से बाहर आता है।
अक्सर हम अपनी बाहरी व्यवहार से अच्छा होने की कोशिश करते है या बाहरी तौर तरिकों से अपने को बदलने की कोशिश करते है। परंतु बाहरी बदलाव तभी होगा जब अंदर से बदला जाये। प्रभु येसु मत्ती 23ः26 में कहते है, ‘‘पहले भीतर से प्याले को साफ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ हो जाये।’’ हम सब अपने जीवन में अच्छाईयों को रखें।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाIn this world every person comes empty handed and goes empty handed. But within this he receives many things living in this world like name, knowledge, goodness, badness, wealth, money, love, envy, charity, selfishness, good experience, bad experience and so on. And the things which he receives that only he gives to others in this world.
There are many things in this world and every time we have the choice which one to take and keep for ourselves. If we have gathered goodness in ourselves then goodness will reflect from our lives. That’s why Jesus says that it is out of the abundance of the heart that the mouth speaks.
Usually we try to be good from the external behavior or we try to become good by trying to change ourselves externally. But external change will come only when there will be internal change. Lord Jesus says in Mt 23:26, “First clean the inside of the cup, so that the outside also may become clean.” Let’s store goodness in our lives.
✍ -Fr. Dennis Tigga