वर्ष का चौबीसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 2:1-8

"सभी मनुष्यों के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाये, क्योंकि वह चाहता है कि सब मनुष्यों को मुक्ति मिले।"

मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं तथा अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना, निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शांत जीवन बिता सकें । यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी है, क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जान जायें। क्योंकि केवल एक ही ईश्वर है और ईश्वर तथा मनुष्यों के केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् येसु मसीह, जो स्वयं मनुष्य हैं और जिन्होंने सबों के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया है। उन्होंने उपयुक्त समय पर इसके सम्बन्ध में अपना साक्ष्य दिया है। मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता; मैं इसी का प्रचारक तथा प्रेरित, गैरयहूदियों के लिए विश्वास तथा सत्य का उपदेशक नियुक्त हुआ हूँ। मैं चाहता हूँ कि सब जगह पुरुष, बैर तथा विवाद छोड़ कर, श्रद्धापूर्वक हाथ ऊपर उठा कर प्रार्थना करें ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 27:27-9

अनुवाक्य : धन्य है प्रभु ! उसने मेरी प्रार्थना सुनी है ।

1. मैं तेरी दुहाई देता हूँ, तेरे पवित्र मंदिर की ओर अभिमुख हो कर, मैं हाथ जोड़ कर यह निवेदन करता हूँ। हे प्रभु ! मेरी प्रार्थना सुन

2. प्रभु मेरा बल है और मेरी ढाल । मेरा हृदय उस पर भरोसा रखता है। मुझे सहायता मिली है, मेरा हृदय आनन्दित है और मैं गाते हुए उसकी स्तुति करता हूँ

3. प्रभु अपनी प्रजा को बल देता और अपने अभिषिक्त की रक्षा करता है। अपनी प्रजा की रक्षा कर ! उसे आशीर्वाद दे, उसका चरवाहा बन जा, उसे सदा सँभालने की कृपा कर ।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करे, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे । अल्लेलूया !

📙सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:1-10

"इस्त्राएल में भी मैंने इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया ।"

जनता को अपने ये उपदेश सुनाने के बाद येसु कफरनाहूम आये। वहाँ एक शतपति का अत्यन्त प्रिय नौकर किसी रोग से मर रहा था। शतपति ने येसु की चर्चा सुनी थी; इसलिए उसने यहूदियों के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों को येसु के पास यह निवेदन करने के लिए भेजा कि आप आ कर मेरे नौकर को बचायें। वे येसु के पास आ कर उन से आग्रह के साथ विनय करने लगे, "वह शतपति इस योग्य है कि आप उसके लिए ऐसा करें। वह हमारे राष्ट्र से प्रेम रखता है और उसी ने हमारे लिए सभागृह बनवाया है।" येसु उनके साथ चले। वह उसके घर के निकट पहुँचे ही थे कि शतपति ने मित्रों द्वारा येसु के पास यह कहला भेजा, "प्रभु ! आप कष्ट न करें, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें। इसी कारण मैंने अपने को इस योग्य नहीं समझा कि आपके पास आऊँ। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर अच्छा हो जायेगा। मैं एक छोटा-सा अधिकारी हूँ। मेरे अधीन सिपाही रहते हैं। जब मैं एक से कहता हूँ- जाओ, तो वह जाता है और दूसरे से - आओ, तो वह आता है और अपने नौकर से यह करो, तो वह यह करता है।" येसु यह सुन कर चकित हो गये और उन्होंने अपने पीछे आते हुए लोगों की ओर मुड़ कर कहा, "मैं तुम लोगों से कहता हूँ इस्राएल में भी मैंने इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया ।" और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर रोगी नौकर को भला-चंगा पाया ।

प्रभु का सुसमाचार।